बिहार की पंचायत विवाद: विधायक ने सचिव को जूते से मारने की धमकी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 जुलाई: बिहार के मनेर क्षेत्र में पेश आई एक विवादास्पद घटना ने वेब सीरीज ‘पंचायत’ के एक दृश्य की सजीव याद ताज़ा कर दी। वायरल हुए एक ऑडियो क्लिप में एक राजद विधायक, भाई वीरेंद्र, और पंचायत सचिव के बीच गरमागरम बातचीत सुनने को मिलती है जिनके बीच पंचायत की नौकरशाही एवं राजनीतिक सत्ता का टकराव साफ झलकता है।

क्या हुआ ऑडियो में?

वायरल ऑडियो में सचिव रिंकी देवी नामक महिला के मृत्यु प्रमाण पत्र पर जानकारी मांग रहे थे। लेकिन जब उन्होंने फोन पर अपना परिचय देते हुए विधायक भाई वीरेंद्र को नहीं पहचाना, तो विधायक ने तुरंत गुस्से में जा कर उन्हें जूते से मारने की धमकी दे डाली।

विधायक ने तीखी आवाज़ में कहा:

“क्या आप भाई वीरेंद्र को नहीं जानते? क्या आपको मेरा परिचय देना चाहिए? पूरा देश मुझे जानता है।”

सचिव ने शांत रहते हुए जवाब दिया कि वे किसी से डरते नहीं, लेकिन “यदि विधायक सम्मान से बात करेंगे, तो मैं भी वैसा ही करूंगा।”

विधायक के आवेश में कहा गया:

“मैं जूते से मारूँगा, और अगर चाहो तो केस कर सकते हो! तुम प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते। तुम यह कैसे कह सकते हो कि भाई वीरेंद्र कौन है?”

सचिव ने मात्र यहीं कहा कि उनकी पहचान न जानने की वजह से उन्होंने वही पूछा जिसके लिए फोन उठाया गया था—कार्य से संबंधित जानकारी।

अनुरूपता का परिवर्तन: ‘पंचायत’ के दृश्य से मिलता-जुलता

पहले इस क्लिप को सुनने वाले दर्शकों ने तुरंत ‘पंचायत’ की याद दिला दी, जहां विधायक चंद्रकिशोर सिंह और सचिव अभिषेक त्रिपाठी के बीच सत्ता-संघर्ष और अहंकार का द्वंद स्पष्ट दिखता है। यह वास्तविक घटना उस पॉलिटिक्स बनाम नौकरशाही संघर्ष की सजीव झलक पेश करती है, जो सिनेमा में तो कलात्मक रूप ले चुका है—लेकिन बिहार में यह यथार्थ है।

विवाद क्या दर्शाता है?

इस घटना ने पंचायत स्तर पर राजनीतिक दबाव, अभद्रता और सार्वजनिक सेवा के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को उजागर किया है:

  • शासन का अहंकार: विधायक की भाषा और धमकी इस बात का संकेत देती है कि स्थानीय सत्ता में सांस्कृतिक अहंकार व औचित्य के अभाव की स्थिति बन रही है।
  • नौकरशाही का संभ्रम: सचिव ने अपने कर्तव्य और पारदर्शिता का पालन किया, लेकिन राजनीतिक दबाव के सामने उसकी आवाज़ दबती नज़र आई।
  • जनहित बनाम सत्ता संरचना: जब सार्वजनिक काम प्राथमिकता होती है, तब सत्ता दिखाने की प्रवृत्ति बहुत खतरनाक रूप ले सकती है।

सत्ता है या सेवा?

ताजा घटना एक चेतावनी भी है—यह बताती है कि पंचायत स्तर पर सत्ता सुराग कभी गलत दिशा में जा सकते हैं। लोकतंत्र तभी टिकता है जब सत्ता का प्रयोग सेवाभाव से किया जाए, और उसका ईमानदारी से हिसाब हो। यदि जनता दर्शन—प्रक्रिया और सम्मान पर आधारित संवाद्—की उम्मीद करती है, तो राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही दोनों के लिए यह दिशा तय करना आवश्यक हो गया है।

 

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.