समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 अगस्त: संसद का मानसून सत्र बुधवार को उस समय और गरमा गया जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 130वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025 लोकसभा में पेश किया। इस बिल का मकसद यह है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या किसी केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री किसी आपराधिक मामले में आरोपी पाया जाता है तो उसे तुरंत अपने पद से इस्तीफा देना होगा।
विवादास्पद इस बिल को पेश करने के बाद उसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया है।
Laid the Constitution (One Hundred and Thirtieth Amendment) Bill, 2025 in the Lok Sabha. pic.twitter.com/wsohG2UP6x
— Amit Shah (@AmitShah) August 20, 2025
बिल को लेकर सरकार की रणनीति
दिलचस्प बात यह है कि सरकार इस बिल के पास न होने पर भी चिंतित नहीं दिख रही। राजनीतिक हलकों का मानना है कि सरकार का असली मकसद विपक्ष को नैतिकता के मुद्दे पर घेरना है।
सरकार का तर्क है कि विपक्ष इस बिल का विरोध कर यह संदेश दे रहा है कि वह जेल से सरकार चलाने वाले नेताओं का समर्थन करता है। यानी केंद्र पहले से यह तय मानकर चल रही थी कि अगर बिल पर आम सहमति नहीं बनती, तो विपक्ष को जनता के सामने जवाब देना होगा।
अमित शाह का विपक्ष पर हमला
बिल पेश करने के बाद अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर लगातार कई पोस्ट कर विपक्ष को घेरा। उन्होंने लिखा,
“मोदी सरकार की राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतिबद्धता और जनता के आक्रोश को देखते हुए मैंने यह बिल पेश किया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री जेल में रहकर शासन न चला पाए।”
एक ओर प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने अपने आप को कानून के दायरे में लाने का संविधान संशोधन पेश किया है और दूसरी ओर कानून के दायरे से बाहर रहने, जेल से सरकारें चलाने और कुर्सी का मोह न छोड़ने के लिए काँग्रेस के नेतृत्व में पूरे विपक्ष ने इसका विरोध किया है।
देश को वह समय भी…
— Amit Shah (@AmitShah) August 20, 2025
अमित शाह ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसे हालात आएंगे जब गिरफ्तार मंत्री या मुख्यमंत्री बिना इस्तीफा दिए जेल से ही सरकार चलाएंगे।
जमानत का प्रावधान
बिल में यह प्रावधान किया गया है कि अगर किसी नेता को गिरफ्तार किया जाता है तो उसके पास 30 दिन में जमानत लेने का विकल्प होगा। यदि 30 दिन तक जमानत नहीं मिलती है तो वह स्वतः ही कानूनी रूप से पद पर बने रहने के अयोग्य हो जाएगा। हालांकि, जमानत मिलने के बाद वह पुनः पद पर आसीन हो सकता है।
कांग्रेस और विपक्ष पर तीखे आरोप
अमित शाह ने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए कहा कि अतीत में इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री को कानूनी कार्यवाही से बचाने वाला संशोधन लाया था। इसके विपरीत बीजेपी अपने नेताओं को भी कानून के दायरे में लाने की पहल कर रही है।
उन्होंने अपने अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि जब कांग्रेस ने उन्हें फर्जी केस में फंसाया और गिरफ्तारी की, तब उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। शाह ने यह भी कहा कि लालकृष्ण आडवाणी ने भी सिर्फ आरोप लगने पर इस्तीफा दे दिया था, जबकि विपक्ष के नेता अब तक ऐसे कदमों से बचते रहे हैं।
विपक्ष का विरोध और राजनीतिक संदेश
विपक्षी दलों ने इस बिल को राजनीतिक हथियार करार दिया है। उनका कहना है कि सरकार विपक्ष को निशाना बनाने के लिए इस तरह के विधेयक ला रही है।
हालांकि, शाह ने पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष का यह विरोध उनके दोहरे चरित्र और भ्रष्ट नेताओं को बचाने की मंशा को उजागर करता है।
अमित शाह का यह बिल संसद में भले ही पास हो या न हो, लेकिन इसने राजनीतिक नैतिकता बनाम सत्ता के लालच पर गहन बहस छेड़ दी है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) इस पर क्या सिफारिश करती है और आने वाले चुनावी माहौल में यह मुद्दा किसे राजनीतिक लाभ पहुंचाएगा।
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