ख़ून, डर और सेंसरशिप: बांग्लादेश में मीडिया पर यूनुस का क्रूर हमला

GG News Bureau

ढाका 6 मई 2025 – वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे 2025 पर जब दुनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जश्न मना रही थी , तब बांग्लादेश से एक भयावह तस्वीर सामने आई है। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के आठ महीनों में ही देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर ऐसा हमला हुआ है, जिसकी मिसाल पहले नहीं मिलती।

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, केवल आठ महीनों में 640 पत्रकारों को उत्पीड़न, हिंसा या कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। यह संख्या केवल एक आँकड़ा नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों आवाज़ों का प्रतीक है जिन्हें चुप कराने की कोशिश हो रही है।

उत्पीड़न का पूरा लेखा-जोखा

रिपोर्ट में सामने आए आँकड़े चौंकाने वाले हैं:

  • 182 पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें से कई राजनीति से प्रेरित या झूठे हैं।
  • 206 पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के मामले सामने आए — जिनमें मारपीट, अपहरण, धमकियाँ और हमले शामिल हैं।
  • 167 पत्रकारों को मान्यता (accreditation) देने से इनकार कर दिया गया, जिससे उनकी रिपोर्टिंग की क्षमता छिन गई।
  • बांग्लादेश की फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (BFIU) और काउंटर टेररिज़्म एंड ट्रांसनेशनल क्राइम यूनिट (CTTC) ने मीडिया संस्थानों और पत्रकारों पर मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों के तहत जांच शुरू कर दी है।

यह सब कोई संयोग नहीं है — यह एक सुनियोजित अभियान है, जिसका मकसद स्वतंत्र मीडिया की रीढ़ तोड़ना और सरकार की पकड़ मजबूत करना है।

एक वैश्विक प्रतीक का पतन

मोहम्मद यूनुस, जिन्होंने गरीबों को सशक्त करने के लिए माइक्रोफाइनेंस मॉडल बनाया और दुनियाभर में सराहना पाई, जब राजनीति में आए तो उम्मीदें बहुत थीं। लेकिन उनकी अंतरिम सरकार ने इन उम्मीदों को धोखा दिया है।

आज वही यूनुस, जो कभी परिवर्तन और पारदर्शिता के प्रतीक थे, बांग्लादेश में नागरिक स्वतंत्रता के सबसे बड़े हमले का नेतृत्व कर रहे हैं।

पत्रकारिता को अपराध बनाना

182 आपराधिक मामले यह दिखाते हैं कि कानून को किस तरह पत्रकारों के खिलाफ हथियार बना दिया गया है। जो पत्रकार सत्ता के भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन या चुनावी अनियमितताओं की पड़ताल करते हैं, उन्हें अब अदालतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, मानहानि, देशद्रोह और आतंकवाद जैसे आरोपों में फँसाया जा रहा है।

वहीं, 167 पत्रकारों को मान्यता से वंचित करना उनके पेशेवर जीवन को ख़त्म करने जैसा है। बिना मान्यता के पत्रकार सरकार की ब्रीफिंग्स, घटनाओं और संसाधनों तक पहुँच नहीं बना सकते।

हिंसा का बढ़ता दायरा

सबसे खतरनाक आँकड़ा है — 206 पत्रकारों पर हिंसक हमले। राजनीतिक गुंडों, पुलिस की प्रताड़ना और संगठित भीड़ के हमलों ने एक खौफ का माहौल बना दिया है। कई मामलों में पुलिस की मिलीभगत या निष्क्रियता की रिपोर्टें सामने आई हैं, जिससे साफ संदेश जाता है कि राज्य इस हिंसा को बढ़ावा दे रहा है।

परिणामस्वरूप, आत्म-सेंसरशिप बढ़ रही है। पत्रकार संवेदनशील मुद्दों से कतराते हैं, संपादक साहसी स्टोरीज को रोकते हैं, और मीडिया संस्थान जोखिम उठाने से डरने लगे हैं।

आर्थिक गला घोंटने की रणनीति

BFIU और CTTC के जरिए वित्तीय जांचें एक और बड़ा हथियार बन गई हैं। मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के नाम पर मीडिया संस्थानों के बैंक खाते फ्रीज किए जा रहे हैं, विज्ञापनदाता डर के मारे हाथ खींच रहे हैं, और मीडिया संस्थानों को या तो स्टाफ घटाना पड़ रहा है या दरवाजे बंद करने पड़ रहे हैं।

यह वही रणनीति है जो दुनियाभर की तानाशाही सरकारें अपनाती हैं — कानून की आड़ में असहमति की आवाज़ों को दबाना।

अंतरराष्ट्रीय चुप्पी और क्षेत्रीय खतरे

सबसे खतरनाक बात है — अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी। बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति और यूनुस की वैश्विक छवि ने उनके शासन को अब तक वैश्विक आलोचना से बचा रखा है। पश्चिमी देश, जो व्यापार और सुरक्षा संबंधों में रुचि रखते हैं, खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं।

लेकिन इसकी कीमत चुकानी होगी। दक्षिण एशिया के अन्य देश इस घटनाक्रम को देख रहे हैं, और अगर यूनुस सरकार बिना किसी सज़ा के प्रेस की स्वतंत्रता कुचलने में सफल रही, तो यह एक खतरनाक नज़ीर बन सकती है।

लोकतंत्र पर हमला

यह सिर्फ मीडिया संकट नहीं है — यह लोकतंत्र का संकट है। स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की ऑक्सीजन है। उसके बिना भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन और सत्ता का दुरुपयोग खुलकर पनपता है।

यूनुस सरकार का यह हमला सिर्फ पत्रकारों पर नहीं, बल्कि हर उस नागरिक के अधिकार पर है, जो जानकारी पाने, बहस करने और सत्ता को जवाबदेह बनाने का हक़ रखता है।

प्रतिरोध की उम्मीद

इस सब के बीच, उम्मीद की किरणें बाकी हैं। स्वतंत्र पत्रकार, ब्लॉगर्स और भूमिगत मीडिया नेटवर्क अब भी सच्चाई सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन की ज़रूरत है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान, मानवाधिकार संगठन और लोकतांत्रिक सरकारों को अब खुलकर सामने आना चाहिए। सरकार पर सार्वजनिक दबाव, उत्पीड़न में शामिल अधिकारियों पर प्रतिबंध, और स्वतंत्र मीडिया को वित्तीय और नैतिक समर्थन बेहद ज़रूरी है।

 बांग्लादेश की आत्मा की लड़ाई

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे पर बांग्लादेश का संदेश साफ है — प्रेस की स्वतंत्रता की लड़ाई, देश की आत्मा की लड़ाई है। मोहम्मद यूनुस, जो कभी सामाजिक परिवर्तन के प्रतीक थे, आज उस सरकार के मुखिया हैं जो उन मूल्यों को कुचल रही है, जिनसे उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी।

अब दुनिया को चुप रहना छोड़कर आगे आना होगा। चुप्पी भी अपराध है — और इसकी कीमत केवल बांग्लादेश के पत्रकार नहीं, बल्कि वहां की जनता और लोकतंत्र चुकाएंगे।

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