समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 23 अगस्त: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा के करीब पहुँच चुकी है। लंबे समय से चल रही चर्चाओं और परामर्श के बाद पार्टी ने यह संकेत दिया है कि 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद और बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले नए अध्यक्ष का नाम सार्वजनिक कर दिया जाएगा।
सुझावों की लंबी प्रक्रिया
भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच इस विषय पर कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने अब तक लगभग 100 प्रमुख नेताओं और हस्तियों से सुझाव प्राप्त किए हैं। इनमें पूर्व भाजपा अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री, संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी और संवैधानिक पदों पर रह चुके नेता शामिल हैं।
भाजपा ने अपने कई मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों से भी संपर्क साधा है, ताकि नए अध्यक्ष को लेकर व्यापक सहमति बनाई जा सके। इस प्रक्रिया में 86 नेताओं से विशेष प्रतिक्रिया ली गई है। इनमें कुछ प्रमुख कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं।
जातिगत समीकरण और राजनीतिक संतुलन
पार्टी के अंदर यह साफ है कि नए अध्यक्ष के चयन में केवल अनुभव या लोकप्रियता ही नहीं, बल्कि जातिगत समीकरण, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और संगठनात्मक क्षमता जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाएगा। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा इस बार ऐसे नेता को सामने लाना चाहती है जो आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव और 2026 के कई बड़े राज्यों के चुनाव में संगठन को और मजबूत कर सके।
भाजपा के भीतर माना जा रहा है कि यह प्रक्रिया कुछ वैसी ही है जैसी हाल ही में उपराष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार तय करने के दौरान अपनाई गई थी। उस समय भी व्यापक परामर्श और जातीय-सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखकर फैसला लिया गया था।
राज्यों में देरी की वजह
नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में देरी का एक बड़ा कारण प्रमुख राज्यों में संगठनात्मक नियुक्तियों का लंबित रहना भी है। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में अब तक नए अध्यक्षों की घोषणा नहीं की गई है। इसी तरह दिल्ली, मुंबई, पंजाब और मणिपुर की इकाइयों में भी अध्यक्ष पद खाली है।
भाजपा के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया तभी पूरी हो सकती है जब पार्टी कम से कम 36 में से 19 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव कर ले। यही वजह है कि पहले राज्य स्तर पर घोषणाएँ पूरी की जा रही हैं और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय होगा।
आरएसएस की भूमिका
सूत्र बताते हैं कि आरएसएस इस बार अध्यक्ष पद पर ऐसे व्यक्ति को देखना चाहता है जो न केवल पार्टी को संगठनात्मक मजबूती दे, बल्कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच बेहतर तालमेल भी बना सके। संघ और भाजपा दोनों चाहते हैं कि आने वाले चुनावी मौसम में पार्टी एकजुट और आक्रामक रणनीति के साथ उतरे।
कुल मिलाकर, भाजपा में नए अध्यक्ष की घोषणा अब सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है। जैसे-जैसे उपराष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे इस पर अंतिम मुहर लगने की उम्मीद है। पार्टी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि भाजपा का नया चेहरा कौन होगा, जो आने वाले वर्षों में संगठन की कमान संभालेगा।
 
			 
						
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