सावधान रहें: सोशल मीडिया पर फैल सकती है #Pakistan प्रायोजित प्रोपेगंडा की बाढ़

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,8 मई ।
आगामी दिनों में सोशल मीडिया पर एक सुनियोजित सूचना युद्ध छिड़ने की संभावना है। कई विश्लेषकों और विशेषज्ञों ने पहले ही संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान प्रायोजित प्रोपेगंडा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर व्यापक रूप से फैलाया जा सकता है। इसका मकसद स्पष्ट है — भारतीय जनमानस को भ्रमित करना, भारतीय सशस्त्र बलों की छवि को धूमिल करना, और देश के अंदर अस्थिरता को बढ़ावा देना।

यह प्रोपेगंडा अक्सर “ब्रेकिंग न्यूज़”, “सीक्रेट डॉक्युमेंट्स लीक”, या “गुप्त सूत्रों” के नाम पर सामने आता है। इसमें भारतीय सेना या सरकार के खिलाफ झूठे दावे, मनगढ़ंत तस्वीरें, एडिटेड वीडियो या विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स को संदर्भ बनाकर प्रचारित किया जाता है। इनका उद्देश्य न केवल लोगों में अविश्वास फैलाना है, बल्कि समाज में विभाजन की रेखाएँ खींचना भी होता है।

सूचना आज के दौर का सबसे प्रभावशाली हथियार बन चुकी है। जब पारंपरिक युद्धों की सीमाएँ धुंधली हो रही हैं, तब साइबर और सूचना युद्ध नए मोर्चे बन चुके हैं। पाकिस्तान लंबे समय से भारत के खिलाफ ‘सूचना-युद्ध’ का सहारा लेता आया है, और हर संवेदनशील स्थिति में सोशल मीडिया पर अफवाहों का जाल बिछाया जाता है।

  1. हर सूचना को जांचें — कोई भी सनसनीखेज दावा पढ़ते ही उस पर विश्वास न करें। स्रोत की प्रामाणिकता की जाँच करें।

  2. ऑफिशियल सोर्सेस पर भरोसा करें — रक्षा मंत्रालय, PIB, और मान्यता प्राप्त मीडिया संस्थानों से आई जानकारी ही विश्वसनीय मानी जानी चाहिए।

  3. शेयर करने से पहले सोचें — एक झूठी जानकारी को साझा करना भी उसी प्रोपेगंडा में भागीदारी बन सकता है।

  4. संवेदनशील मुद्दों पर मौन बनाएं रखें — खासकर तब जब स्थिति स्पष्ट न हो या आधिकारिक पुष्टि का इंतजार हो।

  5. सोशल मीडिया युद्ध का हथियार न बनें — याद रखें, आपका साझा किया गया एक पोस्ट लाखों लोगों तक पहुंच सकता है और उसका असर व्यापक हो सकता है।

आज जब सूचनाओं की बाढ़ में सत्य और असत्य के बीच की रेखा धुंधली हो रही है, तब नागरिकों की जागरूकता ही सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है। हमें न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करना होगा कि वे #Pakistan प्रायोजित किसी भी प्रकार के प्रोपेगंडा का शिकार न बनें। राष्ट्र की सुरक्षा केवल सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि हमारी सोच और संचार की जिम्मेदारी में भी निहित है।

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