समग्र समाचार सेवा
ढाका, 23 मई: भारत की अग्रणी शिपबिल्डिंग कंपनी गार्डन रीच शिपबिल्डिंग एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE) और बांग्लादेश सरकार के बीच 2023 में हुई 21 मिलियन डॉलर की रक्षा डील को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने रद्द कर दिया है। इस डील के तहत बांग्लादेश की नौसेना के लिए 800 टन की समुद्री टग बोट डिजाइन और डिलीवर की जानी थी।
यह रक्षा अनुबंध भारत द्वारा बांग्लादेश को दी गई 500 मिलियन डॉलर की रक्षा खरीद क्रेडिट लाइन का पहला बड़ा सौदा था। इस समझौते का उद्देश्य समुद्री सुरक्षा, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रक्षा क्षेत्र में सहयोग को मजबूती देना था।
लेकिन अब यह डील अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में राजनीतिक और रणनीतिक कारणों के चलते रद्द कर दी गई है। जानकारों का मानना है कि शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद अंतरिम शासन की नीति में बदलाव और भारत के साथ मौजूदा राजनीतिक तनाव इसके प्रमुख कारण हैं।
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर पड़ा असर
बांग्लादेश के इस कदम को भारत के प्रति एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह घटनाक्रम दोनों देशों के बीच गहराते तनाव की ओर संकेत करता है, खासतौर पर तब, जब भारत ने हाल ही में बांग्लादेशी वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे वहां के निर्यातकों को भारी नुकसान हुआ है।
भारत सरकार के सूत्रों के अनुसार, यह डील रद्द करना केवल एक रक्षा परियोजना पर असर नहीं डालेगा, बल्कि इससे भारत की रणनीतिक योजनाओं पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
भारत की रणनीति पर संभावित खतरे
बांग्लादेश का यह कदम भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति और दक्षिण एशिया में रक्षा सहयोग को झटका देने वाला माना जा रहा है। इससे निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकते हैं:
- यह अन्य पड़ोसी देशों में असंतोष का संकेत बन सकता है, जिससे भारत की क्षेत्रीय छवि प्रभावित हो सकती है।
- चीन और पाकिस्तान को बांग्लादेश में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ाने का मौका मिल सकता है।
- बंगाल की खाड़ी में भारत की समुद्री सुरक्षा और निगरानी योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति भी अहम कारण
जानकारों का कहना है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और सेना के बीच मतभेद भी इस निर्णय के पीछे एक बड़ा कारक हैं। आर्मी चीफ जनरल वाकर-उज-जमान ने दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने की मांग की है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई है। वहीं भारत की ओर से लगाए गए आयात प्रतिबंधों ने अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डाला है, जो द्विपक्षीय तनाव को और बढ़ा रहे हैं।
भविष्य की दिशा
भारत की ओर से इस डील पर फिलहाल औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना भारत-बांग्लादेश के रणनीतिक रिश्तों के लिए चेतावनी की घंटी है।
अब देखना होगा कि भारत इस स्थिति से राजनयिक समाधान निकालता है या इस मुद्दे को बड़े रणनीतिक बदलाव के संकेत के रूप में लेता है।
निष्कर्षतः, इस रक्षा डील का रद्द होना केवल एक अनुबंध का अंत नहीं है, बल्कि यह भारत-बांग्लादेश रिश्तों के बदलते समीकरण की ओर भी इशारा करता है। दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका और भविष्य की रणनीति के लिहाज से यह एक संवेदनशील मोड़ साबित हो सकता है।
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