भारत रत्न श्री नाना जी देशमुख के जन्म दिवस 11 अक्टूबर पर विशेष

समर्पित भारत भक्त: ज्ञानेश्वर नानाजी देशमुख

डॉ ममता पांडेय
“मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं “ध्येय वाक्य* के प्रणेता का जन्मदिन भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट में राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक आयोजन शरदोत्सव*के रूप में मना कर उन्हें अमरता प्रदान की। इस महान प्रेरक व्यक्तित्व के विचारों की जीवंतता सृष्टि के रहने तक रहेगी।

श्रद्धावत रूप से यह बताना चाहूंगी कि प्रस्तुत शोध आलेख का उद्देश्य मां श्रीमती राजाबाई एवं पिता अमृत राव के सपूत चंडिका दास अमृत राव देशमुख जी का पुण्य स्मरण है ।जिनकाव्यक्तिव शब्दों से नहीं कृतित्व अप्रतिम है।उनके संबोधनो ” प्रख्यातसमाजसेवी” “नानाजी”” समर्पित भारत भक्त; राष्ट्रीय स्वयंसेवक के वरिष्ठ प्रचारक; राष्ट्र ऋषि” “राजर्षी ” कुलाधिपति”पद्म विभूषण “” ज्ञानेश्वर ” “भारत रत्न” से विभूषित हुए महान विभूति का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली गांव में शरद पूर्णिमा (जिस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है) के दिन यह बालक अवतरित हुआ ;जैसे नियति ने भी निर्धारित कर दिया हो कि इन 16 कलाओं में से ~ मनद (विचार); पुष्टि (स्वस्थता);धृति (विद्या); शश्नि (तेज);चंद्रिका( शांति );कांति (कीर्ति ) ज्योत्सना (प्रकाश); अंगदा (स्थायित्व); श्री (धन )पूर्ण (पूर्णता ) कर्मशीलता।

इन दिव्य कलाओं से परिपूर्ण इस बालक से बचपन में ही मां पिता का साया उठ गया । उनकी ताई जी लक्ष्मी ने रिसोड कस्बे में इन्हें 11 वर्ष की उम्र में तीसरी कक्षा में प्रवेश दिलाया। मेधा शक्ति एवं प्रज्ञा ने इनको जीवन के अभाव को झेलते हुए आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी। चंडिका दास जी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हुए तिलक से प्रेरित होकर उन्होंने समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में रुचि ली ।नागपुर आने पर उनका जुड़ाव राष्ट्रीय सेवक संघ से हुआ ।संघ संचालक डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार से उनके पारिवारिक संबंध थे । हेडक्वार जी ने नाना जी की प्रतिभा को पहचान लिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में आने के लिए प्रेरित किया। उनका ओजस्वी भाषण सुनकर नानाजी बहुत प्रभावित हुए। 17 स्वयंसेवकों के साथ 1934 में संघ संस्थापक आद्य सर संचालक डॉ० केशवराम बलिराम हेडगेवार ने चंडिका दास अमृत राव देशमुख जी कोसंघ की प्रतिज्ञा दिलवाई।

1940 में डॉ०हेडगेवार जी के निधन के बाद नाना जी ने कई युवकों को महाराष्ट्र की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक चंडिका दास जी ने 1940 में उनकी चिता के सम्मुख अविवाहित रहकर राष्ट्रीय स्वयं संघ का प्रचारक बनने का निर्णय लेकर ;घर छोड़ दिया और अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समर्पित करदिया। संघ के प्रति उनकी श्रद्धा एवं निष्ठा देखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संचालक श्री गुरु जी ने संघ प्रचारक के रूप उन्हें आगरा भेजा ।आगरा में एक ही कमरे में दीनदयाल उपाध्याय जी के साथ रहे ; उनका अपनापन एवं सानिध्य मिला ।यह अपनापन जीवन भर रहा। देशमुख जी उनकीसंघ निष्ठा से अत्यंत प्रभावित हुए।

आगरा के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रांत संघ प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा गया इस क्षेत्र में उन्होंने संघ की लगभग 250 शाखाएं खोली।
देश प्रेम की भावना जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से 1947 में रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर “राष्ट्र धर्म” समाचार पत्र का प्रकाशन लखनऊ में किया गया।
1947 में पांचजन्य साप्ताहिक स्वदेश हिंदी समाचार पत्र का संपादन श्री अटल बिहारी वाजपेई; पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा मार्गदर्शन एवं श्री चंडिका दास अमृतराव देशमुख द्वारा समाचार पत्रों का प्रबंध निदेशक का कार्य किया गया1948 में महात्मा गांधी जी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तब नानाजी ने भूमिगत होकर इन समाचार पत्रों का संपादन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक में प्रतिबंध हटने पर” जनसंघ “की स्थापना का निर्णय लिया गया।

1948 से 1951 जनसंघ के गठन तक देशमुख जी द्वारा समाचार पत्रों का सफल प्रकाशन किया गया। जनसंघ स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में जनसंघ राजनीतिक शक्ति का केंद्र बिंदु बन गया।शिक्षा के गिरते स्तर को देखते हुए बालकों के लिए संस्कार मूलक शिक्षा हेतुसन 1952 में गोरखपुर में उन्होंने सबसे पहले “सरस्वती शिशु मंदिर” की स्थापना की ।आज विद्या भारती संस्था के अंतर्गत 50000 से भी अधिक सरस्वती शिशु मंदिर संचालित हैं।नानाजी देशमुख का मानना था कि राष्ट्र निर्माण हेतु एक राष्ट्रीय दल जरूरी है जो अंग्रेजों के द्वारा छोड़े गए भारत की स्वतंत्रता को “अखंड भारत “के विकास और “भारतीय संस्कृति “के सांचे में ढाल कर भारत को विश्व गुरु के स्थान पर पुनर्स्थापित कर सकेगा। 1951 में जनसंघ की स्थापना होने पर देशमुख जी को बड़ी जिम्मेदारी दी गई ।उत्तर प्रदेश में पहली बार 412 सदस्यों वाली विधानसभा में जनसंघ के 99 विधायक चुनवा कर गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।1967 में विभिन्न विचार और स्वभाव वाले नेताओं को साथ लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस का घमंड तोड़ दिया। पहले गैर कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में इस अद्भुत योगदान के कारण कांग्रेस वाले चंडिका दास अमृत राव देशमुख जी को नाना* फरणवीस (पेशवा प्रशासन में मराठा मंत्री राजनेता नाना फरणवीस थे) उनकी प्रशासनिक क्षमता के कारण ही उन्हें कांग्रेस वालो ने नाना* फरण वीस कहा ।”तब से चंडिका दास अमृतराव देशमुख नानाजी देशमुख कहने लगे।”*

11 फरवरी 1968 मुगल सराय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की घटना से उन पर वज्रपात हुआ। नानाजी देशमुख ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के चिंतन एवं कर्म को आगे बढ़ाया ;इसी वर्ष उन्होंने दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। नाना जी देशमुख ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की”अंत्योदय “की विचारधारा को गति प्रदान करना अपना ध्येय बना लिया। नाना जी विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए। दो महीने वे विनोबा जी के साथ भी रहे; वह उनके आंदोलन से अत्यधिक प्रभावित हुए । राष्ट्र निर्माण की उपेक्षा और निरंकुश सरकार के विरोध में जेपी आंदोलन और जुलूस में जब जयप्रकाश नारायण जी पर पुलिस ने लाठियां बरसाई उस समय नानाजी ने जयप्रकाश नारायण जी को सुरक्षित निकाल लिया ;इस बचाव में नाना जी की कलाई में चोट भी आई ।

जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर नानाजी ने उनकी संपूर्ण क्रांति के विचार “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” में अपना पूर्ण समर्थन दिया। जयप्रकाश नारायण ने नानाजी देशमुख के लिए कहा था कि”जिस संगठन ने देश को नाना जी जैसे रत्न दिए हैं वह संगठन कभी सांप्रदायिक और कट्टरवादी नहीं हो सकता।” 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के चार दिन बाद चार दलों का विलय करते हुए जनता पार्टी का निर्माण हुआ।

नानाजी देशमुख उस समय जेल में थे परंतु यह निर्णय लिया गया कि उनको उत्तर प्रदेश के बलराम पुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ना है। उन्होंने मना कर दिया परंतु गोयनका जी के प्रयास से जयप्रकाश नारायण ने तीन लाइन का एक पत्र लिखा और नानाजी देशमुख से “राष्ट्र हित” और “लोकतंत्र की रक्षा” के हित में चुनाव लड़ने का आह्वान किया। नानाजी देशमुख ने रानी राज लक्ष्मी को भारी मतों से पराजित किया।1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया परंतु उन्होंने यह कहकर कि ” 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा का कार्य करें; मंत्री पद ठुकरा दिया।”

1980 में 60 साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर आदर्श की स्थापना की ।बाद में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ग्राम उत्थान राष्ट्रीय उत्थान हेतु सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगा दिया ।

नाना जी ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े जिले गोंडा और बीड में बहुत से सामाजिक कार्य किए। उनके द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था “हर हाथ को कम और हर खेत को पानी”.।

1989 में नानाजी देशमुख पहली बार चित्रकूट आए और अंतिम रूप से यही बस गए ।उन्होंने भगवान श्री राम की कर्मभूमि तपोस्थली चित्रकूट की दुर्दशा देखी वे मंदाकिनी नदी के तट पर बैठ गए और अपने जीवन काल में चित्रकूट को बदलने का फैसला किया ।

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित अयोध्या कांड की मूल पांडुलिपि चित्रकूट से 50 किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे “राजापुर” में है ।नानाजी ने यहां आकर मूल पांडुलिपि के दर्शन किए ऐतिहासिक दिन 20 जनवरी 1990 का था ।नानाजी देशमुख जी ने विजिटर बुक में हस्ताक्षर करते हुए स्वर्णिम अक्षरों में लिखा “वर्तमान समय में आया राम गया राम की राजनीति है ;सत्ता के लालच में नेता गण लगे रहते हैं; ऐसे में मुझे चित्रकूट से बड़ा कोई स्थान दुनिया में नजर नहीं आता। वनवासी राम ने* भरत ने* सत्ता मिलने पर भी उसका परि त्याग कर दिया भरत की मां ने अपने पुत्र हेतु सत्ता की मांग की तो भरत ने अपनी मां से कहा “मां तुमने यह क्या किया ?”भरत चित्रकूट में वनवासी राम को मनाने भी आए जब राम नहीं माने तो वह उनके चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर सांकेतिक रूप से राज काज करने लगे सत्ता का ऐसा आदर्श रूप कहां देखने को मिलेगा??”

नानाजी ने कहा अपने वनवास काल में भगवान राम ने दलित जनों के उत्थान का कार्य यहीं रहकर किया था । वनवासी राम और उनकी तपोस्थली चित्रकूट मेरी प्रेरणा है।

अस्तु नाना जी ने चित्रकूट को ही अन्त्योदय * से ग्रामोदय; राष्ट्रोदय के चहुंमुखी विकास के लक्ष्य हेतु अपनी कर्मस्थली बनाया। उन्होंने सबसे गरीब व्यक्ति की सेवा शुरू की वह अक्सर कहा करते थे उन्हें राजा राम से वनवासी राम मुझे अधिक प्रिय और प्रेरक हैं। अतः वह अपना शेष जीवन चित्रकूट में ही बताएंगे।”

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की संकल्पना “एकात्मक मानववाद “को मूर्त रूप देने के लिए नाना जी ने अथक प्रयासों से चित्रकूट में “दीनदयाल शोध संस्थान “की स्थापना की।यह दर्शन समाज के प्रति मानव की समग्र दृष्टि पर आधारित है जो भारत को आत्मनिर्भर बन सकता है।

नानाजी देशमुख ने पंडित मदन मोहन मालवीय की संकल्पना के आधार पर एक ही स्थान पर नन्ही दुनिया से उच्च शिक्षा तक की शिक्षा की व्यवस्था की वर्ष 1992 93 में नन्हें बालकों के लिए माध्यमिक शिक्षा के स्वराज पाल की मदद से सुरेंद्र पाल स्कूल खोलें 500 गांव में शिक्षा की अलख जगाई।

दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना अंचल विशेष के लिए वरदान साबित हुई।समाज सेवा का अप्रतिम उदाहरण है। चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है। नानाजी देशमुख इस विश्व विद्यालय प्रथम कुलाधिपति रहे। वर्ष 1999 में एनडीए सरकार ने उन्हें राज्यसभा में सांसद मनोनीत हुए। सांसद निधि का उपयोग उन्होंने स्वयं अपने लिए नहीं अपितु अपने सेवा प्रकल्पों के लिए ही किया था। नानाजी देशमुख सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाने के विरोधी थे।

नानाजी देशमुख ने एकात्म मानववाद के आधार पर ग्रामीण भारत के विकास की जो रूपरेखा बनाई जो उनका जो विजन* था; ग्रामीण जनों के स्वास्थ्य ;सुरक्षा; शिक्षा; कृषि; आयोजन संसाधनों के संरक्षण के साथ सामाजिक विकास के लिए एकात्मक कार्यक्रम की शुरुआत की युगांतरकारी परिवर्तन हुआ युगपुरुष कहलाए।

कार्यक्रम का आधार लोक सहयोग और सहकार है ग्राम उद्योग; स्वरोजगार; स्वावलंबी योजना; राष्ट्रीय उत्थान हेतु समग्र विकास मॉडल;प्रकृति से जोड़ते हुए “आरोग्यधाम” की स्थापना ;चित्रकूट में” रस शाला” “दादी मां का बटुआ “गौ संवर्धन हेतु अतुल्य योगदान कृषि संवर्धन हेतु बेमिसाल काम नाना जी द्वारा किया गया जिन्होंने अपने बाल्यकाल में अपनी शिक्षा पठन पाठन ;फीस हेत ठेले में सब्जी बेचकर भी पैसे जुटाए थे ।पिलानी के बिरला इंस्टिट्यूट से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले इस बिरले व्यक्तित्व ने दुनिया को कृषि क्षेत्र में वर्मी कंपोस्ट से बेमिसाल कृषि कार्य कर ;आय अर्जित करके स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दी। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख और उनके संगठन दीनदयाल शोध संस्थान की प्रशंसा की इस संस्थान की मदद से सैकड़ो गांव को मुकदमा मुक्त विवाद सुलझाने का आदर्श बनाया गया । राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने कहा चित्रकूट में मैने नानाजी देशमुख और उनके साथियों से मुलाकात की दीनदयाल शोध संस्थान ग्रामीण विकास के प्रारूप को लागू करने वाला अनुपम संस्थान है। यह प्रारूप भारत के लिए सर्वप्रथम प्रयुक्त है विकास कार्यों में से अलग दीनदयाल उपाध्याय संस्थान विवाद मुक्त समाज की स्थापना में भी मदद करता है मैं समझता हूं कि चित्रकूट के आसपास 80 गांव मुकदमे बाजी से मुक्त हैं इसके अलावा इन गांवों के लोगों ने सर्वसम्मति से यह फैसला किया है कि किसी भी विवाद का हल करने के लिए भी अदालत नहीं जाएंगे यह भी तय हुआ है कि सभी विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिए जाएंगे। जैसा नाना जी देशमुख ने हमें बताया है कि “अगर लोग आपस में ही लड़ते रहेंगे तो विकास के लिए समय कहां बचेगा “? राष्ट्रपति जी के मुताबिक विकास के इस अनुपम प्रारूप को सामाजिक संगठन; न्यायिक संगठनों और सरकार के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैलाया जा सकता है ।शोषितों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित नाना जी की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा कि नानाजी चित्रकूट में जो कर रहे हैं उन्हें देखकर अन्य लोगों की भी आंखें खुलनी चाहिए।

भारत भू धरा के समाज के संपूर्ण कल्याण के लिए निस्वार्थ रूप से तन मन धन से अपना संपूर्ण जीवन समर्पण के कारण ग्रामोदय से राष्ट्रोदय संकल्पना ; धर्म निरपेक्षता का भाव;समाज और राष्ट्र निर्माण हेतु स्त्री पुरुष समानता की बात करते हुए नानाजी का कहना था “महिला को पकड़कर चूल्हे से बांध दिया गया यह गलत है।”वह दायित्व निभाने वाली है उसे बराबरी का स्थान दो ; उसे सहयोगी माने; पति-पत्नी में समानता का भाव हो तभी कार्य आदर्श रूप से होगा।

नानाजी का कथन है: “समाज निर्माण की ललक समाज शिल्पी में होनी चाहिए। व्यक्ति; परिवार; समाज यह तीनों पूरक हैं। आत्मा की प्रेरणा को हम अपने जीवन में उतरे और प्रयास करें स्वतंत्र भारत का मूल स्वभाव वस्तुतः हमें अपने मूलभूत विचारों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल देता है।” नानाजी देशमुख के यही मूलभूत विचार उन्हे महानसमाजसेवी*राष्ट्र ऋषि*राजर्षी*

संबोधनों से विभूषित करते है। महान विभूति को अटल बिहारी बाजपेई जी की सरकार में शिक्षा; स्वास्थ्य; ग्रामीण स्वावलंबन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिए “पद्म विभूषण “की उपाधि प्रदान की गई। सन 2005 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री भैरव सिंह शेखावत जी ने नाना जी को “ज्ञानेश्वर” पुरस्कार से सम्मानित किया था ।
अपने 81 वें जन्मदिन पर उन्होंने तय कर लिया था “जब तक जीवित है तब तक वह स्वयं तथा मृत्यु के बाद उनकी देह राष्ट्र के काम आए ।”दिल्ली की दधीचि देह दान समिति को अपने देहदान संबंधित शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नाना जी ने कहा था मैंने जीवन भर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में होने वाली प्रार्थना में बोला है “पत त्वेष कायो नमस्ते नमस्ते” अर्थात् हे भारत माता मैं अपनी यह काया हंसते हंसते तेरे ऊपर अर्पण कर दूंगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उन्होंने अपने “देह “को दान करने हेतु वसीयत नामा दिया और साथ ही समिति को अग्रिम ₹10000 की राशि भी दी ताकि देश के किसी भी भाग से उनका शांत शरीर उचित स्थान पर लाया जा सके। नानाजी देश के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना शरीर छात्रों के मेडिकल शोध हेतु दान देने का वसीयतनामा किया है।

27 फरवरी 2010 को 95 वर्ष की आयु में चित्रकूट के” सियाराम कुटीर” में उनका महाप्रयाण हुआ ।
(जहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम बीस वर्ष 1989 से 2010 ) अपने “विजन “को “मिशन “के रूप में साकार होते देखा।)नानाजी के संकल्प का सम्मान करते हुए उनकी अनमोल मृत देह अखिल भारतीय आयुर्वेद विज्ञान संस्थान नई दिल्ली को सौंप दी गई। वर्ष 2019 में भारत मां के सपूत नाना जी देशमुख को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न “से विभूषित किया गया।नाना साहब देशमुख जी का अद्भुत व्यक्तित्व शब्दों से नहीं समय ने उनके कर्मों की श्रेष्ठता से उन्हें आधुनिक “युग पुरुष” अपने मां पिता और भारत माता के इस सपूत को “अनमोल रत्न” माना है।प्रख्यात समाज सेवक ; समर्पित भारत भक्त; राष्ट्रीय स्वयंसेवक संख्या वरिष्ठ प्रचारक; पद्म विभूषण ; “भारत रत्न” हैं।माननीय प्रधानमंत्री ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा “भारत रत्न नानाजी देशमुख की ग्रामीण भारत और कृषि के बारे में उनकी समृद्ध समझ उनके कार्यों में परिलक्षित होती है।”राष्ट्र धर्म को समर्पित ;त्यागी; महात्मा; राष्ट्र पुरुष ;महामनीषी को शत-शत नमन। दीनदयाल शोध संस्थान नानाजी देशमुख के विजन एवं मिशन को लक्ष्य तकपहुंचाने में लगनशीलता प्रतिबद्धता से प्रयासरत है। संस्थान को साधुवाद।

डॉ ममता पांडेय
सहा0 प्रा0 राजनीति विज्ञान
पंडित अटल बिहारी वाजपेई
शास0 महावि0 जयसिंहनगर
जिला शहडोल (मध्य प्रदेश)
mamtapandey743@gmail.com.

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