
* प्रस्तुति -कुमार राकेश
तीन दोस्त भंडारे मे भोजन कर रहे थे कि —
उनमें से पहला बोला….” काश ” हम भी ऐसे भंडारा कर पाते …..
दूसरा बोला…. हां यार ….सैलरी आने से पहले जाने के रास्ते बनाकर आती हैं …
तीसरा बोला…. खर्चे इतने सारे होते है तो कहा से करें भंडारा ….
पास बैठे एक गुरु महाराज भी भंडारे का आनंद ले रहे थे वो उन दोस्तों की बाते सुन रहे थे ;
गुरु जी उन तीनों से बोले….बेटा भंडारा करने के लिए धन नहीं केवल अच्छे मन की जरूरत होती है ….वह तीनो आश्चर्यचकित होकर गुरु जी की ओर देखने लगे ….
गुरु जी ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा बच्चों …..बिस्कुट का पैकेट लो और उन्हें चीटियों के स्थान पर बारीक बनाकर उनके खाने के लिए रख दो देखना अनेकों चीटियां उन्हें खुश होकर खाएगी ,
हो गया भंडारा …..
गेहूं बाजरा (अनाज) के दाने लाओ उसे बिखेर दो चिडिया कबूतर आकर खाऐंगे …
हो गया भंडारा …
थोड़ा टाइट गुदा आटा घर से लाओ और किसी तालाब में हाथ से गोली बना का कर मछलियों को डालो ,
हो गया भंडारा….
तो आप कब कर रहे हैं —- “भंडारा”
ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी सब्जी का आनंद ले रहे है ना इस अन्न पर ईश्वर ने हमारा नाम लिखा हुआ है..
हम भी जीव जन्तुओं के लिए उनके नाम के भोजन का प्रबंध करने के लिए जो भी करोगे वो भी उस ऊपरवाले की इच्छाओं से होगा ….
यही तो है भंडारा …जाने कौन कहा से आ रहा है या कोई कही जा रहा है किसी को पता भी नहीं होता कि किसको कहाँ से क्या मिलेगा ….सब उसी की माया है …..
*ऐसे अच्छे दान पुण्य के काम करते रहिए, अपार प्रसन्नता मिलती रहेगी
एक कदम सेवा की तरफ बढ़ाएं जीवन में अपार खुशियां व ईश्वर की कृपा प्राप्त करें ।
ईश्वर आप सभी का मंगल ही मंगल करें ।
*आप सब सदैव प्रसन्न रहें*
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