— रमेश शर्मा
राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की भूमिका के साथ अयोध्या में एक बड़ा परिवर्तन आ रहा है । यह अयोध्या वासियों के मानस में भी और आने वाले श्रृद्धालुओं में भी झलकने लगा है । वातावरण में आस्था-भक्ति तो है पर अब पर्यटन भाव प्रभावी होने लगा है ।
अयोध्या नगरी उस पवित्र नदी सरयू के किनारे बसी है जिसे समुद्र की बेटी कहा गया है । मानवीय विकास के आदिपुरुष माने जाने वाले महाराज मनु ने इसी क्षेत्र में संसार की पहली राज व्यवस्था स्थापित की थी । यदि विज्ञान की दृष्टि से विचार करें तो अवध का यह भूभाग तब भी था जब हिमालय नहीं था, सरयू तब भी थी जब गंगा नहीं थी । अतीत में जहाँ तक दृष्टि जाती है । इस क्षेत्र में मानवीय सभ्यता का उल्लेख मिलता है । समय के साथ इस क्षेत्र और नगरी के अनेक नाम बदले किन्तु राज्य का सर्वाधिक प्रचलित नाम अवध और नगरी अयोध्या नाम से प्रसिद्ध रही । रघुनन्दन श्रीराम के अवतार से बहुत पहले भी यह क्षेत्र और नगरी धर्म, आस्था एवं भक्ति का केन्द्र रही है । जिसकी झलक यहाँ के समाज जीवन और प्रत्येक शासक की शैली में रही है । किंतु मध्यकाल में हुये बाह्य आक्रमणों और विध्वंस से यहाँ का वैभव जाता रहा । इन घटनाक्रमों से अयोध्या के वाह्य स्वरूप में तो बहुत परिवर्तन आये, जीवन शैली भी बदली किन्तु चिंतन के पिण्ड में अयोध्या सुरक्षित और श्रद्धेय रही । जो रामजन्म भूमि की मुक्ति के सतत संघर्ष और देश वासियों के मन में उठती उन हिलोरों से स्पष्ट है जिसमें कमसेकम जीवन में एक बार अयोध्या यात्रा की इच्छा बसी होती है । इसी आंतरिक चेतना शक्ति से रामलला बाबरी ढांचे में प्रगट हुये और फिर वहाँ मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ । भव्य मंदिर का शिलान्यास हुआ और पूरे संसार का ध्यान एक बार पुनः अयोध्या की ओर आकर्षित हुआ । इसके बाद अयोध्या आने वाले श्रृद्धालुओं और जिज्ञासुओं की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई । यह भी बहुत स्पष्ट है कि जन्मभूमि मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अयोध्या आने वालों की संख्या असीम होगी । और इसके लिये अयोध्या तैयारी कर रही है । यह तैयारी दोनों ओर बहुत तीव्र है । मंदिर निर्माण की दिशा में भी और आगन्तुकों के “स्वागत” के लिये भी ।
इन दिनों अयोध्या में भव्य और विशाल मंदिर का निर्माण का कार्य बड़ी तीव्रता से चल रहा है । मंदिर का आधार तैयार हो गया है । तैयारी है कि पहले गर्भ ग्रह का निर्माण पूर्ण हो रामलला अपनी गरिमा के साथ विराजें फिर विस्तार का काम होता रहेगा । मंदिर निर्माण के यह समाचार सतत आ रहे हैं । जिसे देखने के लिये अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी प्रतिदिन बढ़ रही है । आने वाले समय में इन श्रृद्धालुओं की संख्या वृद्धि का अनुमान लगा कर सरकार और स्थानीय समाज दोनों उनके स्वागत की तैयारी में लगे हैं। इसीलिए अयोध्या में मंदिर निर्माण का कार्य के साथ मानों पूरी अयोध्या का पुनर्निर्माण हो रहा है । सड़कें चौड़ी हो रही हैं। भवनों को नया आकार मिल रहा है । पुनर्निर्माण के लिये पुराने घर टूट रहे हैं उन्हे “भवन” बनाने का काम तेज है । नये बहुमंजिली भवन भी आकार ले रहे हैं। आगन्तुकों के स्वागत के लिये सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त होटल और निवास केन्द्र भी आकार ले रहे हैं। इन दिनों पूरी अयोध्या नगरी की सड़कों के किनारे भवन निर्माण सामग्री, टूटे मकानों के मलवे और सड़क चौड़ीकरण की सामग्री के ढेर लगे हैं। अयोध्या के जीवन में गति आ गई है जो धार्मिक नगरी के साथ आधुनिक नगरी का रूप देने की दिशा में दौड़ रही है ।
किसी नगर के अथवा समाज जीवन के आधुनिक होने की अपनी एक धारा है । सैद्धांतिक रूप से उसकी परिभाषा चाहे जो हो पर व्यवहारिक रूप से भारत में आधुनिकीकरण का एक मानस है । वह है अंग्रेजियत की जीवन शैली तथा शरीर की सुख सुविधा के अनुरूप ढलना । इस स्वरूप की ओर अब अयोध्या बढ़ने लगी है । सड़क पर दौड़ती कारे, यहाँ वहाँ से कट मारकर निकलतीं मोटर साइकिलें, बातचीत में अंग्रेजी शब्दों का उपयोग, और दुकानों के अंग्रेजी में नामपट्ट अब बाजार में दिखने लगे हैं। रेल्वे स्टेशन पर अपनी होटल की आधुनिक सुविधाओं से युक्त कमरों का विवरण देते उनके प्रतिनिधि सहज मिलते हैं जो आपकी पोशाख देखकर अंग्रेजी में बताने का प्रयास करते हैं। भारत के लगभग सभी प्रमुख नगरों में “ट्रेवल कंपनियाँ” लोगो से संपर्क करके वातानुकूलित बसों, कारों, और वातानुकूलित होटल कमरों का प्रबंध करके भ्रमण केलिये अयोध्या भेज रहे हैं। और अयोध्या जाने वालो को जितना समय अयोध्या के प्रमुख पवित्र स्थलों पर दर्शन के लिये लगता है उससे अधिक समय उसके आसपास फोटो खींचने और खिंचवाने में लगता है । अयोध्या आने वालों में अब प्रभु दर्शन एकाग्र मुद्रा होने के बजाय दर्शन करते हुये एकाग्र मुद्रा मोबाइल पर सेल्फी खिचवाने के समय देखी जा सकती है । प्रभु के चरणों में हाथ तो जाता पर ध्यान मोबाइल पर सुन्दर फोटो खींचने पर होता है । लौटकर सुनाये जाने वाले संस्मरणों में होटल की सुविधा कैसी थी और सरयू नदी पर वोटिंग किसने क्या किया, ऐसे विवरणों का वर्णन अधिक होता है ।
एक समय था जब अयोध्या आने वाले समूह प्रभु दर्शन के साथ अयोध्या के प्रत्येक पवित्र स्थलों पर जाते थे और संतों के आश्रमों में जाना भी न भूलते थे । अयोध्या जाने वाले श्रृद्धालु जन अपने परिचतों से आश्रमों का संदर्भ लेकर पहुँचते थे और प्रवचन भी सुनते थे । इसका कारण यह था कि अयोध्या जैसी तीर्थ नगरी का नाम स्मरण आते ही या वहाँ जाने की योजना के साथ व्यक्ति में एक विशिष्ट विचार ऊर्जा का संचार हो जाता है । उसे स्वसंस्कृति का वोध होता है । व्यक्ति अपने स्वयं से ऊपर उठकर परिवार, समाज और राष्ट्र के संतुलन का विचार करता है । इसलिए घर से निकलते समय ही यह विचार होता था कि कितनी दक्षिणा पंडित जी को देनी है, कितनी फूल प्रसाद, पूजन सामग्री पर व्यव करना और कितना वहाँ आसपास बैठे भिक्षुक जनों को दान करना है । भिक्षुक जनों के लिये घर से ही कुछ पुराने वस्त्र और चिल्लर लेकर जाने की तैयारी भी होती थी और लौटते समय अयोध्या की स्मृतियाँ जिनमें पुस्तकें प्रसाद आदि साथ होते थे । अयोध्या में एकाध दिन प्रवचन भी सुनते थे । आते समय उस आश्रम में भी कुछ दक्षिणा देकर आते थे । अयोध्यावासी सभी आगन्तुकों का जय रामजी की कह कर स्वागत भी करते थे । सहाय वृद्ध और आगन्तुक साधु जनों से भोजन आदि का भी पूछ लेते थे । अयोध्या का वातावरण ही ऐसा है कि वहाँ पहुँचते ही नकारात्मक विचार शून्य में चले जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । चित्त वृत्ति एकाग्र हो जाया करती है । भाव भक्ति पूजा उपासना में डूबने का भाव उत्पन्न होता है । प्रभु चरणों में समर्पण की याचना होती है । सरयू की धारा ऐसी कि घाट से उठने का मन ही न होता था । लेकिन यह सब अपने सामाजिक और पारिवारिक दायित्व पूर्ति के साथ ।
निसंदेह अयोध्या सहित सभी तीर्थ नगरी यात्रा में मानों संपूर्ण समाज और राष्ट्र दोनों समाय होते हैं। फूल, प्रसाद, पूजन हवन सामग्री से लेकर पण्डितजी तक समाज की सभी वर्गों से जुड़ना और निशक्त जनों की सहायता तथा प्रवचनों में संस्कार और जीवन निर्माण का संदेश होते थे । संभवतः इसी शक्ति ने विषमताओं के बीच भी राष्ट्र और संस्कृति के बीच की सुरक्षा की । किन्तु अब यात्रा में यही परिवर्तन आ रहा है । अयोध्या में फूल प्रसाद, रुद्राक्ष, गरुड़ घंटी छोटी छोटी मूर्तियों, यज्ञोपवीत आदि की दुकानें सिमट रहीं हैं और कोल्डड्रिंक, गुटका, चाय की दुकानें बढ़ रहीं हैं। यात्रा पर जाने वाले समूहों के साथ “ट्रेवल एजेन्सी का गाइड” होता है जो समस्त फुटपाथी दुकानदारों, भिक्षुक समूहों, पंडित पुजारियों और प्रवचन आश्रमों से बचाकर सीधा वातानुकूलित बस से वातानुकूलित होटल में ले आता है । जाने वाले श्रृदालुओं की जेब से पैसा तो जाता है लेकिन वह समाज के विविध वर्ग समूहों और संस्कृति सहेजकर रखने वाले पंडा पुजारियों के पास नहीं अपितु होटल और ट्रेवल ऐजेन्ट के पास जाता है । समाज के बदलाव का यही परिवर्तन अब अयोध्या में आ रहा है ।
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