गुजरात को लेकर भाजपा शीर्ष की बढ़ी चिंता

त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

धूप के नाज़ उठाते सदियां गुजरी हैं,
ये मेरा वक्त है मुझे भी सूरज बनना है’

गुजरात विधानसभा चुनाव में 156 सीटें लेकर बंपर जीत हासिल करने वाली भगवा पार्टी के बम-बम हौसलों को लगता है दुश्मनों की नज़र लग गई है, पार्टी शीर्ष को मिली खुफिया जानकारियों के मुताबिक गुजरात भाजपा के कई शीर्ष नेता इन दिनों अपने हाईकमान से नाराज़ चल रहे हैं, नाराज़गी इस कदर है कि आने वाले दिनों में यह कोई बड़ा गुल खिला सकती है। दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव से भाजपा शीर्ष ने अपने कई बड़े नेताओं, मसलन भूपेंद्र सिंह चूड़ासमा, नितिन पटेल, सौरभ पटेल, बल्लभ काकड़िया, विभावरी दवे, प्रदीप सिंह जडेजा जिन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था, इन्हें भरोसा दिया गया था कि ’इन्हें केंद्र में या फिर कहीं अन्यत्र एडजस्ट कर लिया जाएगा।’ अब सवाल उठता है कि केंद्र में अकेले गुजरात से कितने मंत्री बनाए जा सकते हैं, मोदी मंत्रिमंडल का संभावित फेरबदल भी इन्हीं पेंचोखम में उलझा है। अब बचता है संगठन में एडजस्टमेंट, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से पहले ही कह दिया गया था कि ’वे संगठन में जितने सीनियर को एडजस्ट कर पाते हैं, कर लें।’ आनंदी बेन समेत कई गवर्नरों का भी कार्यकाल पूरा हो रहा है, पर मुश्किल यह है कि गुजरात से पहले ही थोकभाव में गवर्नर बनाए जा चुके हैं। भाजपा शीर्ष नहीं चाहता कि ये नाराज़ नेतागण 2024 के चुनाव में कोई गड़बड़ी कर दें, सो बीच का एक रास्ता निकाला गया है कि ’इनमें से कई नेताओं को आने वाले आम चुनाव में लोकसभा का टिकट मिल सकता है,’ इसी बहाने हाईकमान इनकी लोकप्रियता की परीक्षा भी ले लेगा।

भगवा निशाने पर तेजस्वी

जनता परिवार के विलय को लेकर अटकलें तेज हो गई है, विपक्षी एका के सूरमागण जनता दल(यू), राजद, जेडीएस, इनेलोद और राष्ट्रीय लोकदल मिल कर पुराने जनता दल का आकार पा लें या इनके बीच कोई समन्वय स्थापित हो जाए। जब इस बात की भनक भगवा खेमे को लगी तो उसके दूत सक्रिय हो गए, इनके रणनीतिकारों ने तेजस्वी से संपर्क साधा और उनसे कहा कि ’अगर वे सिर्फ नीतीश का साथ छोड़ दें तो भाजपा उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाने को तैयार है।’ इसका बड़ा साफ सा फार्मूला निकाला गया कि सबसे बड़ा दल होने के नाते राजद राज्यपाल के पास तेजस्वी की सरकार बनाने का दावा पेश करे, जब सदन में बहुमत साबित करने का वक्त आएगा तो भाजपा वॉक आउट कर जाएगी जैसा कि उसने एक वक्त यूपी में मुलायम की सरकार बनवाने के दौरान किया था। पर सूत्र बताते हैं कि तेजस्वी ने इस भगवा फांस में फंसने से साफ इंकार कर दिया। इसके बाद नीतीश का बयान भी सामने आ गया कि ’वे मरते दम तक भाजपा के साथ नहीं जाएंगे।’ इसके बाद नीतीश ने तेजस्वी के समक्ष यह भी स्पष्ट कर दिया कि ’वे जुलाई-अगस्त में तेजस्वी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देंगे और केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हो जाएंगे।’ अब मुमकिन है कि केंद्रीय एजेंसियां मई-जून महीने में तेजस्वी के ऊपर कई संगीन केस बना दें, कहते हैं ये मामले उस वक्त के हैं जब तेजस्वी यादव पहली दफे राज्य के डिप्टी सीएम बने थे। भाजपा को उम्मीद है कि भ्रष्टाचार के मामले पर नीतीश शायद ही तेजस्वी को समर्थन दे पाएं, तब तेजस्वी के समक्ष एक मात्र आसरा न्यायालय का ही बचेगा।

ओबीसी जातियों को साधने की बाजीगरी

ताजा केंद्रीय बजट में गैर यादव ओबीसी जातियों को साधने की भरसक कोशिश हुई है, इस बात के मद्देनज़र कि यह  मौजूदा केंद्रीय बजट 2024 के आम चुनाव से पहले का अंतिम पूर्णकालिक बजट साबित होगा। एक तरह से यह पूरी तरह चुनावी बजट है, जिसमें गरीबों के लिए मुफ्त राशन योजना के लिए भी 2 लाख करोड़ के अतिरिक्त बजट का प्रावधान रखा गया है। केंद्र सरकार से जुड़े विश्वस्त सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो ’वन नेशन, वन इलेक्शन’ के खटराग को अमलीजामा पहनाने के लिए मौजूदा सरकार समय पूर्व आम चुनाव का ऐलान कर सकती है। ये चुनाव 9 राज्यों के संभावित विधानसभा चुनावों के साथ हो सकते हैं। इसी आइडिया को मद्देनज़र रखते ’प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना’ का बजट में आगाज़ हुआ है, माना जा रहा है कि इस योजना से देशभर के, खास कर यूपी की गैर यादव ओबीसी जातियों को बहुत फायदा मिलने वाला है। अकेले यूपी में 52 फीसदी से ज्यादा ओबीसी जातियां है, अगर इसमें से यादवों को निकाल भी दें तो यह आंकड़ा 42 फीसदी पर ठहरता है, जो 140  जातियों से ज्यादा का समूह है और यह समूह चुनाव में किसी उम्मीदवार को हराने या जिताने में एक महती भूमिका निभा सकता है। 2014 के आम चुनाव में भी नरेंद्र मोदी को दिल्ली की सत्ता पर काबिज कराने में ओबीसी जातियों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी।

भाजपा के लिए कर्नाटक अहम

भाजपा के लिए कर्नाटक के आगामी विधानसभा चुनाव क्या मायने रखते हैं इसका पता बुधवार को संसद में पेश किए गए केंद्रीय बजट से चल जाता है। जब कर्नाटक के लिए 65 हजार करोड़ के सिंचाई योजना की घोषणा हुई। वैसे भी कर्नाटक में पार्टी ने जो हालिया जनमत सर्वेक्षण करवाए हैं उससे भाजपा शीर्ष की पेशानियों पर बल आ गए हैं। सो, राज्य की आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी जीत पक्की करने के लिए पार्टी रणनीतिकार राज्य की एक प्रमुख पार्टी जेडीएस से चुनावी गठबंधन करना चाहते हैं। इस बाबत भाजपा रणनीतिकारों ने जब एचडी देवेगौड़ा से संपर्क साधा तो उनका दो टूक कहना था कि ’वे भाजपा के साथ चुनाव के बाद गठबंधन की सोच सकते हैं।’ पर भाजपा रणनीतिकारों के समक्ष सबसे बड़ा संकट यह है कि देवगौड़ा कमोबेश यही बात कांग्रेस से भी कह चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से देवेगौड़ा की पुरानी दोस्ती है। सो, भले ही देवेगौड़ा राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर कश्मीर नहीं गए, पर उन्होंने राहुल की यात्रा के समर्थन में एक पत्र जरूर जारी कर दिया, यही बात भगवा रणनीतिकारों को बेहद नागवार गुज़र रही है। सो, इन लोगों ने ताजा-ताजा देवेगौड़ा के पुत्र कुमारस्वामी से संपर्क साधा है, कुमारस्वामी का झुकाव कांग्रेस के बजाए भाजपा की ओर ज्यादा बताया जाता है। सो, जब पिता देवेगौड़ा राहुल के समर्थन में पत्र जारी कर रहे थे, पुत्र कुमारस्वामी एक स्थानीय टीवी चैनल से मन के उद्गार व्यक्त कर रहे थे कि ’राहुल गांधी को देश पसंद नहीं करता।’

क्या होगा मध्य प्रदेश में?

मध्य प्रदेश के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भाजपा के लिए अच्छी खबर लेकर नहीं आया है। सर्वेक्षण के नतीजों में प्रदेश में भाजपा से कांग्रेस को आगे बताया जा रहा है। सर्वेक्षण के मुताबिक लोग शिवराज सरकार के कामकाज के तरीकों से खुष नहीं है। शिवराज की लोकप्रियता में भारी गिरावट दर्ज की गई है। पर इस सर्वेक्षण में एक और बात सामने आई है कि राज्य के लोगों में पीएम मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हुई हैं, लोग उन्हें दिल्ली की गद्दी के लिए अब भी सबसे मुफीद चेहरा मानते हैं।

 

 

महबूबा की बेटी की इल्तिजा

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बड़ी बेटी इल्तिजा मुफ्ती सियासत में दस्तक देने के लिए एकदम तैयार बताई जाती हैं, हालिया दिनों में उन्हें राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उनके कदम से कदम मिला कर चलते देखा गया था। हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाशाओं पर समान पकड़ रखने वाली इल्तिजा की स्कूली पढ़ाई शिमला के एक बोर्डिंग स्कूल से हुई है, फिर इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए लंदन की ‘वॉरविक युनिवर्सिटी’ चली गईं। वहां से लौट कर इन्होंने दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक में काम किया, फिर ‘गल्फ न्यूज’ के लिए काम करने लगीं। कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद इल्तिजा ने नियमित तौर पर अपना वीडियो ब्लॉग बनाना शुरू कर दिया-’आपकी बात इल्तिजा के साथ।’ पूछने पर वह भले ही कहती हो-’नहीं, पॉलिटिक्स नहीं करनी,’ पर उनके तमाम अंदाजे बयां कोई और ही कहानी कहते हैं।

और अंत में

दिल्ली के सत्ता के गलियारों में बार-बार यह सवाल मचल रहा है कि इस साल के आखिर में जब अयोध्या में राम मंदिर भी बन जाएगा तो इसके बाद भाजपा के पास अगला एजेंडा क्या रह जाएगा? संघ से जुड़े एक विचारक बताते हैं कि ’मुद्दों की कमी ना संघ के पास है और ना ही भाजपा के पास। अभी ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ और ‘पॉपुलेशन कंट्रोल बिल’ आना है, जिसकी धमक 24 के बाद कभी भी सुनी जा सकेगी।’

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