असम विधानसभा ने 90 साल बाद शुक्रवार की ‘नमाज़’ ब्रेक समाप्त की

समग्र समाचार सेवा
गुवाहाटी,22 फरवरी।
असम विधानसभा ने शुक्रवार को मुस्लिम विधायकों के लिए दी जाने वाली दो घंटे की नमाज़ ब्रेक को समाप्त कर दिया है। यह परंपरा पिछले 90 वर्षों से चली आ रही थी, लेकिन अगस्त 2023 के सत्र में इसे समाप्त करने का निर्णय लिया गया था। अब, पहली बार इसे चालू बजट सत्र में लागू किया गया।

विवाद और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस निर्णय को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। AIUDF विधायक रफीकुल इस्लाम ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह निर्णय संख्या बल के आधार पर थोपा गया है। उन्होंने कहा,
“असम विधानसभा में करीब 30 मुस्लिम विधायक हैं। हमने इसका विरोध किया, लेकिन बीजेपी ने बहुमत के दम पर इसे लागू कर दिया।”

वहीं, विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक देबब्रत सैकिया ने इस फैसले के खिलाफ एक वैकल्पिक प्रस्ताव रखा। उन्होंने सुझाव दिया कि मुस्लिम विधायकों के लिए विधानसभा परिसर के पास ही प्रार्थना की सुविधा दी जाए, जिससे वे सत्र के महत्वपूर्ण चर्चाओं से वंचित न रहें।

स्पीकर और सरकार का पक्ष

असम विधानसभा के अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी की अध्यक्षता वाली नियम समिति ने पिछले साल इस परंपरा को समाप्त करने का निर्णय लिया था। दैमारी ने कहा कि संविधान की धर्मनिरपेक्षता के मद्देनजर सभी कार्य दिवसों में विधानसभा की कार्यवाही समान रूप से चलनी चाहिए और किसी विशेष समुदाय के लिए अलग व्यवस्था की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक औपनिवेशिक परंपरा को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा,
“यह परंपरा 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला द्वारा शुरू की गई थी। इसे समाप्त करना प्राथमिकता को उत्पादकता की ओर स्थानांतरित करने और औपनिवेशिक युग की परंपराओं को छोड़ने की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन है।”

संसदीय कार्यवाही में एकरूपता की ओर कदम

यह फैसला असम विधानसभा की कार्यक्षमता और संसदीय कार्यवाही की एकरूपता को बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। सरकार का मानना है कि यह कदम संसदीय प्रक्रियाओं को अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बनाने में मदद करेगा

निष्कर्ष

असम विधानसभा का यह निर्णय राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। जहां बीजेपी इसे ‘निष्पक्ष प्रशासन’ की दिशा में कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध मान रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह निर्णय भविष्य में असम की राजनीति और अन्य राज्यों की विधानसभाओं पर क्या प्रभाव डालता है

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