समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 जुलाई: संसद के मानसून सत्र के छठे दिन लोकसभा में हंगामे व अलामतों का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है। सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच गतिरोध पूरी तरह बरकरार है। जैसे ही कार्यवाही शुरू हुई, कुछ ही देर में विपक्ष के उग्र रवैये की वजह से संसद की बैठक स्थगित करनी पड़ी। इस बीच, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राहुल गांधी और असम से निर्वाचित सांसद गौरव गोगोई का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि विपक्ष जानबूझकर प्रश्नकाल को बाधित कर रहा है।
Before adjourning Lok Sabha till 12 noon in Question Hour, Speaker Om Birla had said that Opposition members were deliberately disturbing the proceedings of the House. He asked the Leader of the Opposition (Rahul Gandhi) to tell members of his party not to display posters. He… pic.twitter.com/UQUhkWrtn4
— ANI (@ANI) July 28, 2025
घटनाक्रम पर स्पीकर की प्रतिक्रिया
ओम बिरला ने सख्ती से कहा कि विपक्ष ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा चाहिए कहा, लेकिन जब सदन में प्रक्रिया शुरू हुई तो वही लोग चर्चा को बाधित करने में लगे रहे। उन्होंने पूछा, “देश जानना चाहता है कि आप प्रश्नकाल क्यों स्थगित करना चाहते हो?”
स्पीकर ने यह भी कहा कि विपक्ष ने सदन में पर्चे, तख्तियाँ और नारेबाजी से मर्यादा और गरिमा दोनों को गिराया है।
बिरला ने विशेष रूप से आग्रह किया कि सदन सभी दलों का है और देश की 140 करोड़ जनता की सर्वोच्च अभिव्यक्ति, इसलिए इसकी मर्यादा बनाकर रखी जाए।
गतिरोध की जड़
दरअसल, संसद में विपक्ष इस विषय पर मोदी सरकार की सैन्य कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के खिलाफ तीखा विरोध दर्ज करा रहा है। सूत्रों के अनुसार विपक्ष ने संसद परिसर के ‘मकर द्वार’ से विरोध प्रदर्शन शुरू किया और इस मुद्दे को ‘लोकतंत्र पर हमला’ बताया। इस आंदोलन में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के अन्य दल शामिल रहे।
राजनीतिक तनाव और लोकतांत्रिक असर
इस हंगामे का लोकतंत्र पर असर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बिना कार्यवाही चले प्रश्नकाल का समय स्थगित होना आम जनहित के महत्वपूर्ण मंत्रालय जैसे शिक्षा, श्रम, विधि, पर्यावरण आदि की चर्चाओं को असंभव बनाता है। इससे ना सिर्फ आधिकारिक काम प्रभावित होते हैं, बल्कि जनता को जानकारी और जवाबदेही भी बाधित होती है।
विपक्ष का रुख
हालांकि विपक्षी दल इस प्रदर्शन को लोकतांत्रिक अधिकार मानते हुए लोकायुक्त बहस का हिस्सा मान रहे हैं। लेकिन विपक्ष का विरोधात्मक रवैया संसद की कार्यवाही में बाधा डाल रहा है। कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी, राजस्थानन से प्रमुख नेता मल्लिकार्जुन खरगे व समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव सहित कई अन्य नेता इस विषय पर सशक्त रुख अपना चुके हैं।
लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा तब कायम रहती है, जब विधायी प्रक्रिया निर्बाध चलती है। वर्तमान में कांग्रेस और विपक्षीय दलों का रवैया संभवतः सरकार को चुनौती दे रहा है, लेकिन इससे देश के सामान्य नागरिकों की आवाज दब रही है। प्रश्नकाल और सदन की कार्यवाही को बाधित करना, लोकतांत्रिक संवाद की भावना पर प्रश्न खड़ा करता है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का यह आग्रह लोकतंत्र के प्रति सम्मान और मर्यादा बनाए रखने का आख़िरी प्रयास है: “सदन सभी दलों की अभिव्यक्ति का मंच है” — और यही मंच देश का भविष्य तय करता है।
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