भारत कांग्रेस मुक्त होने की राह पर चल पड़ा है?

कुमार राकेश  : लगता है भाजपा नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी की जन घोषणा ”कांग्रेस मुक्त भारत” जल्द ही सही साबित हो सकती है .कांग्रेस अपनी शैली से खुद को ख़त्म करने में जुट गयी है .कांग्रेस में मातम का आलम है तो भाजपा के बल्ले बल्ले.

देश में एक एक राज्य से कांग्रेस खुद को समाप्त करने में जुट गयी हैं.कांग्रेस का दुश्मन स्वयं कांग्रेस.कांग्रेस का आलाकमान अभी भी पुराने राजसी भाव में हैं.आलकमान का प्रभाव समाप्त प्राय सा दिखने लगा हैं.क्षेत्रीय नेता केन्द्रीय आलाकमान पर हावी हो गए हैं.अपने अबोध पुत्र के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद उनकी माता और अध्यक्ष सोनिया गाँधी को वो पद दिया गया.सोनिया गाँधी धृतराष्ट्र भाव में हैं. कांग्रेस में पुराना बनाम नया का जंग छिड़ गया है.कांग्रेस में परिवारवाद सबसे महत्वपूर्ण है ,बाकी मुद्दे गौण.इससे यही लगता है देश कांग्रेस मुक्त भारत की राह पर चल पड़ा है .
कांग्रेस के युवा नेता संजय निरुपम,जितिन प्रसाद और प्रिया दत्त जैसे नेताओ ने पार्टी में चल रहे ताज़ा प्रकरणों पर गंभीर चिंता ज़ाहिर की है.इन सभी का मानना है कि जो सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हुआ ,उससे बचा जा सकता था.जितिन प्रसाद ने इस मसले पर ट्वीट भी किया है.श्री प्रसाद ने हमने दो युवा नेता खो दिए हैं .इसके पूर्व पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी कहा था जब सब घोड़े अस्तबल से निकल जायेंगे तब जाकर हम जगेगे .
पिछले 3-4 वर्षो में कई जमीनी नेता कांग्रेस से निकल चुके हैं.कई जाने की तैयारी में हैं. हाल में मध्य प्रदेश  में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का हाथ थाम लिया.उन्हें कांग्रेस के हाथ से भाजपा का साथ ज्यादा माकूल लगा.वह आज आनंद में बताये जा रहे हैं .

उनके पहले असम में हेमंत विश्व शर्मा कांग्रेस छोड़ गए थे.आज भाजपा सरकार में मंत्री है.ताक़तवर हैं. हरियाणा से अशोक तंवर पार्टी छोड़ गए.त्रिपुरा से किरीट बर्मन ,गुजरात से अल्पेश ठाकोर,झारखण्ड से अजोय कुमार पार्टी छोड़कर चले गए.आंध्रप्रदेश के जगन मोहन रेड्डी को पार्टी छोड़ने का माहौल बनाया गया.वो आज मुख्यमंत्री हैं.बिहार से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी आज नीतीश सरकार में मंत्री हैं .पंजाब में  नवजोत सिद्धू भी किनारे कर दिए गए हैं.नयी खबर के अनुसार ,महाराष्ट्र से मिलिंद देवड़ा,संजय निरुपम  और उत्तरप्रदेश से आर पी एन सिंह,जितिन प्रसाद  सहित कई नेता भी कई कारणों से नाराज़ बताये जा रहे हैं.ये सभी जमीनी नेता है.उत्तर –पूर्व राज्यों में भी कांग्रेस का सफाया हो चुका हैं.बिहार,उत्तरप्रदेश,गुजरात में कांग्रेस पहले से बैक फुट पर है.ओडिशा,पश्चिम बंगाल की स्थिति लगभग वैसी ही है. 

राजस्थान,मध्य प्रदेश या कोई अन्य प्रदेश,सभी राज्यों में कांग्रेस में अन्दर  नये और पुराने का भी संघर्ष है.नए को पुराने नेता निपटा रहे हैं.स्वाभाविक है कि ऐसे भी पार्टी को बचाने वाला कोई नहीं रहेगा.अब मंगलवार को सचिन पायलट कांग्रेस से बाहर कर दिए गए.कांग्रेस में पुराना जीता.नया हारा.कांग्रेस अब बूढों के भरोसे चलेगी.युवा कांग्रेस को नहीं चाहिए .राजस्थान में वही हुआ,जो अशोक गहलोत चाहते थे.गहलोत ने साबित किया,वो दबंग है और रहेगे.लेकिन उन्होंने अपनी जिद की वजह से कांग्रेस का बड़ा नुकसान कर गए.बड़े दिल की बात करने वाले गहलोत ने अपना छोटापन दिखाया.अपने स्वार्थ के लिए कांग्रेस को विभाजित करवा दिया .सचिन पायलट को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखवा दिया.विधायक दल की आपात बैठक बुलाकर पायलट के साथ उनके समर्थक दो मंत्रियों रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह को भी गहलोत मंत्रिमडल से बर्खास्त कर दिया गया. केंद्र का कोई भी नेता अशोक गहलोत की इच्छा के खिलाफ  नहीं जा सकता था.वही हुआ.

 ताज़ा स्थिति के मद्देनजर,प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर संकट दिखने लगा है .सचिन पायलट के संख्या बल के दावा के बाद अशोक गहलोत को शक्ति परीक्षण से गुजरना होगा.सभी तरह की भूमिका लिखी जा चुकी है. सचिन समर्थक विधायक दीपेन्द्र शेखावत ने विधान सभा में शक्ति परीक्षण कि मांग की है .पायलट का दावा है कि उनके साथ 25 विधायको का समर्थन है.यदि पायलट के दावे पर भरोसा किया जाये 200 सदस्यों वाले राजस्थान विधानसभा ने बहुमत के लिए 101 सदस्यों कि जरुरत होगी.200 में 25 विधायको को घटा दिया जाये तो पूरी संख्या 175 होती हैं.175 कि संख्या बल में बहुमत के लिए 88 सदस्यों की जरुरत होगी.पहले कांग्रेस के पास 123 की संख्या थी. जो राज्यसभा चुनाव में वोटिंग हुयी थी.इस तरह कांग्रेस सरकार बच सकती है.परन्तु यदि वो 25 विधायक शक्ति परीक्षण में हिस्सा लेते हैं तो कांग्रेस के लिए मुश्किल स्थिति हो सकती हैं.123 में 25 घटाने पर 98 बनती है .ये खतरे का संकेत है.भाजपा कि संख्या 75 हैं. सचिन का ये भी दावा है कि अशोक गहलोत के पास सिर्फ 84 विधायक हैं. अशोक गहलोत ने मंगलवार को 104 विधायको के समर्थन का पत्र राज्यपाल कलराज मिश्र को सौंपा.परन्तु उन दावों के बावजूद उन विधायको को एक होटल में रखने की क्या जरुरत आन पड़ी?ये भी एक बड़ा सवाल हैं.इन विधायको में 3 भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायको ने खुद को अशोक गहलोत सरकार द्वारा बंधक बनाने की बात कही.इससे गहलोत सरकार पर संकट के बादल मडराने लगे है.शायद इसीलिए अशोक गहलोत ने इस पूरे प्रकरण को भाजपा की साज़िश बताया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  का दावा है कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है .

 यदि राजस्थान स्थिति का विश्लेषण किया जाये तो उसके लिए एकमात्र जिम्मेवार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताये जा रहे अशोक गहलोत ने शुरू से ही सचिन पायलट को हर तरह से अपमानित किया .हर मोड़ पर उनके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाया. अशोक गहलोत ने तब सभी  हदे पार कर दी,जब अपने सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर जांच के  आदेश दे दिए गये.भारतीय लोकतंत्र में ये एक ऐतिहासिक घटना है.ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.इससे सचिन बिफर पड़े.गहलोत ने पार्टी और राजनीतिक मर्यादा की सारी सीमायें तोड़ दी.

 सचिन का मसला कोई नया नहीं हैं .उसे पहले भी प्रदेश अध्यक्ष डॉ गिरिजा व्यास को भी अशोक गहलोत ने कई तरीके से अपमानित किया गया था.जिसने भी प्रदेश में अशोक गहलोत का विरोध किया,वो पार्टी से बाहर किया गया.या उसे परिदृश्य से हटा दिया गया. राजस्थान में तेजी से बदलते समीकरणों के तहत सबकुछ सामान्य नहीं है.अब हो भी नहीं सकता.

 अशोक गहलोत का अपना एक चिर परिचित स्टाइल है,जो अब तो नहीं बदलने वाला नहीं.मैंने अशोक गहलोत की राजनीति को बहुत ही करीब से जानने-समझने की कोशिश की है.इसलिए दावे के साथ कह सकता हूँ ,अब वो वाला दौर नहीं रहेगा. राजस्थान में कांग्रेस का ग्राफ अब और नीचे जायेगा.स्वाभाविक है उसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा.

शासन शैली में अशोक गहलोत अपनी  पार्टी के ही दिग्विजय सिंह से कई कदम आगे हैं.उनके राज में एक भी मंत्री उनकी इच्छा के बिना एक भी शासकीय या राजनीतिक या आम जनता का काम नहीं कर सकता. गहलोत के स्टाइल में सिर्फ गहलोत होते हैं और कोई नहीं.जो झुक गया वो ठीक,नहीं तो उसे तोड़ देते हैं. अशोक गहलोत स्वयं को एक  एक सधे हुए व  मझे हुए जादूगर राजनेता मानते है,लेकिन इस  बार वो अपने ही बुने जाल में फंस गए लगते हैं . 

हाल में हुए मध्य प्रदेश और राजस्थान की तुलना की जाये तो दोनों कि स्थितियां व राजनीतिक परिस्थितियाँ अलग अलग हैं.राजस्थान में एक मात्र नेता अशोक गहलोत है ,जबकि मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के साथ कमलनाथ जैसे कई नेता  हैं.दिग्विजय,कमलनाथ ने अपने पुत्रो को स्थापित करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को निपटाया.अशोक गहलोत भी अपने पुत्र के लिए सचिन पायलट को निपटाया.जैसे राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी अपने पुत्र  के लिए पार्टी के सभी काबिल युवा नेताओ को किनारा करने में  जुटी हैं.राजस्थान के परिपेक्ष्य में राजनीतिक नाटक कोई नया नहीं है इस देश में तेजी से बदलते हुए परिदृश्य में ऐसा लग रहा हैं कि भारत कांग्रेस मुक्त होने की  राह पर चल पड़ा है.

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