बिहार चुनाव 2025: जनता तय करेगी सुशासन और विकास की दिशा

परोमिता दास

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदान की तिथियां घोषित कर दी हैं और 6 और 11 नवंबर को करोड़ों मतदाता अपने मत के जरिए यह तय करेंगे कि बिहार किस दिशा में बढ़ेगा। यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि विकास, सुशासन, न्याय और सामाजिक सुधार की दिशा तय करने का अवसर है। राज्य की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है। टूटी सड़कें, जर्जर शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था, बेरोजगारी और पलायन—इन चुनौतियों ने राज्य के नागरिकों के जीवन को कठिन बना दिया है। ऐसे में मतदाता केवल चेहरे या वादों के आधार पर नहीं, बल्कि चरित्र, नीतियों और ठोस विकास कार्यक्रमों के आधार पर अपना निर्णय देने को तैयार हैं।

राजनीतिक दल और गठबंधन की जंग

राजनीतिक दल इस बार अपने घोषणापत्र और वादों के साथ मैदान में हैं। एनडीए ने नीतीश कुमार को आगे रखा है और महागठबंधन उनसे सीधे मुकाबले में है। 2005 से नीतीश कुमार कई बार गठबंधन बदलने के बावजूद मुख्यमंत्री बने रहे हैं। उनकी ‘सुशासन बाबू’ की छवि इस बार चुनौती का सामना कर रही है। विपक्षी दल भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था और पलायन के मुद्दों को जोर-शोर से उठा रहे हैं। हाल के महीनों में पटना और अन्य जिलों में हुई हिंसा और अपराध की घटनाओं ने सरकार की छवि पर सवाल खड़ा किया है।

विकास बनाम जाति: बिहार की सियासत का समीकरण

बिहार की राजनीति में विकास के मुद्दे के साथ जाति का समीकरण अब भी निर्णायक कारक बना हुआ है। दोनों प्रमुख गठबंधनों की रणनीतियां समुदाय आधारित लामबंदी से प्रभावित हैं। सीट बंटवारे और गठबंधन समीकरण चुनावी तनाव का मुख्य केंद्र बने हुए हैं।

नए चेहरे और नए दल: राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव

इस बार कई नए दल भी मैदान में हैं। प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’, तेजप्रताप यादव की ‘जनशक्ति जनता दल’, उपेंद्र कुशवाहा की ‘राष्ट्रीय लोक मोर्चा’ और पशुपति पारस की ‘राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी’ पहली बार विधानसभा चुनाव में भाग ले रही हैं। इन नए दलों के प्रदर्शन से राज्य की सियासी तस्वीर बदलने की पूरी संभावना है।

मतदाता की जागरूकता: विकास और न्याय के लिए वोट

इस चुनाव में विकास, रोजगार, कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक जवाबदेही प्रमुख मुद्दों के रूप में उभर रहे हैं। जनता अब सिर्फ रोटी-कपड़ा-मकान के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक जीवन की आकांक्षा के लिए वोट देगी। जो दल इस वास्तविकता को समझेगा और इसे अपने अभियान में शामिल करेगा, वही बिहार का भविष्य गढ़ पाएगा।

आज बिहार के मतदाता अधिक सजग और विवेकशील हैं। वे सत्ता परिवर्तन से अधिक संस्कृति परिवर्तन, प्रशासनिक जवाबदेही और राजनीतिक शुचिता को महत्व देते हैं। यह चुनाव न केवल विधानसभा की सीटें तय करेगा, बल्कि यह तय करेगा कि बिहार पिछड़ेपन और भ्रष्टाचार की पुरानी जंजीरों से मुक्त होकर विकास और सुशासन की दिशा में बढ़ पाएगा या नहीं।

 “अब की बार, सुशासन और सुधार”

यदि बिहार के मतदाता इस बार सुशासन और सुधार का विकल्प चुनते हैं, तो यह चुनाव राज्य के लिए नया इतिहास रच सकता है। जनता का यह निर्णय बिहार की राजनीति और विकास की दिशा तय करेगा। इस बार का नारा है—“अब की बार, सुशासन और सुधार।”

 

Comments are closed.