
‘फलक पर इतनी वकत थी इस सितारे की
जब से चांद डूबा है ये सूरज हो गया है’
सियासत अक्सर महत्वाकांक्षाओं की गीली मिट्टी से ही आकार पाती है, पर कभी-कभी इस मिट्टी की तासीर इतनी अलग होती है कि वह कुम्हार रूपी जनता को भी चक्कर में डाल देती है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल खत्म होने में अभी पांच महीनों से भी ज्यादा का वक्त बचा है पर भगवा पार्टी ने अभी से उनके उत्तराधिकारी की तलाश शुरू कर दी है। इस कड़ी में सबसे ताज़ातरीन नाम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरूण सिंह का जुड़ गया है। अरूण सिंह पार्टी के शीर्ष पुरुषों के आंख-कान माने जाते हैं। यूपी के मिर्जापुर के रहने वाले अरूण सिंह यूं तो पेशे से सीए हैं, पर भगवा सियासत के जोड़-घटाव को उनसे बेहतर और कौन समझ सका है। छात्र राजनीति में हाथ आजमाने के बाद वे संघ से जुड़ गए, फिर शनैः शनैः उनकी भाजपा से यारी होती चली गई। रिश्ते में ये राजनाथ सिंह के साढू लगते हैं, जब 2013-14 के काल में राजनाथ पार्टी प्रेसिडेंट थे तो राजनाथ की अरूण जेटली से तकरार जगजाहिर थी, अरूण सिंह जेटली के भी करीबियों में शुमार होते थे, और उन्होंने इन दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव मिटाने की पहल करते हुए एक के बाद एक कई ब्रेकफास्ट मीटिंग्स भी रखीं। अरूण सिंह 17 जून 2015 से भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय प्रभारी के पद पर तैनात हैं, इस नाते पार्टी की ओर से जारी हर आदेश पर उनके ही दस्तखत होते हैं। वे राज्यसभा सांसद होने के साथ भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं और उनके पास कर्नाटक और राजस्थान दो अहम राज्यों के प्रभार भी हैं। इससे पहले जब वे ओडिशा के प्रभारी थे तो राज्य में भाजपा कैडर को मजबूती देने में उन्होंने एक महती भूमिका निभाई थी। बतौर कर्नाटक प्रभारी येदुरप्पा की जगह बोम्मई को कर्नाटक का नया सीएम बनवाने का आइडिया भी उन्हीं का बताया जाता है। राजस्थान में भाजपा की आपसी कलह जब सतह पर आ गई तो उन्होंने वसुंधरा राजे गुट और सतीश पूनिया गुट में महत्वपूर्ण सुलह करवाई। ये लो-प्रोफाइल रहकर काम करना पसंद करते हैं उनकी यही बात पार्टी हाईकमान और संघ के बेहद मुफीद है। सूत्रों की मानें तो चूंकि नड्डा हिमाचल में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं सो वे अपनी नई पारी में एक बार फिर से मोदी कैबिनेट की शोभा बढ़ा सकते हैं। हालांकि अध्यक्ष पद की रेस में भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान के नाम भी चल रहे हैं, पर कहते हैं इस दफे पार्टी हाईकमान किसी यूपी के चेहरे पर ही दांव लगाना चाहता है, इस नाते भी अरूण सिंह इस सांचे में सबसे फिट बैठते हैं।
क्या जयंत भी सपा छोड़ेंगे
कयासों के बाजार गर्म है कि आने वाले कुछ दिनों में रालोद नेता जयंत चौधरी भी अखिलेश को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम सकते हैं। कहते हैं इन दिनों दोनों नेताओं के रिश्तों में खटास इस कदर बढ़ गई है कि अखिलेश ने जयंत का फोन उठाना भी बंद कर दिया है। वैसे भी अखिलेश इस दफे जयंत को राज्यसभा देने के पक्षधर नहीं थे, पर उन्हें अपनी पत्नी डिंपल और जयंत की पत्नी चारू की दोस्ती के आगे झुकना पड़ा था। राज्यसभा का टिकट देते हुए अखिलेश ने बकायदा जयंत से कहा था कि ’मेरे पास दिल्ली में बस यही पंडारा रोड वाला घर है, जब मैं दिल्ली में होता हूं तो पार्टी जनों से यहीं मुलाकात करता हूं, इसीलिए यह टिकट मैंने अपनी पत्नी के लिए बचा रखा था ताकि यह मेरा घर बचा रह जाए।’ इस पर जयंत ने हामी भरते हुए कहा था कि ’सांसद बनते ही वे इसी पंडारा रोड वाले घर के लिए अप्लाई कर देंगे जिससे यह घर अखिलेश के पास ही रह जाएगा।’ बात पक्की हो गई, पर सांसद बनते ही जयंत ने जो पहला काम किया कि उन्होंने अपने नाम शाहजहां रोड पर एक घर अलॉट करा लिया, यह बात अखिलेश को अंदर तक चुभ गई और उन्होंने जयंत से एक दूरी बना ली और आज दूरियां इस कदर दिलों की बढ़ चुकी हैं कि अखिलेश ने इन दिनों जयंत का फोन उठाना भी बंद कर दिया है।
शिवकुमार से क्यों खफा हैं राहुल
राहुल गांधी ने कर्नाटक और तेलांगना राज्यों के चुनावी प्रबंधन और इसके निरंतर विश्लेषण का जिम्मा चुनावी रणनीतिकार सुनील कानूगोलू को सौंप रखा है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की राय कानूगोलू के बारे में इतनी सकारात्मक नहीं थी, बावजूद राहुल ने कानूगोलू पर अपना संपूर्ण भरोसा जताया है। इससे पहले कानूगोलू अकालियों के लिए भी काम कर चुके हैं पर शिरोमणि अकाली दल को कानूगोलू के अनुभवों से कोई वांछित सफलता हासिल नहीं हो सकी। पर इस बार कानूगोलू पूरी फॉर्म में हैं। उन्होंने पिछले दिनों कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को फोन किया और उनसे कहा कि ’कर्नाटक को लेकर मीटिंग है आप दिल्ली आ जाइए।’ इस पर शिवकुमार ने कहा कि ’आपसे मीटिंग ज्यादा से ज्यादा एक घंटे चलेगी, इसके लिए दिल्ली आने-जाने में पूरा दिन बर्बाद हो जाता है, क्यों नहीं हम ‘जूम कॉल’ पर ही बात कर लें।’ यह बात कानूगोलू को नागवार गुजरी और उन्होंने इस बात की शिकायत राहुल से कर दी। राहुल ने फौरन शिवकुमार को फोन लगा दिया और उनसे कहा कि ’आपकी हर बात स्वीकार करने की हमारी कोई मजबूरी नहीं, आपको कम से कम कानूगोलू की बात सुननी चाहिए थी।’ राहुल की यह बात शिवकुमार को बेहद नागवार गुजरी, उन्होंने लगभग पलटवार करने वाले अंदाज में कहा-’आप मुझसे ऐसे बात करते हो, वहीं सोनिया जी हैं जो कहती हैं- शिव यू आर लाइक माई सन, आखिर किस बात को मैं सच मानूं। आप कांग्रेस की स्थिति आज देख ही रहे हैं, फिर भी मैं चट्टान की तरह पार्टी के साथ खड़ा हूं, क्या इसका मुझे यह सिला मिलेगा?’ राहुल जज्ब करके रह गए। सुना है इन दिनों कर्नाटक कांग्रेस के एक पुराने नेता केजे जॉर्ज यानी केलाचंद्र जोसेफ जॉर्ज की गांधी दरबार में पूछ बढ़ गई है। जॉर्ज ने इंदिरा और राजीव के साथ भी नजदीकी से काम किया है, वे राज्य की 2 फीसदी क्रिश्यिचन आबादी की नुमाइदंगी भी करते हैं। और अभी राहुल ने उन्हें अपनी 2 अक्टूबर से शुरू होने वाली ’भारत जोड़ो यात्रा’ की कोर टीम का मेंबर भी बनाया है। यह यात्रा सोलह राज्यों से होकर गुजरेगी। अभी पिछले दिनों जॉर्ज को दिल्ली बुलाया था जहां उनकी सोनिया व राहुल से एक अहम मुलाकात हुई। सुना तो यही जा रहा है कि के जे जॉर्ज को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। क्या यह डीके के लिए खतरे की घंटी है?
जयराम की जगह कौन?
हिमाचल प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक आहूत थी। इस बैठक में भाजपा के प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अनुराग ठाकुर, भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। खन्ना का स्पष्ट तौर पर मानना था कि ’हिमाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बदलना आवश्यक है। उनकी जगह दिल्ली से किसी कद्दावर नेता को शिमला भेजना ही होगा।’ इस पर षेखावत ने कहा कि अनुराग ठाकुर एक बेहतर पसंद हो सकते हैं। यह सुनते ही जेपी नड्डा के चेहरे की भावभंगिमा बदल गई, इस बात को सबसे पहले अमित शाह ने भांपा, उन्होंने बात संभालते हुए कहा-’वैसे तो हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से बेहतर और कोई च्वॉइस नहीं हो सकती, पर हिमाचल जाने में इनकी दिलचस्पी नहीं है, वैसे भी हम इन्हें वहां का सीएम बना कर इनका ‘डिमोशन’ नहीं करना चाहते।’ शाह की बात सुन कर एक पल तो नड्डा भी भौच्चक रह गए कि इस बात पर आखिरकार उनकी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए।
एक्सप्रेसवे बना नहीं कि दरक गया
बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे जिसे तीन साल यानी 36 महीनों में बन कर तैयार होना था, वह महज़ 28 महीनों में ही पूरा हो गया। 294 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे की लागत आई कोई पंद्रह हजार करोड़ रुपए। इसका शिलान्यास पीएम मोदी ने 28 फरवरी 2022 को किया था और अभी पीएम ने ही पिछले दिनों 15 जुलाई 2022 को इसका उद्घाटन भी कर डाला। पर इस मानसून की झमाझम बारिश ने इस एक्सप्रेसवे की गुणवत्ता की कलई खोल दी। उद्घाटन के पांच दिन बाद ही तेज बारिश में एक पुल ने साथ छोड़ दिया। जालौन में सड़क धंस गई और इटावा के पास इसमें दरार आ गई। दरअसल, यूपीईआईडीए-उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ अवनीश अवस्थी की देखरेख में यह एक्सप्रेसवे बनकर तैयार हुआ है, अब सर्वशक्तिमान अवस्थी इस 31 अगस्त को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं, सो अपनी रिटायरमेंट से पहले उन्होंने इस शुभकार्य को संपन्न करवा दिया। रोड बनाने वाली कंपनियों का पैसा भी ससमय रिलीज हो गया। योगी रिटायरमेंट के बाद अवस्थी को एक बड़े पद से नवाजना चाहते हैं, वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार मांग कर रहे हैं कि ’इस एक्सप्रेस वे के निर्माण में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच ईडी और सीबीआई से करवाई जाए।’ पर इन दोनों एजेंसियों को इन दिनों क्या जरा भी फुर्सत है?
भगवा होते कैमरे
संसद परिसर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और केंद्रीय नेत्री स्मृति इरानी की तीखी नोक-झोंक इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। पर इसके साथ एक बड़ा सवाल यह भी है कि एक नामी एजेंसी की फोटो पत्रकार को सोनिया गांधी से बातचीत रिकार्ड करने या फोटो खींचने की इजाजत कैसे मिल गई, जबकि संसद के अंदर फोटो खींचना या कमेंट लेना पत्रकारों के लिए निषिद्द है। सोनिया गांधी की भी सुरक्षा बेहद चाक-चौबंद है, संसद में पीएम जिस गेट से आते हैं, सोनिया उनके पीछे वाले गेट से यानी गुरुद्वारा रकाबगंज वाले गेट का इस्तेमाल करती हैं। कमाल की बात देखिए आज जो एजेंसी सत्ता की सबसे बड़ी चेरी में शुमार हैं और जिस एजेंसी की महिला पत्रकार ने सोनिया का कमेंट लिया, यह वही एजेंसी है जिसे बनवाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक महती भूमिका थी। राजीव ने पीएम रहते यह महसूस किया कि ’समुचित कवरेज के लिए केवल दूरदर्शन या आकाशवाणी की बाट जोहना ठीक नहीं, क्यों नहीं एक स्वतंत्र वीडियो व फोटो एजेंसी को अस्तित्व में आना चाहिए,’ तब राजीव गांधी ने ही अपने पीआईओ प्रेम प्रकाश और राजमोहन राव को ऐसी किसी एजेंसी को शुरू करवाने के निर्देश दिए थे, तब इस नई एजेंसी का जन्म हुआ, जो आज कहीं गहरे भगवा रंग में रंगी है।
…और अंत में
भले ही दुष्यंत चौटाला हरियाणा की भाजपा सरकार में शामिल हों, पर सूत्र बताते हैं कि आने वाले डेढ़-दो महीने चौटाला परिवार के लिए अग्नि परीक्षा लेकर आ सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि इन दिनों चौटाला परिवार और भाजपा के दरम्यान सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। अगर स्थितियां यूं ही बहाल रही तो हरियाणा के इस सबसे बड़े राजनैतिक परिवार के आय से अधिक संपत्ति का मामला कोर्ट में आ सकता है। जिस दिन ऐसा हुआ चौटाला की पार्टी के विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं। भूपिन्दर हुड्डा भी ऐसे ही किसीं हैं।
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