बंगाल में तृणमूल का खेला,असम व पुडुचेरी में भाजपा का बम बम भोला ..

*कुमार राकेश 

बंगाल में तृणमूल का खेला,असम व पुडुचेरी में भाजपा का मेला व बम बम भोला..बंगाल में भाजपा पस्त तो असम व पुडुचेरी में मस्त,पश्चिम बंगाल में तो खेला हो गया.जी हाँ, पूरा खेला हो गया.तृणमूल मस्त तो भाजपा पस्त .भाजपा का बंगाल  में सरकार बनाने का सपना ध्वस्त हो गया,जबकि तृणमूल कांग्रेस का हौसला पहले से ज्यादा बढ़ गया.बंगाल में 71 प्रतिशत हिन्दू आबादी के बावजूद भाजपा जैसी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.जबकि असम और पुडुचेरी में भाजपा का परचम लहराया.पुडुचेरी के इतिहास में भाजपा का सरकार बनना दक्षिण राज्यों में पार्टी की नयी कड़ी कही जा सकती हैं.केरल में वामपंथ एक बार फिर से सरकार में आने वाले हैं जबकि तमिलनाडु में डीएमके ने अपनी आशा के अनुरूप सरकार बनाने जा रही है.केरल में भाजपा को 11.30 प्रतिशत मत का मिलना प्रदेश में  पार्टी  के उज्जवल भविष्य को दर्शा रहा हैं .

चुनाव परिणामो के मद्देनजर  हम पहले पश्चिम बंगाल की बात करते हैं .चुनाव जीत के बाद ही तृणमूल कार्यकर्त्ताओ का भाजपा के प्रति फिर से हिंसात्मक व्यवहार चिंताजनक है. इससे  ये साफ़ हो चला है आने वाला बंगाल अब कैसा होगा? 2 मई के शाम होते ही तृणमूल कार्यकर्ताओ ने हुगली ,दुर्गापुर,शिवपुर,हल्दिया,नंदीग्राम  सहित कई क्षेत्रों में भाजपा दफ्तरों को हिंसा की आग में झोक दिया .पर ममता दीदी सब कुछ जानकर भी बिलकुल शांत रही .ऐसा क्यों ?उन धटनाओ के  बाद ममता दीदी ने मीडिया के समक्ष भी कई बार आई,लेकिन उन घटनाओ का जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझा.ये एक सवाल हैं  बंगाल की जनता व विकास के लिए.क्या बंगाल भारत में हिंसात्मक राजनीति का सूत्रधार बनेगा? ये भी एक बड़ा सवाल है,ममता दीदी से भी .

दीदी  ओ दीदी ,सोचिये,चिंतन कीजिये,क्योकि आपको तो अभी बहुत दूर जाना है.आपके समर्थक दलों के नेता गण एक बार फिर आपको प्रधानमंत्री पद के समक्ष खड़ा करने में जुट गुए है.जबकि अगले 2024 तक तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ही हैं .शायद आगे भी रहे.

इस बार बंगाल चुनाव ने एक नया इतिहास रचा,जो नेता है वही चुनाव हार गया.देखिये प्रकृति का कमाल,ममता दीदी की पार्टी जीत गयी,परन्तु वो खुद हार गई.कुल 1957 मतों से हारी.उनके प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम से अपनी ममता दीदी को हरा दिया.कोई शब्द नहीं थे,उनके पास.क्या बोलती.उनके इस जीत- हार को लेकर मीडिया में करीब 2 घंटे तक खेला चला.परन्तु चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण के बाद नया खेला.ममता दीदी हार गयी. पर ये हार उनके समर्थको को नहीं पचा.उन सबने शुभेंदु अधिकारी के गाड़ियों पर पत्थरबाज़ी की.शुभेंदु किसी प्रकार अपनी जान बचाकर भागे. फिर हिंसा ?? तो क्या ये विशेष परिचय है ममता दीदी की पार्टी का??

यदि ऐसा रहा तो उनके लिए,बंगाल के लिए ,देश के विकास के लिए ममता दीदी का डगर बहुत  मुश्किल भरा हुआ होगा.आज के हिंसात्मक रवैये से हमें इसी प्रदेश के कई दिव्य विभूतियों की  याद आती हैं .उन सबो का  बंगाल और देश के लिए समय समय पर अमूल्य योगदान रहा हैं . बंगाल कभी स्वामी रामकृष्ण परमहंस,स्वामी विवेकानंद,रविन्द्र नाथ टैगोर, बंकिम चन्द्र,ईश्वर चंद विद्यासागर,राजा राम मोहन राय,बिमल मित्र,खुदीराम बोस,सुभाष चन्द्र बोस, श्याम प्रसाद मुखेर्जी,सत्यजीत रे, ,ज्योति बसु,प्रणव मुखेर्जी का प्रदेश जैसे अनेक विभूतियों से जाना जाता रहा है ,परन्तु क्या बंगाल अब ममता दीदी के कुछ लम्पट कार्यकर्ताओ की भूमिका से  जाना जायेगा? क्या ममता दीदी का नया बंगाल सिर्फ वोट की राजनीति की वजह से उन महापुरुषों के   रचनात्मक योगदान  को  भुला देगा?

ममता दीदी ,ओ दीदी ,आपको ये कोई हक नहीं है कि आप हमारे महापुरुषो के ऐतिहासिक बंगाल के साथ ऐसा भद्दा मजाक करे.संभलिये और संभालिये अपने वानर सेना को.जो कि समय की जरुरत है.आप से उम्मीद है ,बंगाल की जनता को उम्मीद हैं जो पिछले दस वर्षो में नहीं किया वो आने वाले 5 वर्षो में कर दे.भाजपा के  सोनार बांगला के स्वप्न को आप पूरा कर दे.दीदी,आपको पता है-चुनाव कैसे जीता जाता है,जीत भी गयी,परन्तु अब प्रदेश को जितवाए.प्रदेश में विकास का विश्व में एक नया कीर्तिमान रिकार्ड बनवाए. जिससे आप इतिहास में अमर हो जाये.

भाजपा के दृष्टिकोण से देखा जाये तो सभी विश्लेषको व पार्टी  के रणनीतिकारो के सामने एक बड़ा सवाल पैदा हो गया है कि बंगाल में ये कैसे हो गया ? क्यों हुआ? जय बंगला के समक्ष जय श्री राम का क्या हुआ? केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उन 200 पार दावों की हवा कैसे निकली? क्यों निकली? भाजपा के दिग्गज बाबुल सुप्रियो ,स्वप्न  दासगुप्ता,राहुल सिन्हा,वैशाली डालमिया,लॉकेट चटर्जी जैसो को हार का मुंह क्यों देखना पड़ा? आसोल परिवर्तन का क्या हुआ? कभी 200 पार का नारा लगाने  वाली भाजपा अब 80 सीटों पर ही क्यों सिमट गयी ? ऐसे कई सवाल है ,जिसका जवाब भाजपा को खोजना होगा.जानना होगा.उस पर कार्य कर भविष्य की रणनीति पर अभी से अमल करना होगा.

पश्चिम बंगाल के नतीजों पर विश्लेषण के बाद लगता है कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के मत प्रतिशत में 9.8 प्रतिशत का फर्क है.तृणमूल को 47.9 प्रतिशत मत मिले हैं ,जबकि भाजपा को 38.1 प्रतिशत.पिछले लोक सभा चुनाव की तुलना में भाजपा का मत प्रतिशत करीब 4 प्रतिशत कम हो गया,जबकि तृणमूल के मत प्रतिशत में 4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी.वैसे आंकड़ो के आधार पर सरकार बनानें के लिए कम से कम 45 प्रतिशत मतों की जरुरत होती हैं.इस मामले में ममता दीदी के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दावा सौ फीसदी सही रहा.श्री किशोर का पिछले दिसम्बर 2020 में ही दावा था कि भाजपा दो अंको तक सिमट कर रह जाएगी.आजकी स्थित में  वही हुआ.उनके अनुसार किसी का लोकप्रिय होना अलग बात है ,पर उस लोकप्रियता के नाम पर वोट मिल जाना दूसरी बात है .

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों की माने तो पश्चिम बंगाल चुनाव में सिर्फ  भाजपा के एक केन्द्रीय  वरिष्ठ नेता की चली.उन्होंने सबको किनारे पर रखा.उस नेता ने  तो चुनाव तैयारियों से लेकर उम्मीदवारों के चयन सहित कई कार्यो में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा,प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय,प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष,शुभेंदु अधिकारी ,मुकुल राय जैसो नेताओ के कई महत्वपूर्ण मशविरो को भी दरकिनार कर दिया था .उसके अलावा भी ऐसी कई गलतियाँ हुयी व की गयी जिसकी वजह से पार्टी को वहां करारी हार का मुंह देखना पड़ा. भाजपा की 100 सीटें ऐसी है जहाँ पर उम्मीदवार 100० मतों से कम से हारा. बताया जा रहा है कि चुनाव प्रबंधन के कई पहलुओ में भी कई परस्पर सहयोग व समन्वय का अभाव था.ध्रुवीकरण का दाँव उल्टा पड़ गया.जबकि मुसलमान मत कांग्रेस और वाम दलों को नहीं जाकर एकमुश्त सिर्फ  तृणमूल कांग्रेस को मिले.

बंगाल में भाजपा की हार के कारणों में दिल्ली चुनाव की तरह कई गलतियाँ भी दोहराई गयी.जैसे प्रदेश के लिए किसी नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया गया,जबकि भाजपा के पास कई चेहरे थे.हेविवेट चुनाव प्रचार का जमीनी  स्तर पर नहीं पहुँच पाना,अपनों की नाराजगी,बाहरी नेताओ का ज्यादा जमावड़ा.मौन मतदाताओ को नहीं पहचान पाना जैसे कई कारण रहे जो भाजपा के लिए गले की फांस बने.आने वाले समय में भाजपा को अपनी रणनीतियों में कई बदलाव करने होंगे.तभी पार्टी की इज्ज़त बच सकती है .2022 में आठ  राज्यों में विधान सभा चुनाव होंगे,जिसमे जम्मू कश्मीर भी शामिल हैं.इन राज्यों में उत्तरप्रदेश ,उत्तराखंड,मणिपुर,गोवा ,पंजाब,हिमाचल प्रदेश,गुजरात शामिल हैं.

असम और पुडुचेरी में भाजपा का चुनाव प्रबंधन बंगाल के मुकाबले कई मामलो में बेहतर रहा.असम में नंबर दो के मंत्री हेमन्त विश्व सरमा का योगदान अद्भुत बताया जा रहा है.उस व्यक्ति के प्रबंधन शैली के मुरीद स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी भी बताये जाते हैं .वैसे वहां भी कई केन्द्रीय नेताओ का योगदान रहा.जो ध्रुवीकरण बंगाल में काम नहीं आया ,वो असम में काम कर गया.असम में भाजपा को पाने बलबूते 33.4 प्रतिशत मत मिले जबकि पुडुचेरी में 13.66 प्रतिशत.वो भी ऐतिहासिक .पहली बार.पुडुचेरी भाजपा के लिए एक नया व विशेष उपहार है.जो आने वाले दिनों में तमिलनाडु और केरल में भाजपा राज के लिए स्वर्णिम द्वार बनेगा.तमिलनाडु में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा है,जबकि समर्थक पार्टी अन्नाद्रमुक सत्ता से बाहर हो गयी. केरल में भाजपा के मत प्रतिशत में काफी वृद्धि हुयी है ,परन्तु अपेक्षाकृत सीटें नहीं मिली हैं .केरल में भाजपा को 11.30 प्रतिशत मत हासिल हुए हैं .ये भी एक नया ऐतिहासिक रिकार्ड है.

यदि हम इन पांच राज्यों के चनाव विश्लेषण को देखे तो सभी राज्यों में भाजपा हर तरह से केंद्र  बिंदु  रही.   मौजूदा स्थिति में  देश में एक नया समीकरण बन गया है .भाजपा बनाम सभी पार्टियाँ हो गयी हैं. सबसे खास्ता हाल कांग्रेस का हो गया है.कभी सभी के सर पर नाचने व नचवाने वाली पार्टी बेचारी हो गयी है.  प्रधानमंत्री श्री मोदी के अनुसार  कांग्रेस से  तो देश मुक्त होने लगा  है.

जरा सोचिये,इन सभी प्रदेशो में कभी कांग्रेस का परचम लहराया करता था,आज झंडा तो दूर डंडा वाला नहीं मिल रहा है .लगता है भारत जल्द ही कांग्रेस मुक्त हो जायेगा,लेकिन भाजपा को भी अपनी रणनीतियों में कई प्रकार के बदलाव करने पड़ेगे.नहीं तो उनके लिए 2024 का लोक सभा चुनाव चुनौतियों से पूर्ण होगा.साथ ही उसके पहले 2022 में होने वाले 7 राज्यों के विधान सभा चुनाव भी .

*कुमार राकेश

 

 

 

 

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