अनुराग कश्यप ने विवादित टिप्पणी पर मांगी माफ़ी, कहा – “आवेश में मर्यादा भूल गया”

नई दिल्ली, 23 अप्रैल: मशहूर फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप इन दिनों अपने एक विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। ज्योतिबा फुले पर बनी उनकी फिल्म की रिलीज़ में सेंसर बोर्ड की आपत्ति के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर एक तीखी टिप्पणी की, जिसने विवाद खड़ा कर दिया। इस बयान में उन्होंने ब्राह्मण समाज को लेकर नाराजगी भरे शब्द कहे थे, जिसे लेकर उन्हें काफी आलोचना का सामना करना पड़ा।
अनुराग ने अब इस मामले में माफ़ी मांग ली है। उन्होंने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर पोस्ट करते हुए लिखा, “मैं ग़ुस्से में किसी को जवाब देते हुए अपनी मर्यादा भूल गया और पूरे ब्राह्मण समाज को बुरा कह गया। वो समाज, जिसके कई लोग मेरी ज़िंदगी में बहुत अहम रहे हैं। आज वो सब मुझसे आहत हैं – मेरा परिवार, मेरे दोस्त, और वे बुद्धिजीवी जिनकी मैं इज्ज़त करता हूं।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं दिल से माफ़ी मांगता हूं उन सभी से जिन्हें मैं नहीं कहना चाहता था, लेकिन आवेश में, किसी की घटिया टिप्पणी के जवाब में मैंने लिख दिया। अब मैं अपने ग़ुस्से पर काम करूंगा और कोशिश करूंगा कि अपनी बात सही शब्दों में कहूं।”
अनुराग कश्यप की फिल्म ‘फुले’ की रिलीज़ को लेकर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति जताई थी, जिस पर उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था “अब ब्राह्मण को समस्या है ‘फुले’ से। भइया, जब कास्ट सिस्टम नहीं है तो काहे का ब्राह्मण। जब कास्ट सिस्टम था नहीं, तो ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई क्यों थीं?”
उनकी यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और कई लोगों ने इसे पूरे ब्राह्मण समाज के खिलाफ बताया। इसके बाद अनुराग पर काफी दबाव बना और उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने का निर्णय लिया।
अनुराग कश्यप ने जिस तरह पूरे ब्राह्मण समाज को आहत करने वाले शब्द कहे, वह किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। सोशल मीडिया जैसे सार्वजनिक मंच पर किसी वर्ग विशेष के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग न सिर्फ सामाजिक सौहार्द बिगाड़ता है, बल्कि इसकी व्यापक प्रतिक्रिया भी होती है। माफ़ी मांगना ज़रूर एक जरूरी कदम है, लेकिन यह किसी भी व्यक्ति को अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता। खासतौर पर ऐसे व्यक्ति से समाज को उम्मीद होती है कि वह अपनी बात को तार्किक और मर्यादित भाषा में रखे। यह मामला बताता है कि शब्दों की ताकत क्या होती है और कैसे एक असंयमित प्रतिक्रिया पूरे समुदाय के विश्वास को ठेस पहुंचा सकती है। अनुराग को न केवल भाषा पर संयम रखना होगा, बल्कि सोच-समझकर ही सार्वजनिक टिप्पणी करनी चाहिए।

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