अक्षयवट: सनातन परंपरा और आध्यात्मिक ऊर्जा का दिव्य प्रतीक

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3 फरवरी।
प्रयागराज स्थित अक्षयवट अनंतकाल से सनातन परंपरा, भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक बना हुआ है। त्रिवेणी संगम के तट पर स्थित यह दिव्य वृक्ष युगों-युगों से संतों, ऋषियों और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। इसकी अमरत्व की कथा, इसकी आध्यात्मिक महिमा और इसकी अनूठी शक्ति इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित करती है।

अक्षयवट का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

अक्षयवट को लेकर अनेक पौराणिक मान्यताएँ प्रचलित हैं। मान्यता है कि स्वयं भगवान श्रीराम, हनुमानजी, और अनेक ऋषि-मुनियों ने इस वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। स्कंद पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने इस वृक्ष को अमरता का वरदान दिया, जिसके कारण यह अनादि काल से अस्तित्व में बना हुआ है।

त्रिवेणी संगम और अक्षयवट

प्रयागराज का त्रिवेणी संगम, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं, पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। इसी संगम के निकट स्थित अक्षयवट का दर्शन करना श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक अनुष्ठान के समान होता है। यह माना जाता है कि यहाँ आकर ध्यान करने और पूजा-अर्चना करने से मन की शांति मिलती है और जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है।

आधात्मिक अनुभूति और भक्ति का केंद्र

अक्षयवट की छांव में आकर हर श्रद्धालु को आत्मिक शांति, भक्ति और मोक्ष की अनुभूति होती है। यह केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति का जीवंत प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि धर्म, आस्था और आध्यात्मिकता का प्रभाव शाश्वत है। यहाँ आकर मन स्वतः ही श्रद्धा और भक्ति से भर उठता है और व्यक्ति को परम सत्य का आभास होता है।

निष्कर्ष

अक्षयवट केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि यह सनातन धर्म और भारतीय आध्यात्मिक चेतना का अमिट प्रतीक है। इसकी जड़ों में वह ऊर्जा समाहित है, जो अनादि काल से संतों, साधकों और श्रद्धालुओं को भक्ति और तपस्या की ओर प्रेरित करती रही है। इस पावन स्थल पर आकर अक्षयवट के दर्शन करना किसी भी श्रद्धालु के लिए एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो उसे सनातन परंपरा की अखंड धारा से जोड़ देता है।

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