नीडोनॉमिक्स के सिद्धांतों पर आधारित कृषि एक संतुलित कृषि ढांचा तैयार कर सकती है- प्रो गोयल

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24जून। प्रो. एम.एम. गोयल, पूर्व कुलपति, जगन्नाथ विश्वविद्यालय, जयपुर ने श्री कर्ण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए नीडोनॉमिक्स की गूढ़तम अवधारणा पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि नीडोनॉमिक्स एक आर्थिक दर्शन है जो संसाधनों के आवंटन और कृषि उत्पादों की खपत में आवश्यकता आधारित दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है। यह विचारधारा न केवल किसानों और उपभोक्ताओं की जरूरतों को संतुलित करती है, बल्कि पर्यावरण को भी प्राथमिकता देती है। प्रो. गोयल ने अपने भाषण में नीडो-कृषि का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके सिद्धांतों पर आधारित कृषि एक संतुलित कृषि ढांचा तैयार कर सकती है। नीडोनॉमिक्स किसानों को एकीकृत और बहु-विषयक तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे वे प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सकें। प्रो. गोयल ने नीडो-एग्रीकल्चर की नई कहानी लिखने के लिए “स्ट्रीट स्मार्ट” (सरल, नैतिक, कार्य-उन्मुख, उत्तरदायी और पारदर्शी) हितधारक बनने की आवश्यकता पर जोर दिया। नीडो-कृषि, किसानों की समस्याओं का समाधान करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं को भी पूरा करती है और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि नीडोनॉमिक्स के सिद्धांतों पर आधारित कृषि न केवल टिकाऊ और न्यायसंगत है, बल्कि यह कृषि क्षेत्र को अधिक लचीला बना सकती है। इस अवसर पर, उन्होंने महाविद्यालय स्टाफ को “अनु-गीता” की प्रति भेंट की। अनु-गीता के अनुसार, व्यक्ति जीवित रहते हुए अच्छे कर्म करके मुक्त (जीवनमुक्ति) हो सकता है, जबकि मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। डॉ. प्रेम सिंह शेखावत ने नीडोनॉमिक्स एग्रिकल्चर के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसका उद्देश्य सतत और पर्यावरण-संवेदनशील कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है, जो दीर्घकालिक उत्पादकता और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रख सकें। डॉ. शीला खर्कवाल ने बताया कि यह इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की वर्तमान परिस्तिथियों का अवलोकन किया जाये, उसके बाद ही सीमित संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग हो। यह प्रणाली किसानों और वैज्ञानिकों के बीच सहयोग और ज्ञान साझा करने को प्रोत्साहित करती है, जिससे नवीनतम अनुसंधान और पारंपरिक ज्ञान का संयोजन हो सके। कार्यक्रम के दौरान डॉ. एम.के. शर्मा और डॉ. बलवीर सिंह बधाला भी उपस्थित रहे।

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