समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4जून। उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ को ‘राजद्रोह के मामले’ बड़ी राहत दी। उनके यूट्यूब चैनल में उनकी कथित आरोपों वाली टिप्पणियों के लिए शिमला, हिमाचल प्रदेश में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द कर दिया। अदालत ने देशद्रोह के मामले को रद्द करने की मांग करने वाली उनकी याचिका पर फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में प्राथमिकी और कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि “केदार नाथ सिंह के फैसले के अनुसार हर पत्रकार की रक्षा की जाएगी।” जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक डिविजन बेंच, और जस्टिस विनीत सरन भी शामिल हैं, जिन्होंने 06 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था, ने फैसला सुनाया।
इस फैसले में राजद्रोह कानून को सही ठहराया गया था लेकिन इसमें इस कानून का दायरा तय किया गया था। हालांकि कोर्ट ने पत्रकारों पर लगे आरोपों को सत्यापित करने के लिए समिति के गठन की विनोद दुआ की मांग को ठुकरा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने विनोद दुआ की ओर से दायर की गई दूसरी याचिका को खारिज कर दिया। इसमें एफआईआर दर्ज करने से पहले पत्रकारों के खिलाफ आरोपों को सत्यापित करने के लिए एक समिति बनाने की मांग की गई थी और कहा गया था कि 10 साल से अधिक के अनुभव वाले पत्रकार के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जानी चाहिए जब तक कि समिति द्वारा मंजूरी नहीं दी जाती। कोर्ट ने कहा कि यह मसला विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
विनोद दुआ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने वाले भाजपा नेता श्याम का कहना था कि दुआ ने अपने यू ट्यूब कार्यक्रम ‘द विनोद दुआ शो’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोट पाने की खातिर ‘मौत और आतंकी हमलों’ का इस्तेमाल करने के आरोप लगाए हैं। श्याम का कहना था कि इस तरह के बयान से शांति और सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा हो सकता था।
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