अफगान हिंदू-सिखों को वीज़ा में सहूलियत देने की माँग : पूर्व सचिव डॉ. कमल टावरी ने विदेश मंत्री जयशंकर को लिखा पत्र
GG News Bureau
नई दिल्ली, 22 मई – धार्मिक आस्था और अंतिम संस्कार की परंपराओं को निभाने के लिए भारत आने की अपील –भारत सरकार के पूर्व सचिव और रूरल हब इनोवेशंस लिमिटेड के मार्गदर्शक डॉ. कमल टावरी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को एक संवेदनशील और मानवीय अपील करते हुए पत्र लिखा है। यह पत्र अफगानिस्तान से विस्थापित हिंदू और सिख समुदाय के उन परिवारों की ओर से है जो जर्मनी के हेसेन और नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया क्षेत्रों में शरण लिए हुए हैं।
डॉ. टावरी ने पत्र में उल्लेख किया है कि ये परिवार भारत के पवित्र धार्मिक स्थलों से गहरा आध्यात्मिक संबंध रखते हैं। हिंदू परिवार गंगा में अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करना चाहते हैं, जो सनातन धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है। वहीं, सिख परिवार श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शन और श्री स्वर्ण मंदिर, अमृतसर में श्रद्धा अर्पित करने की आकांक्षा रखते हैं।
तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद भारत सरकार ने अफगान पासपोर्ट धारकों को वीज़ा देना अस्थायी रूप से रोक दिया था। बाद में “e-Emergency X-Misc Visa” जैसी उप-श्रेणी शुरू की गई, जो एक सराहनीय कदम था। लेकिन अब इन वीज़ा आवेदनों में अत्यधिक विलंब और अस्वीकृति की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे इन शरणार्थी परिवारों की धार्मिक गतिविधियाँ बाधित हो रही हैं।
डॉ. टावरी ने अपने पत्र में लिखा, “भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि समस्त हिंदू समाज के लिए आत्मिक केंद्र है। इन विस्थापितों की भावनाओं और परंपराओं का सम्मान करते हुए भारत सरकार को विशेष मानवीय आधार पर वीज़ा प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाना चाहिए।”
उन्होंने यह भी बताया कि रूरल हब इनोवेशंस लिमिटेड एक सामाजिक संस्था के रूप में सरकार और समुदायों के बीच संवाद और समाधान का पुल बनने का कार्य कर रही है। संस्था की ओर से गौरव कुमार गुप्ता, संस्थापक सदस्य, ने भी इस मांग को समर्थन दिया है।
डॉ. टावरी ने अपील की है कि भारत सरकार धार्मिक भावना और सांस्कृतिक परंपरा को ध्यान में रखते हुए अफगान हिंदू और सिख परिवारों के लिए वीज़ा प्रक्रिया में आवश्यक सुधार लाए, ताकि वे अपनी सदियों पुरानी परंपराओं का निर्वहन भारत की पावन भूमि पर कर सकें।
यह पत्र न केवल एक प्रशासनिक निवेदन है, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म और मानवीय संवेदना की गूँज भी है — जिसमें शरणार्थी भी अपने धर्म और परंपरा के साथ जीने का अधिकार चाहते हैं।
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