बिहार चुनाव 2025: ओवैसी की एंट्री पर महागठबंधन क्यों लगा रहा है ब्रेक?

समग्र समाचार सेवा
पटना, 17 सितंबर: बिहार की राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) एक बार फिर सुर्खियों में है। पाँच साल पहले 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल क्षेत्र से पाँच सीटें जीतकर सबको चौंकाने वाली यह पार्टी अब 2025 के चुनाव में भी उतरने की तैयारी कर रही है। लेकिन इस बार एआईएमआईएम का मकसद अलग है—वह महागठबंधन में शामिल होकर अपनी किस्मत आज़माना चाहती है।

प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने कांग्रेस और राजद से कई बार अपील की है। लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखने से लेकर उनके दरवाज़े तक खटखटाए गए हैं। इसके बावजूद, महागठबंधन का दरवाज़ा अब तक बंद है। सवाल यह है कि जब सीमांचल में ओवैसी का जनाधार मौजूद है, तो कांग्रेस और राजद उन्हें क्यों नकार रहे हैं?

सीमांचल से उभरा ओवैसी का राजनीतिक आधार

2020 के चुनाव में एआईएमआईएम ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें पाँच सीटों पर जीत हासिल की और चार पर तीसरे स्थान पर रही। कुल 5 लाख 23 हज़ार से अधिक वोट हासिल कर पार्टी को 1.3% मत मिले। यह नतीजे बिहार की राजनीति के लिए बड़ा झटका थे, खासकर कांग्रेस और राजद के लिए, जिनका पारंपरिक आधार मुस्लिम वोट रहे हैं।

हालाँकि, बाद में एआईएमआईएम के चार विधायक राजद में शामिल हो गए। इसके बावजूद, सीमांचल में ओवैसी की पकड़ और उनकी राजनीतिक सक्रियता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

महागठबंधन क्यों कर रहा है परहेज़?

राजद और कांग्रेस ओवैसी की पार्टी को अपने साथ क्यों नहीं लेना चाहतीं, इसके पीछे कई कारण हैं।

  • राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओवैसी से हाथ मिलाने से मुस्लिम वोटों का फायदा तो मिलेगा, लेकिन हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो जाएगा।
  • ओवैसी की छवि एक कट्टर मुस्लिम नेता की है और उनके भाषणों को लेकर भाजपा उन पर “मुस्लिम परस्त राजनीति” का आरोप लगाने से पीछे नहीं हटेगी।
  • 2021 में असम चुनावों में कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन उसे राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। यही गलती दोहराने से राजद और कांग्रेस दोनों बचना चाहती हैं।

क्या सीमांचल फिर बदल देगा खेल?

सीमांचल बिहार का वह इलाका है, जहाँ मुस्लिम आबादी 40 से 70 प्रतिशत तक है। यही वजह है कि ओवैसी ने इसे अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बना रखा है। 2020 में उनके मैदान में उतरने से कांग्रेस और राजद का खेल बिगड़ा और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को फायदा हुआ।

वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि सीमांचल में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की हालिया सक्रियता इस बार हालात बदल सकती है। राहुल ने ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ के ज़रिए सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।

भविष्य की राजनीति पर असर

राजद और कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर ओवैसी को महागठबंधन में जगह दी जाती है, तो भविष्य में मुस्लिम वोटों का झुकाव AIMIM की ओर हो सकता है। अभी तक मुसलमान पारंपरिक रूप से कांग्रेस और राजद के वोटर रहे हैं, लेकिन ओवैसी के प्रवेश से यह समीकरण बिगड़ सकता है।

बिहार चुनाव इस बार एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सिमटता दिखाई दे रहा है। ऐसे में ओवैसी का अकेले उतरना मुस्लिम वोटों के बिखराव का कारण बन सकता है। यही कारण है कि राजद और कांग्रेस उन्हें गठबंधन में शामिल करने का जोखिम नहीं लेना चाहतीं।

असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति सीमांचल तक सीमित सही, लेकिन उसका असर पूरे बिहार में महसूस किया जाता है। महागठबंधन उनकी पार्टी से दूरी बनाकर फिलहाल जोखिम से बच रहा है। हालांकि 2025 का चुनाव बताएगा कि क्या AIMIM अकेले चुनाव लड़कर 2020 जैसा चौंकाने वाला प्रदर्शन दोहरा पाएगी या यह चुनाव उनके लिए और बड़ी चुनौती साबित होगा।

 

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