आरजेडी और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियों पर विश्लेषण: एक महागठबंधन की टूटते रिश्तों की कहानी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,8 मार्च।
आरजेडी और कांग्रेस के बीच बढ़ती तनातनी अब किसी से छिपी नहीं रही है। पिछले कुछ महीनों से यह खबरें आ रही हैं कि दोनों दलों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई है, और अब यह स्थिति उस कड़ी में बदली है जहां ये पार्टियां आगामी चुनावों में एक-दूसरे से टकराती हुई नजर आ सकती हैं। बिहार के सियासी दंगल में आरजेडी और कांग्रेस के रिश्तों में खटास की वजह से महागठबंधन के भविष्य को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं।

लालू यादव का बयान कि ममता बनर्जी को राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस से आगे बढ़कर नेतृत्व करना चाहिए, खासकर पिछले साल नवंबर-दिसंबर में, इस पूरे विवाद की जड़ बन गया। लालू ने ममता की नेतृत्व क्षमता पर विश्वास जताया और इस विषय को राजनीतिक गलियारों में हवा दी। यह बयान कांग्रेस के एक खेमे को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। कांग्रेस ने इस पर अपनी आपत्ति जताते हुए इसे अपनी छवि के खिलाफ देखा और समझा कि इस तरह के बयानों से महागठबंधन में खटास आ सकती है।

जबसे लालू ने ममता का समर्थन किया है, तबसे कांग्रेस और आरजेडी के रिश्ते में तनाव बढ़ता चला गया है। कांग्रेस का मानना है कि यह बयान राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की भूमिका को कम कर रहा है और महागठबंधन को कमजोर कर सकता है। खासकर बिहार विधानसभा चुनावों के संदर्भ में यह मुद्दा और भी गंभीर हो गया है, क्योंकि कांग्रेस के नेताओं ने खुलेआम बयान दिए कि वे राजद की शर्तों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे।

कांग्रेस के नेताओं के बयान भी महागठबंधन में अलगाव का कारण बने हैं। सबसे पहले कांग्रेस ने यह कहा कि “कोई बड़ा या छोटा भाई नहीं है”, इस बयान ने स्पष्ट कर दिया कि वे आरजेडी को चुनावी सहयोगी नहीं मानते, बल्कि एक समान साझेदार के रूप में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं। इसके बाद, कांग्रेस के नेताओं ने यह भी कहा कि वे महागठबंधन के सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे और यह निर्णय चुनाव परिणाम के बाद लिया जाएगा कि मुख्यमंत्री कौन होगा।

यह बयानों की झड़ी महागठबंधन के अंदर असहमति और आंतरिक संघर्ष को उजागर करती है। आरजेडी का मानना है कि कांग्रेस को पहले से ज्यादा सीटें देना पार्टी के लिए हानिकारक हो सकता है, जैसा कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में देखा गया था। जहाँ कांग्रेस को 70 सीटें दी गईं और पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल कर पाई, वहीं लेफ्ट का स्ट्राइक रेट बेहतर रहा। इसने आरजेडी को यह सोचने पर मजबूर किया कि इस बार कांग्रेस को इतनी ज्यादा सीटें देने का जोखिम नहीं लिया जाएगा।

पिछले दिनों, जब तेजस्वी यादव से मुख्यमंत्री के चेहरे पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने साफ तौर पर इस पर जवाब नहीं दिया। उनका कहना था कि “हम अपने काम में लगे हुए हैं, और इस पर अभी चर्चा नहीं हुई है।” इससे यह साफ हो गया कि तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनने की दावेदारी पर कांग्रेस की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया है। यह भी एक कारण बन गया कि कांग्रेस के नेताओं ने तेजस्वी के नाम पर समर्थन नहीं दिया। कांग्रेस का कहना था कि “यह फैसला हाईकमान करेगा।”

महागठबंधन के विधायकों की बैठक में यह बात सामने आई कि आरजेडी का साफ मानना है कि मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे, लेकिन कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह निर्णय गठबंधन के नेताओं और हाईकमान के साथ मिलकर लिया जाएगा।

आरजेडी और कांग्रेस के बीच बढ़ती दरार का एक और बड़ा कारण सीट वितरण है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के बाद आरजेडी के रणनीतिकारों ने यह महसूस किया कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना पार्टी के लिए महंगा साबित हो सकता है। अब, आरजेडी कांग्रेस से कम सीटों पर समझौता करने के लिए दबाव बना रही है।

कांग्रेस के लिए यह स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई है, क्योंकि पार्टी के नेता यह महसूस कर रहे हैं कि बिहार में उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो रही है। अब, आरजेडी की रणनीति के अनुसार, वे कांग्रेस को कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कह सकते हैं, जैसा कि हालिया बयान से संकेत मिलता है। इसने कांग्रेस को मजबूर कर दिया है कि वह अपनी चुनावी रणनीति को बदलें और आरजेडी के दबाव का सामना करें।

अब सवाल यह उठता है कि क्या महागठबंधन का भविष्य सुरक्षित है? क्या कांग्रेस और आरजेडी के बीच यह मतभेद चुनावों में बड़ी चुनौती पैदा करेंगे? यदि दोनों पार्टियां चुनावी मैदान में एक-दूसरे के खिलाफ उतरती हैं, तो इसका असर न केवल बिहार के चुनाव परिणामों पर पड़ेगा, बल्कि यह राष्ट्रीय राजनीति में भी बड़ा बदलाव ला सकता है।

चिराग पासवान जैसे नेताओं को इस विवाद का फायदा मिल सकता है, क्योंकि वे आरजेडी और कांग्रेस के रिश्तों पर लगातार हमले करते रहे हैं। वे इस अवसर का इस्तेमाल कर सकते हैं और अपनी पार्टी को मजबूत बना सकते हैं।

कुल मिलाकर, आरजेडी और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियां महागठबंधन के लिए बड़ा संकट बन सकती हैं। दोनों दलों के बीच बढ़ती बयानबाजी और सीट वितरण को लेकर विवाद यह दर्शाता है कि अगले चुनावों में यह गठबंधन कितना मजबूत होगा, इस पर सवाल उठना लाजमी है। हालांकि, अंत में यह तय करेगा कि महागठबंधन के नेता और राष्ट्रीय नेतृत्व किस तरह से इन मतभेदों को सुलझाते हैं और आगामी चुनावों में सामूहिक नेतृत्व को स्थापित करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं।

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