सोनिया से मिल कर पहले ही अपने मंसूबे बता चुके थे आजाद

त्रिदिब रमन
त्रिदिब रमन

तुझे यूं भुलाने में हमें जमाने लगे हैं, तेरे दर से जाने में हजारों बहाने लगे हैं

कहानियों सी सुनता रहा तुम्हें अब तलक, आज अलाव में सारे फ़साने लगे हैं’

कांग्रेस को अलविदा कहने के कोई दो सप्ताह पूर्व गुलाम नबी सोनिया से मिले थे और उनके समक्ष अपने मन की व्यथा कहते हुए उन्होंने अपनी आगे की रणनीति के खुलासे भी कर दिए थे। बकौल गुलाम नबी-’राहुल गांधी की स्वीकार्यता देश में कम है और कार्यकर्ताओं में तो उससे भी कम है। मैं 74 साल का हो गया हूं, मुझे और किसी चीज की तमन्ना नहीं।’ गुलाब नबी ने अपना दर्द सोनिया से साझा करते हुए आगे कहा-’मैंने इंदिरा जी के साथ काम किया है, राहुल मेरे बच्चे की उम्र के हैं। आखिरी बार जब मैं उनसे आनंद शर्मा और भूपिंदर सिंह हुड्डा के साथ मिला तो राहुल ने अपने सहायक से कहा-’गेट गुलाम नबी ए कप ऑफ टी’ मैडम हम पुराने संस्कारों वाले लोग हैं, ऐसा सुनने की हमारी आदत नहीं है। आप भी तो मुझे आजाद साहब कह कर संबोधन देती हैं।’ फिर बातों ही बातों में जब प्रियंका गांधी का जिक्र आया तो सोनिया के समक्ष आजाद ने खुल कर अपनी राय रखी और कहा-’मैं नहीं कहता कि प्रियंका के आने से कोई जादू हो जाएगा, पर हां वह कांग्रेस के लिए एक तुरूप का पत्ता साबित हो सकती हैं। प्रियंका व्यवहार कुशल हैं और जो भी व्यक्ति उनके पास अपनी समस्या लेकर जाता है वह उनसे मिल कर संतुष्ट हो जाता है।’ विश्वस्त सूत्र ने बताया कि गुलाब नबी की पूरी बात सुनने के बाद सोनिया ने कहा-’राहुल पचास से ऊपर के हो रहे हैं और उन्होंने अपना पूरा ‘यूथ’ पार्टी को दे दिया है, वे दिन-रात एक कर मेहनत कर रहे हैं, इस वक्त उन्हें हटाने से उन पर हमेशा के लिए ’नकारा’ का ठप्पा लग सकता है, ऐसा मैं होने नहीं दूंगी।’ कहते हैं इस पर गुलाम नबी ने यह कहते हुए सोनिया से विदाई ली-’मैडम, आप सिर्फ अपने बेटे के लिए सोच रही हैं, देश और पार्टी के लिए नहीं सोच रही हैं।’

मोदी के नजदीक कैसे आए आजाद

जयराम रमेश कहते हैं कि जीएनए (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए ’मोदी मय’ हो गया है। सूत्रों की मानें तो जब गुलाम नबी राज्यसभा में थे और विपक्ष के नेता थे, तब उनकी अरुण जेटली से गहरी छनती थी, इसके पीछे जेटली की पत्नी डॉली का ‘जम्मू कनेक्शन’ बताया जाता है। यह जेटली ही थे जिन्होंने आजाद से मोदी की सीधी मुलाकात करवाई, वह मुलाकात दोस्ती में बदल गई। मोदी यदा-कदा आजाद को मिलने के लिए बुलाने लगे और उनके दरम्यान एक प्रगाढ़ता बढ़ती गई। यही वजह है कि जब गुलाम नबी राज्यसभा से रिटायर हो रहे थे तो उनकी विदाई भाषण में मोदी ने कहा था-’आपको खाली नहीं बैठने देंगे।’ दरअसल गुलाम नबी कोई जमीन के नेता नहीं, वे हमेशा से ‘ड्राईंग रूम पॉलिटिक्स’ के प्रतीक पुरुषों में शुमार रहे हैं, पर उनकी संगठन दक्षता और विरोधियों से भी उनके मधुर संबंध हमेशा से उनकी ताकत रहे हैं। गुलाम नबी को भाजपा इतना महत्व सिर्फ इसीलिए दे रही है कि आने वाले कुछ समय में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने हैं, नए परिसीमन में जम्मू का दायरा बढ़ गया है और कश्मीर का कुछ कम हुआ है। भाजपा की कोशिश है गुलाम नबी की नई पार्टी जम्मू-कश्मीर चुनावों में एक प्रमुख प्लेयर बन कर उभरे, जो एक साथ कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और महबूबा की पीडीपी में सेंध लगा सके, जिसका फायदा अपरोक्ष तौर पर भाजपा को मिल सके। अभी से कांग्रेस के काफी पूर्व व वर्तमान विधायक और एमएलसी गुलाम नबी का रुख कर रहे हैं इससे निसंदेह भाजपा की संभावनाओं के नए द्वार खुल रहे हैं।

पुराने संजय वफादारों को एक कर रहे हैं आजाद

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जो 5 पेज का लेटर भेज कर कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा की है, इस पत्र में सीधे-सीधे उन्होंने कांग्रेस की इस दुर्दशा के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया है। दिलचस्प तो यह कि गुलाम नबी के इस पत्र में राजीव गांधी से कहीं ज्यादा संजय गांधी का जिक्र हुआ है। पहले दो पन्नों के अलावा पत्र के आखिरी पन्ने पर भी संजय के नायकत्व का बखान हुआ है। पत्र के मजमून को देख कर ऐसा लगता है कि गुलाम नबी की नई पार्टी में पुराने संजय वफादारों को भी अहम जगह मिल सकती है। इस पत्र में गुलाम नबी ने अपने राजनैतिक कैरियर के शुरुआती दिनों को याद करते हुए संजय के साथ अपने नजदीकी संबंधों का जिक्र किया है, बकौल गुलाम नबी-’छात्र जीवन से ही मैं आजादी की अलख जगाने वाले गांधी, नेहरू, पटेल, बोस और अबुल कलाम आजाद के विचारों से प्रभावित था। संजय गांधी के कहने पर मैंने 1975-76 में जम्मू-कश्मीर यूथ कांग्रेस की अध्यक्षता संभाली। संजय गांधी की दुखद मृत्यु के बाद 1980 में मैं यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बना।’ आजाद ने कांग्रेस लीडरषिप पर ऐसे समय सवाल उठाए हैं जब कांग्रेस ’भारत जोड़ो यात्रा’ की तैयारियों में जुटी है, क्या यह इस बात की ओर इशारा है कि गुलाम नबी की उद्दात महत्वाकांक्षाओं की डोर का रंग निहायत भगवा हो गया है।

राव के पुत्र-पुत्री में घमासान

टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव की पुत्री कविता राव इन दिनों अपने भाई केटीआर से बेतरह नाराज़ जान पड़ती हैं, खास तौर पर जब दिल्ली के शराब घोटाले के तार उनकी स्वामित्व वाली कंपनियों से जुड़े बताए गए। अपने कुछ खास मित्र पत्रकारों से बात करते हुए कविता ने पिछले दिनों इस बात का खुलासा किया कि कैसे अपने पिता को सत्ता में लाने के लिए उन्होंने पूरी व्यूह रचना बनाई, कैसे उनकी पूरी यात्रा की उन्होंने रूप-रेखा तैयार की और इस यात्रा को सफल बनाया। पर आज वह परिवार की आंतरिक कलह की शिकार हो गई हैं, उनका भाई केटीआर नहीं चाहते कि वह राजनीति में रहें। कविता को शक है कि उनकी कंपनी के खिलाफ सारे कागजात निकलवाने में उनकी भाई की भूमिका हो सकती है और उन्हें लोकसभा का पिछला चुनाव हरवाने के पीछे भी शायद उसका भाई ही हो।

दीदी के ठाकुर से मिले स्वामी

पिछले दिनों सुब्रह्मण्यम स्वामी जब मन में राज्यसभा की चाह लिए कोलकाता पहुंचे तो वहां उनकी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से एक लंबी मुलाकात हुई। यह मुलाकात कोई घंटे भर चली। सूत्रों की मानें तो दीदी ने स्वामी से कहा कि ’अगर वे उनकी पार्टी ज्वॉइन कर लें तो पार्टी भी बदले में उन्हें पूरा सम्मान देगी।’ पर सीधे स्वामी के राज्यसभा को लेकर ममता ने कुछ नहीं कहा। इसके बाद ममता ने स्वामी को अपना निजी मंदिर दिखाया और अपने ठाकुर जी के दर्शन कराए। ममता ने स्वामी के समक्ष अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि ’लोग समझते हैं कि मैं नास्तिक हूं, पर मेरे ठाकुर जी ही मेरे संसार हैं।’ ममता के आतिथ्य से खुश हो कर स्वामी दिल्ली लौट आए हैं और उन्होंने बकायदा ट्वीट कर ममता की तारीफों के पुलींदे भी बांध दिए हैं, पर वे अभी तक तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें टीएमसी ज्वॉइन करनी है या नहीं, क्योंकि अगले साल ममता के पास राज्यसभा की तीन सीटें आने वाली हैं।

सीताराम के मन का कोहराम

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी पर उनके पार्टी जन ही लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें अपनी पार्टी से कहीं ज्यादा कांग्रेस और गांधी परिवार की चिंता सताती रहती है। सो, पिछले दिनों संपन्न हुई पार्टी बैठक में जब येचुरी ने खम्म ठोक कर यह दावा किया कि ’अब उनका एकमात्र लक्ष्य रहेगा कि कैसे वे 24 के चुनावों में तीसरे मोर्चे को खड़ा किया जा सके।’ इस पर केरल के सीएम विजयन ने येचुरी को टोकते हुए कहा कि ’आप जिस गांधी परिवार और कांग्रेस की चिंता करते हुए कभी नहीं थकते भूलिए मत केरल में हमारी टक्कर भी उसी पार्टी से है। भाजपा तो हमारे मुकाबले में कहीं दूर-दूर तक नहीं है। फिर भी आप जब देखो कांग्रेस की ही सेवा करते दिखते हैं।’ इस पर येचुरी ने खुद को संयत करते हुए कहा कि ’पहले मुझे कांग्रेस के सिवा भाजपा का कोई और विकल्प नहीं दिख रहा था। अब जब से नीतीश कुमार ने भाजपा को लात मारी है, मेरा नीतीश को लेकर भरोसा बढ़ गया है कि वे तीसरे मोर्चे के लिए सबसे उपयुक्त चेहरे हैं।’ बैठक में एक खामोशी छा गई।

 

और अंत में

दिल्ली से भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने अपने परवाज़ की रफ्तार बढ़ा दी है। दिल्ली में वे अपने लिए अभी से एक नई भूमिका की तलाश में जुट गए हैं। सांसद गौतम गंभीर इन दिनों धड़ल्ले से अपने संसदीय क्षेत्र का चक्कर काट रहे हैं, वे जहां भी मीटिंग के लिए पहुंचते हैं वहां उनका ऑफिस कहीं पहले से सक्रिय हो जाता है, खास लोगों की भीड़ मीटिंग स्थल पर पहले से भेज दी जाती है, जब गंभीर वहां पहुंचते हैं तो एक खास अंदाज में लोगों से पूछते हैं कि ’आप दिल्ली का अगला सीएम किसे चाहते हैं?’ भीड़ में से वही चिरपरिचित आवाजों का सामूहिक कोलाहल सुनाई देता है-’गौतम गंभीर।’ क्षेत्रवासी और पार्टी के आम कार्यकर्ता हैरान हैं कि मांगने से गौतम गंभीर का मिलने का समय भी नहीं मिलता और ये अपने लिए जनता से क्या मांग रहे हैं?

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