शिखंडी किसान आंदोलन की आड़ में भारत विरोधी ताक़तों का देश पर हमला

RAKESH TIWARI
RAKESH TIWARI

*राकेश तिवारी

वर्तमान युग के सर्वज्ञ गूगल बाबा से पता चला है कि भारत में जारी किसान आंदोलन विगत ठीक 9 अगस्त 2020 को शुरू हुआ है और मीडिया की कृपा से आगे भी जारी रहेगा, जब तक इससे भी कोई बड़ा मुद्दा ना आ जाए।

यह मीडिया की ही संजीवनी थी की 27 जनवरी को अपनी अंतिम साँसे ले रहे इस आंदोलन में नयी जान आ गयी है। 26 जनवरी 1950 से लेकर भारतीय गणतंत्र के अब तक के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि भारत की संप्रभुता और शासन का प्रतीक और पर्याय माने जाने वाले ‘लाल क़िले’ पर भारत के वर्तमान राष्ट्र ध्वज की जगह कोई और ध्वज लहराया गया। यह भी पहली बार ही हुआ की 26 जनवरी को भारत की राजधानी दिल्ली पूरी तरह अराजकता के हवाले थी। वैसे अपने वर्तमान इतिहास में अराजकता का यह नंगा नाच दिल्ली ने पहली बार नहीं देखा है। पिछले वर्ष 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के भारत आगमन पर भी दिल्ली नगर का सामूहिक बलात्कार हुआ था। 26 जनवरी 2021 में तो सिर्फ़ इस बात की परिपुष्टि हुई है की दिल्ली अनाथ बेवा है जिसे छेड़ने का अधिकार उन सभी दो-पाँच हज़ार की भीड़ और उसमें शामिल तत्वों को है।

बक़ौल शहाब जाफ़री दिल्ली अपने अपने शासकों से पूछ रही है कि –
“तू इधर-उधर की ना बात कर, ये बता की दिल्ली क्यूँ लुटी,
मुझे रहज़नों का गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।”

यह भी एक हक़ीक़त है की दिल्ली के वर्तमान रहबर भारत के माननीय गृहमंत्री अमित शाह जी हैं जो कि कभी गुजरात के भी गृहमंत्री हुआ करते थे। आज विपक्षी दल भाजपा को सत्ता की गद्दी पर पहुँचाने वाले गृहमंत्री अमित शाह से उनके त्यागपत्र की माँग कर रहे हैं।
मेरा यह मानना है विपक्षी राजनैतिक दलों को इसका किसी भी तौर नैतिक अधिकार नहीं है। क्योंकि दिल्ली को अराजकता की भाड़ में झोंकने में उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है। भारत का असंख्य ख़ामोश जन-मानस इस हक़ीक़त को खूब समझता है।
लेकिन क्या इससे भारतीय गृहमंत्री की अक्षमता पर उठने वाले सवाल बेमानी और ग़ैरमहत्वपूर्ण हो जाते हैं?
सवाल है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी गृहमंत्री और उनके प्रशासन ने गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2021 को ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाज़त क्यों दी ? भारत की संप्रभुता का प्रतीक माने जाने वाले ‘लाल क़िले’ पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं थी ? अराजक तत्वों और गुंडो को दिल्ली पुलिस पर हमला करने की छूट क्यों दी गयी ? और इस हमले के बीच क्यों ‘दिल्ली पुलिस कर्मियों’ के हाथ बांध दिए गए ? सरकारी आँकड़ों के अनुसार लगभग चार सौ पुलिस कर्मी घायल हुए हैं।
ऐसे अनेकों सवाल हैं जो देश के बाहर और भीतर रह रहे भारतीयों को व्यथित कर रहे हैं ।
बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री अपने गणतंत्र दिवस और राष्ट्र ध्वज के अपमान से क्षुब्ध राष्ट्रप्रेमी जनता को सम्बोधित करेंगे, 26 जनवरी 2021 को आहत और घायल हुए उसके स्वाभिमान पर मरहम लगने का प्रयास करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और तो और लगभग मरते हुए और अराजक हो चुके इस आंदोलन को 26 जनवरी 2021 को पुनर्जिवित भी कर दिया गया !! 29 जनवरी को इज़रायली दूतावास के पास विगत नौ वर्षों में पहली बार दिल्ली ने बमों के धमाके की गूंज भी सुनी है।
सभी भारत प्रेमियों को 26 जनवरी 2021 को जो हुआ उसे भारत की संप्रभुता और अस्मिता पर हमले के रूप में ही देखा जाना चाहिए। इससे तनिक भी कम आंकना आत्मघाती हो सकता है।
भारत और भारत से बाहर रह रहे देशप्रेमी स्तब्ध हो ये सारे घटनाक्रम देख और सुन रहे हैं और आशंकित हैं की अभी कुछ और भी बुरा हो सकता है। भारत को तोड़ने वाली ताक़तें खुल कर मैदान में बाहर आ चुकी हैं। सभी की निगाह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पर टिकी हैं और उम्मीद कर रहे हैं वे इस कठिन समय में अपने नेतृत्व से देश को विपदा से बाहर निकाले सकेंगे।
अंत में यही कह सकता हूँ की राष्ट्र भक्तों की “उम्मीद का दामन अभी छूटा तो नहीं है, प्याला भी अभी सब्र का फूटा तो नहीं है।
समय आ गया है कि भारत विरोधी ताक़तों को पूरी तरह नेस्तनाबूत कर दिया जाए।
जय हिंद – जय भारत——

(*श्री राकेश तिवारी कनाडा स्थित भारतीय मूल के वरिष्ठ पत्रकार हैं. सम्प्रति हिंदी टाइम्ज़ मीडिया समूह के प्रधान सम्पादक है)

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