परमिता दास
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 25 अगस्त: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे सियासी रंग और भी गाढ़ा होता जा रहा है। इस बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में शुरू हुई वोट अधिकार यात्रा ने प्रदेश की राजनीति को एक नई दिशा दे दी है। इस यात्रा की गाड़ी में न केवल तेजस्वी यादव सवार हैं, बल्कि लंबे समय से नाराज़ चल रहे पप्पू यादव भी मंच साझा करते दिखाई दिए। यह दृश्य महागठबंधन की राजनीति में आई नई करवट को साफ-साफ दर्शाता है।
वोट अधिकार यात्रा: महागठबंधन का साझा मंच
24 अगस्त को पूर्णिया पहुंची वोट अधिकार यात्रा में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ पप्पू यादव भी खुले दिल से शामिल हुए। मंच से भाषण देते हुए पप्पू यादव ने तेजस्वी को “जननायक” बताया और राहुल गांधी को “गरीबों का क्रांतिकारी नेता” कहा। यह वही पप्पू यादव हैं, जो महज 16 महीने पहले लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी के खिलाफ राजनीतिक रणभूमि में डटे हुए थे।
दरअसल, इस यात्रा के जरिए महागठबंधन यह संदेश देना चाहता है कि नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए विपक्ष अब एकजुट हो चुका है। राहुल गांधी की मौजूदगी ने इस “एकजुटता” को और मजबूती दी है।
पुरानी खटास और नई दोस्ती
पिछले लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव और तेजस्वी यादव के रिश्तों में खटास किसी से छिपी नहीं थी। पूर्णिया सीट को लेकर दोनों के बीच सियासी तनातनी ने महागठबंधन की एकता को झकझोर दिया था।
पप्पू यादव ने कांग्रेस में विलय करने के बाद भी पूर्णिया से टिकट मांगा, लेकिन तेजस्वी यादव इसे आरजेडी के खाते में रखना चाहते थे। टिकट विवाद इतना बढ़ा कि पप्पू यादव ने निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया और आखिरकार 5,67,556 वोट पाकर जीत भी दर्ज की। वहीं, आरजेडी प्रत्याशी बीमा भारती को करारी हार झेलनी पड़ी। इस नतीजे ने तेजस्वी की रणनीति को गहरा झटका दिया।
लेकिन अब वही पप्पू यादव सार्वजनिक मंच से तेजस्वी को “बिहार की उम्मीद” बता रहे हैं। यह बदलाव महागठबंधन की मजबूरी हो या राहुल गांधी का डैमेज कंट्रोल, मगर इतना तय है कि राजनीति में रिश्ते स्थायी नहीं होते।
लालू-पप्पू की मुलाकात: बर्फ पिघलने लगी
वोट अधिकार यात्रा के दौरान एक और दिलचस्प नजारा सामने आया। सासाराम में लालू प्रसाद यादव मंच पर मौजूद थे और पप्पू यादव ने जाकर उनके पैर छुए। लालू ने भी मुस्कुराकर उन्हें आशीर्वाद दिया। यह मुलाकात संकेत दे रही है कि लालू परिवार और पप्पू यादव के रिश्ते फिर से पटरी पर लौट रहे हैं।
16 महीने पुरानी कड़वाहट अब सियासी मजबूरियों के बीच नरम पड़ गई है। महागठबंधन ने इसे जनता के सामने “एकजुटता का संदेश” के तौर पर पेश किया।
महागठबंधन की रणनीति: साझा दुश्मन, साझा मोर्चा
महागठबंधन के लिए इस समय सबसे बड़ा लक्ष्य है नीतीश कुमार की सरकार को सत्ता से हटाना। इसके लिए कांग्रेस, आरजेडी और अन्य सहयोगी दलों ने मिलकर रणनीति बनाई है।
राहुल गांधी की सक्रियता ने महागठबंधन को नई ऊर्जा दी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जब तक देश में राहुल गांधी जैसे नेता हैं, तब तक “नफरत की राजनीति” को जगह नहीं मिलेगी। पप्पू यादव और तेजस्वी यादव का हाथ मिलाना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
क्या यह मेल स्थायी रहेगा?
हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि क्या पप्पू यादव और तेजस्वी यादव का यह मेल वास्तव में स्थायी रहेगा या यह केवल चुनावी गणित का हिस्सा है।
पूर्णिया लोकसभा सीट के नतीजे अब भी तेजस्वी के गले की हड्डी बने हुए हैं। पप्पू यादव का जनाधार इस क्षेत्र में मजबूत है और कांग्रेस के साथ उनका जुड़ाव महागठबंधन को फायदा पहुंचा सकता है। मगर अंदरखाने की राजनीति में अभी भी अविश्वास पूरी तरह खत्म हुआ है, ऐसा कहना मुश्किल है।
बदलते समीकरण, चुनावी हवा में नई गूंज
बिहार की राजनीति हमेशा से ही अप्रत्याशित मोड़ों और असामान्य गठबंधनों के लिए जानी जाती है। वोट अधिकार यात्रा ने एक बार फिर यही साबित किया है। कल तक आमने-सामने खड़े पप्पू यादव और तेजस्वी यादव आज एक ही मंच से एक-दूसरे की तारीफ कर रहे हैं।
यह बदलाव बताता है कि बिहार चुनाव 2025 में मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। महागठबंधन चाहे मजबूरी में या रणनीति के तहत एकजुट हुआ हो, लेकिन इसका असर निश्चित तौर पर चुनावी नतीजों पर दिखेगा।
कुल मिलाकर, राहुल गांधी की यात्रा ने न सिर्फ महागठबंधन में नई जान फूंकी है, बल्कि बिहार की चुनावी हवा में भी एक नई गूंज पैदा कर दी है।
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