बारामती में टीपू सुल्तान जयंती पर रैली की अनुमति पर विवाद: AIMIM पहुंची हाई कोर्ट

समग्र समाचार सेवा
महाराष्ट्र
,12 दिसंबर।

महाराष्ट्र के बारामती में टीपू सुल्तान की जयंती पर रैली निकालने की अनुमति न मिलने के बाद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया। इस मामले में गुरुवार को हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया कि क्या देश में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने या रैली निकालने पर कोई प्रतिबंध है।

महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि टीपू सुल्तान की जयंती मनाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हालांकि, राज्य के एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर क्रांति हिरवाले ने दलील देते हुए बताया कि पुलिस को आशंका है कि रैली से कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। उन्होंने कहा, “पुलिस के अनुसार, दूसरे समुदाय ने रैली का विरोध करने की बात कही है, जिससे संभावित समस्या हो सकती है।”

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील तपन थट्टे और विवेक अरोटे ने कोर्ट में दलील दी कि संविधान में रानी लक्ष्मीबाई और टीपू सुल्तान दोनों की तस्वीरें हैं। उन्होंने कहा कि रैली आयोजित करना संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है और इसे रोकना अनुचित है।

जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस शिवकुमार डिगे की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “क्या इस देश में टीपू सुल्तान की जयंती पर रैली आयोजित करने पर कोई प्रतिबंध है? कानून व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का काम है। अगर कोई समस्या है, तो आप रूट बदल सकते हैं।”

सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि पिछले साल भी इसी मुद्दे पर परेशानी हुई थी। उन्होंने कहा कि दूसरा समुदाय रैली का विरोध कर रहा है, जिससे शांति व्यवस्था भंग होने का खतरा है।

हाई कोर्ट ने बारामती के पुलिस अधीक्षक को इस मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि रैली के आयोजन में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।

AIMIM ने बारामती में टीपू सुल्तान की जयंती पर रैली निकालने की अनुमति मांगी थी, जिसे पुलिस ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि रैली से कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है। इसके बाद AIMIM ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां अब इस मामले पर सुनवाई जारी है।

इस घटना ने एक बार फिर महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव और कानून व्यवस्था के मुद्दे को उजागर किया है। राज्य सरकार और पुलिस के सामने अब चुनौती है कि संवैधानिक अधिकारों और शांति व्यवस्था के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।

अगली सुनवाई में कोर्ट का क्या रुख होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

 

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