बांग्लादेश संपादकों की परिषद ने आतंकरोधी अध्यादेश में “गैग क्लॉज” को बताया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला

जीजी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली,21 मई ।
बांग्लादेश में मीडिया स्वतंत्रता पर एक बार फिर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बांग्लादेश संपादकों की परिषद (Editors’ Council) ने सोमवार को एक तीव्र और सख्त बयान जारी कर सरकार के नए आतंकरोधी (संशोधन) अध्यादेश 2025 में जोड़े गए “गैग क्लॉज” को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है।

इस विवादित धारा 20(ख)(1)(ई) को 12 मई को गजट नोटिफिकेशन के जरिए लागू किया गया, जिसके तहत अब प्रतिबंधित घोषित की जा चुकी आवामी लीग के समर्थन में किसी भी प्रकार की प्रचार गतिविधि—चाहे वह प्रेस, सोशल मीडिया, जनसभा, या प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हो—को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है।

संपादकों की परिषद ने इस प्रावधान को “गंभीर चिंता का विषय” बताते हुए कहा, “यह क्लॉज न केवल प्रेस की स्वतंत्रता को कुचलता है, बल्कि अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार पर सीधा हमला है। यह नियम सत्ता में बैठे गैर-निर्वाचित अंतरिम सरकार द्वारा थोपा गया है, जिसकी वैधता पर ही सवाल खड़े होते हैं।”

संगठन ने चेताया कि यह क्लॉज “दुरुपयोग के लिए खुला दरवाजा” है, और भविष्य में किसी भी असहमति की आवाज को आतंकवाद के नाम पर दबाने का खतरनाक उदाहरण बन सकता है। परिषद ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान लोकतांत्रिक सिद्धांतों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के विरुद्ध है।

“मीडिया को आतंकवाद के नाम पर चुप कराना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि अंतरिम सत्ता को जनता की आलोचना और सच्चाई से डर लगने लगा है,” परिषद के बयान में कहा गया।

संपादकों ने इस गैग क्लॉज को तुरंत निलंबित करने और इसकी विस्तृत समीक्षा की मांग की है, ताकि बांग्लादेश में लोकतंत्र की बची-खुची सांसें पूरी तरह खत्म न हो जाएं।

पत्रकारों, लेखकों और अभिव्यक्ति के पैरोकारों के लिए यह एक निर्णायक घड़ी है—क्या वे चुप बैठेंगे या इस ‘कानूनी सेंसरशिप’ के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे?

बांग्लादेश का मीडिया परिदृश्य इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां आज़ादी की आवाज को कुचलने के लिए कानून की आड़ ली जा रही है। अब यह देखना शेष है कि क्या देश की न्यायपालिका और नागरिक समाज इस खतरनाक मोड़ पर लोकतंत्र का झंडा उठाने आगे आएंगे या नहीं।

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