अलास्का शिखर सम्मेलन: ट्रम्प-पुतिन बैठक से यूक्रेन युद्ध पर समझौता नहीं, भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ा

समग्र समाचार सेवा
वॉशिंगटन/अलास्का, 16 अगस्त: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में हुआ बहुप्रतीक्षित शिखर सम्मेलन वैश्विक राजनीति के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा था। हालांकि, इस मुलाकात से यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने या निलंबित करने पर कोई ठोस समझौता नहीं निकल सका। दोनों नेताओं ने वार्ता को “उत्पादक” जरूर बताया, लेकिन परिणाम अभी अनिश्चित हैं।

भारत के लिए यह बैठक विशेष महत्व रखती है क्योंकि अमेरिका ने हाल ही में भारत से आयातित वस्तुओं पर 50 प्रतिशत शुल्क और रूस से सीधे कच्चे तेल की खरीद पर 25 प्रतिशत का दंड लगाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत के निर्यात पर गहरा असर पड़ सकता है और जीडीपी का लगभग 1 प्रतिशत जोखिम में पड़ सकता है।

भारत की चिंताएं और ऊर्जा सुरक्षा

भारत रूस से तेल का बड़ा आयातक है। ऐसे में अमेरिका के दंडात्मक शुल्क सीधे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और व्यापारिक संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं।
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत पर लगाया गया 50% शुल्क एशियाई भागीदारों की तुलना में कहीं अधिक है, जिससे भारत को असमान प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।

भारत सरकार इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी नज़र बनाए हुए है और राजनयिक स्तर पर अमेरिका से राहत पाने की कोशिश कर रही है।

अलास्का शिखर सम्मेलन: 5 प्रमुख निष्कर्ष

  1. कोई ठोस समझौता नहीं – यूक्रेन युद्ध पर कोई अंतिम समझौता नहीं हुआ। ट्रम्प ने कहा, “हम अभी वहां नहीं पहुँचे हैं।”
  2. आगे की वार्ताएँ जारी रहेंगी – ट्रम्प ने पुष्टि की कि वे जल्द ही यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की और नाटो नेताओं से आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे।
  3. चीन को अस्थायी छूट, भारत पर दबाव बरकरार – ट्रम्प ने कहा कि चीन से तेल आयात पर शुल्क अस्थायी रूप से रोके गए हैं, लेकिन भारत पर 50% शुल्क लागू रहेगा।
  4. पुतिन की ट्रम्प को सराहना – पुतिन ने इस बैठक को “मित्रवत” बताया और कहा कि ट्रम्प ने रूस के राष्ट्रीय हितों को समझा।
  5. त्रिपक्षीय बैठक की संभावना – ट्रम्प ने पुतिन और ज़ेलेंस्की के साथ एक तीन-तरफा बैठक करने का संकेत दिया, हालांकि तारीख और स्थान तय नहीं है।

वैश्विक प्रभाव और भारत की रणनीति

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका और रूस के बीच तनाव कम नहीं हुआ तो भारत को कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, अमेरिकी शुल्क से भारत के कपड़ा, आईटी, और फार्मा निर्यात को भी नुकसान होने की आशंका है।

भारत को अब यह तय करना होगा कि वह ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ अपने संबंध कैसे बनाए रखे और साथ ही अमेरिका के साथ व्यापारिक मोर्चे पर संतुलन कैसे साधे।

अलास्का में हुई ट्रम्प-पुतिन बैठक ने भले ही तत्काल शांति समझौते का रास्ता नहीं खोला, लेकिन इसने भारत सहित कई देशों के लिए आर्थिक और रणनीतिक चिंताएं बढ़ा दी हैं। आने वाले महीनों में होने वाली संभावित त्रिपक्षीय वार्ता ही यह तय करेगी कि यूक्रेन युद्ध और वैश्विक व्यापार पर इसका दीर्घकालिक असर क्या होगा।

 

 

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