आखिर अमेठी से क्यों नहीं लड़ रहे चुनाव, क्या राहुल गांधी को सता रहा है डर, यहाँ समझें कांग्रेस का खेला

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 03मई। लोकसभा चुनावों में उत्तरप्रदेश की हाट सीट अमेठी में इस बार कुछ अलग ही देखने को मिल रहा है। अमेठी से गांधी नेहरू परिवार के 47 साल पुराने रिश्ते पर एक बार फिर से ब्रेक लग गई है। राहुल गांधी अबकी बार अमेठी की बजाय अपनी मां सोनिया गांधी के गढ़ रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है। आखिर कांग्रेस को ये फैसला क्यों लेना पड़ा आइए समझते है।

अमेठी से देश की सत्ता तक पहुंचे राहुल गांधी के पूर्वज
दरअसल 1977 में संजय गांधी के यहां से चुनाव लड़ने के बाद यह गांधी-नेहरू परिवार के राजनैतिक वारिसों के पॉलिटिकल डेब्यू की सीट बन गई। देश-दुनिया में अमेठी की पहचान गांधी-नेहरू परिवार के गढ़ के रूप में होने लगी। संजय गांधी 1977 में पहला चुनाव हार गए थे लेकिन उसके बाद संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचते रहे। 1980 से 1991 तक संजय गांधी और राजीव गांधी यहां से जीते। राजीव की मौत के आठ साल बाद सोनिया यहां से 1999 में पहली बार लड़ीं और जीतीं। 2004 से राहुल गांधी इस सीट से जीत रहे थे जिनको 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी ने हरा दिया था।

क्यों लेना पड़ा कांग्रेस को ये फैसला
पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी से मंत्री स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को अमेठी से हराया था। 1999 के बाद यह पहला मौक़ा है, जब गांधी परिवार का कोई सदस्य अमेठी से चुनाव नहीं लड़ रहा है। अब ऐसे में सवाल ये है कि राहुल गांधी अमेठी की बजाय क्यों रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन, गौर करने वाली बात ये है कि राहुल गांधी 2019 में यहां भाजपा नेता स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे। अमेठी से चुनाव न लड़ने के पीछे कांग्रेस के अंदरखाते में कई कारण हो सकते है। आइए इन प्वाइंटस से समझते है।

* बीते 5 साल में एक राहुल गांधी एक बार भी अमेठी नहीं गए. इसे भी एक प्रमुख वजह बताया जा रहा है।
* इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कोई जोख़िम नहीं लेना चाह रही, इसलिए राहुल गांधी अमेठी की बजाय रायबरेली से चुनावी मैदान में उतरे।
* पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी में बीजेपी नेता स्मृति ईरानी से हार का सामना करना पड़ा था, कांग्रेस ने हार के डर से भी इस सीट पर दाव नहीं खेला।
* अमेठी के लोगों का कांग्रेस के प्रति विश्वास डगमगा गया है। क्योंकि कांग्रेस का लोगों के बीच न जाना ये बड़ी वजह रही है।
* एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि गांधी परिवार के किसी सदस्य को रायबरेली से लड़ना था, क्योंकि ये लोकसभा सीट भी गांधी परिवार का मजबूत गढ़ रहा है।

जानिए कौन है किशोरी लाल शर्मा?
अमेठी से चुनावी मैदान में उतरे किशोरी लाल शर्मा गांधी परिवार के क़रीबी माने जाते हैं। किशोरी लाल शर्मा मूल रूप से पंजाब के हैं। वह 1983 में कांग्रेस कार्यकर्ता के तौर पर अमेठी आए थे। राजीव गांधी की मौत के बाद वो अमेठी सीट पर कांग्रेस के लिए काम करते रहे, जब गांधी परिवार 1990 के दौर में अमेठी की चुनावी राजनीति से दूर रहा, तब इस सीट पर किशोरी लाल शर्मा सक्रिय रहे थे। 1999 में सोनिया गांधी की पहली चुनावी जीत में किशोरी लाल शर्मा की अहम भूमिका बताई जाती है।

केएल शर्मा लंबे समय से अमेठी-रायबरेली में नेहरू-गांधी परिवार की आंख और कान बनकर काम करते रहे हैं। अमेठी और रायबरेली इलाके की जनता के लिए गांधी परिवार का दरवाजा केएल शर्मा ही रहे हैं। इस लिहाज से उनकी जमीनी पकड़ मजबूत है। कांंग्रेस ने यही सब जोड़कर इस बार केएल शर्मा को लड़ाया है।

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