स्निग्धा श्रीवास्तव
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 30जुलाई। 19 जुलाई से संसद का मॉनसून सत्र शुरू हो गया है जो 13 अगस्त तक चलेगा। यह सत्र शुरुआत से ही सुर्खियों में रहा….लोकसभा में इस बार कई नये चेहरे देखने को मिल रहे हैं इसी तरह संसद सत्र के दौरान कई ऐसी खबरें आती हैं, जो चर्चा में रहती हैं। कई बार संसद में ऐसा होता है कि किसी मुद्दे पर सांसदों के बीच बहस हो जाती है। कभी-कभी बहस इतनी बढ़ जाती है कि बात हाथापाई पर आ जाती है, जिसके कारण संसद की कार्यवाही स्थगित तक करनी पड़ती है।
मानसून सत्र के दौरान इस बार विपक्षी दलों नें ठान लिया है कि वे किसी की सुनेंगे नही….
इस बार सदन में जासूसी मामले को लेकर जमकर हंगामा हो रहा है …..हंगामा भी ऐसा कि विपक्षी दल का रूख ऐसा है कि उन्हें अपनी गरिमा का विल्कुल भी ख्याल नहीं है। उनके विरोध करने का तरीका विल्कुल भी नैतिक नहीं है। वे सदन में स्पीकर की बात का भी मान नही रखते है, इतना ही नहीं वे संसद में एक-दूसरे पर मार-पीट पर उतारू नजर आते है। इस बार तो हद तो तब हो गई है जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद ने आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथ से पेपर छीनकर फाड़ दिए और उन्हें उपसभापति की ओर उछाल दिया। टीएमसी सांसद शांतनु सेन ने मंत्री वैष्णव के हाथों से पेपर छीना और फाड़कर उपसभापति की आसन की ओर फेंका। हांलाकि उन्हें पूरे सत्र के लिए सदन से सस्पेंड कर दिया गया है।
सांसद शांतनु सेन ने आरोप लगाया है कि केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने राज्यसभा में उन्हें अपशब्द कहे और वे मारपीट करने वाले थे, लेकिन सहयोगियों ने उनको बचा लिया।
हम आगे बढ़ने से पहले जानते है कि आखिर ये जासूसी मामला है क्या? जिसको लेकर विपक्ष आग बबूला हुआ है।
पेगासस सॉफ्टवेयर इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप ने तैयार किया था और विभिन्न सरकारों को बेचा। जिन लोगों की निगरानी का आरोप लगाया गया था, उनमें जानेमाने पत्रकार, राजनेता, सरकारी अधिकारी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। जिसका कोई ठोस सबूत नही है।
इजराइल के द्वारा इस पेगासस सॉफ्टवेयर को खतरनाक हथियार के रूप में नामित किया गया है। इस स्पाई वेयर पेगासस को बिना इजराइली सरकार की अनुमति के किसी को भी नहीं बेचा जा सकता है।
बता दें कि पहले हफ्ते में कुछ घंटों को छोड़कर दोनों सदनों में कोई कामकाज नहीं हो सका…केवल राज्यसभा में कोरोना को लेकर 2 घंटे की बहस हो पाई थी। ऐसे में विपक्ष के रुख को देखकर यह सवाल उठने लगा है कि क्या हंगामें के चलते पूरा मानसून सत्र ही धुल जाएगा ?
एक तरफ तो सरकार का कहना है कि वो विपक्ष से बातचीत करके संसद चलाने का कोई रास्ता निकलना चाहती है। पिछले हफ़्ते शुक्रवार को राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने विपक्ष के सभी नेताओं को चाय पर चर्चा करने के लिए बुलाया था, लेकिन उस बैठक में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस शामिल नहीं हुई थी। पीयूष गोयल ने सोमवार को फिर विपक्ष के नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी।
कृषि कानून का मुद्दा भी उठा रहे विपक्षी दल
इस बार मानसून सत्र में केवल जासूसी कांड को लेकर हंगामा नही हो रहा है बल्कि इस बार सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष की ओर से कृषि क़ानूनों , वैक्सीन नीति समेत कोरोना का प्रबंधन और महंगाई जैसे मुद्दे उठाए जा रहे थे, लेकिन जासूसी कांड की गूंज में इन मुद्दों की आवाज़ कहीं दब गई। हालांकि अकाली दल जैसी पार्टियां रोज़ कृषि क़ानूनों का मुद्दा उठाती आ रही है।
बता दें कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सभी सत्र हंगामे की भेंट चढ़ते रहे है। ऐसे में सरकार और विपक्ष को बातचीत करके संसद चलाने का कोई रास्ता निकलना ही पड़ेगा, नहीं तो मनसून सत्र के पूरी तरह धूल जाने का ख़तरा मंडराने लगा है।
क्या आप जानते हैं संसद की कार्यवाही रोकने का क्या असर होता है? आइए, जानते हैं इससे जुड़े कुछ खास बातें
संसद सत्र के एक मिनट की कार्यवाही का खर्च लगभग 2.6 लाख रुपये का आता है। वर्ष 2014 के बाद सबसे कम काम 2016 शीतकालीन सत्र में हुआ था। इस सत्र में सांसदों ने लगभग 92 घंटे के काम में व्यवधान डाला, जिसके कुल खर्च का अनुमान लगाया जाये, तो वो 144 करोड़ रुपयों का होगा। सबसे हैरानी की बात ये है कि पिछले कई सालों की तुलना में 2016 में संसद की कार्यवाही सबसे ज्यादा बार स्थगित हुई है। हर सत्र में लगभग 18 या 20 दिन संसद की कार्यवाही चलती है। राज्यसभा में हर दिन पांच घंटे का और लोकसभा में छह घंटे का काम होता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 29 जनवरी से 9 फरवरी और 5 मार्च से 6 अप्रैल दो चरणों में चले बजट सत्र में 190 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। यानी प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर तीन लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आया।
80 दिन से ज्यादा नहीं होता कामकाज
एक साल के दौरान संसद के तीन सत्र होते हैं। इसमें से भी अगर साप्ताहांत और अवकाश को निकाल दिया जाए तो यह समय लगभग तीन महीने का रह जाता है। यानी केवल 70-80 दिन कामकाज होता है जिसमें भी संसद ठीक तरह से चल नहीं पाती है। केवल 1992 में संसद का कामकाज 80 दिनों का हुआ था।
सुबह 11 बजे से संसद का कामकाज शुरू होता है और अमूमन 6 बजे तक चलता है। हालांकि कभी-कभी देर रात तक भी कार्यवाही चलती है। इसमें एक बजे से दो बजे तक का समय लंच का होता है। कभी-कभी लंच का समय जरुरत के अनुसार बदले जाने के साथ ही खत्म भी किया जा सकता है। यह निर्णय लेने का अधिकार पूरी तरह से स्पीकर का होता है।
कब कितना होता है खर्च
-पिछले शीतकालीन सत्र के दौरान 144 करोड़ रुपए का खर्च आया था।
– रोजाना 6 घंटे कार्यवाही का समय होता है।
– शीतकालीन सत्र के दौरान 90 घंटे संसद चली।
– हर घंटे 1.44 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
– एक घंटे संसद चलने की लागत 1.6 करोड़ रुपए आती है।
– प्रति मिनट संसद का खर्च 1.6 लाख रुपए है।
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