समग्र समाचार सेव
गुवाहाटी, 26 फरवरी।राष्ट्रपति कोविंद असम के तीन दिवसीय दौरे पर शुक्रवार को गुवाहाटी पहुंचे। यहां उन्होंने अहोम सेनापति लचित बोडफूकन की 400 वीं जयंती समारोह की शुरुआत सहित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया। कोविंद, अपनी पत्नी और बेटी के साथ, गुवाहाटी के लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भारतीय वायु सेना के एक विशेष विमान से आए। असम के राज्यपाल जगदीश मुखी, मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा और वरिष्ठ अधिकारियों ने गर्मजोशी से उनकी अगवानी की। मुखी और सरमा ने असम में कोविंद का स्वागत करने पर ट्वीट किया और दोनों ने कहा कि राष्ट्रपति का स्वागत करना सम्मान की बात है। कोविंद वहां से कामाख्या मंदिर गए और पूजा-अर्चना की। मुखी, सरमा और राज्य के अन्य मंत्री उनके साथ मंदिर के अंदर गए, जहां मीडिया का प्रवेश प्रतिबंधित था।
वर्ष भर चलने वाली 400वीं जयंती समारोह का उद्घाटन
राष्ट्रपति शाम को गुवाहाटी में अहोम सेनापति लाचित बोड़फुकन की वर्ष भर चलने वाली 400वीं जयंती समारोह का उद्घाटन किया है। वह श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र सभागार में असम के कामरूप जिले के दादरा में बनने वाले अलाबोई युद्ध स्मारक की आधारशिला भी रखी। इस दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि “अतिथि देवो भवः” भावना सारे देशवासियों ने असम से सीखनी चाहिए।
यह बहादुर योद्धा युवाओं के लिए प्रेरणा
असम के वीर सेनानायक लचित बोरफूकन की जयंती समारोह में उद्घाटन समारोह में उन्होंने कहा कि देश की अखंडता और परंपरा की रक्षा के लिए लचित बोरफूकन जैसे नायक की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत का यह बहादुर योद्धा विशेष रूप से युवाओं के लिए प्रेरणा है। मुगलों के खिलाफ अकेले उत्तर-पूर्वी राज्य के इस योद्धा ने देश को बसाया था। भारत के इस क्षेत्र को इस योद्धा के कारण मुगलों द्वारा पराजित नहीं किया जा सका। इसलिए इस बहादुर योद्धा का देश के कोने-कोने में सम्मान और प्रेरणा लेनी चाहिए। इतना बड़ा योद्धा भारत के लिए गर्व की बात है।
राष्ट्रपित ने असम के लोगों को धन्यवाद दिया
असम के लोगों ने जिस तरह से उनका स्वागत किया, उसके लिए आभार व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि यह असम और पूर्वोत्तर भारत के लिए सम्मान का एक महान संस्कार है।उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि शक्तिपीठ मां कामाख्या मैंने देश की भलाई के लिए प्रार्थना की है, खासकर युवा और युवा पीढ़ी के लिए। उन्होंने कहा कि देश के सभी लोग स्वस्थ रहें और युवा पीढ़ी को सुरक्षित रखें, इसीलिए मैंने मां कामाख्या से आशीर्वाद लिया है।
लचित बोरफुकन का मूल नाम ‘चाउ लासित फुकनलुंग’ थाः सरमा
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अहोम जनरल सेना के प्रमुख लचित बारफूकन के बारे में कहा कि लचित बोरफुकन का मूल नाम ‘चाउ लासित फुकनलुंग’ था। बोरफुकन (सेनापति) उनकी सैन्य उपाधि थी| ये 17वीं शताब्दी के एक महान और वीर योद्धा थे। उनकी वीरता के कारण ही उन्हें पूर्वोत्तर भारत का वीर ‘शिवाजी’ कहा जाता है। लाचित का जन्म साल 24 नवंबर 1622 में अहोम राजवंश के एक बड़े अधिकारी के घर हुआ।
इस वीर ने पूर्वोत्तर में मुगल शासकों को रोक दिया था
बचपन से ही काफी बहादुर और समझदार होने का कारण लाचित जल्द ही अहोम राजवंश की सेना के सेनापति यानि बोरफुकन (सेनापति) बन गए। लचित बोरफुकन को ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे मुगलों के विरुद्ध 1671 में सराईघाट की निर्णायक जंग के लिए जाना जाता है जिसमें इन्होने शक्तिशाली मुगल सेना को हराया था। उस वक्त मुगल शासक औरंगजेब , पूरे भारत पर साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और इस उद्देश्य से उसने राम सिंह के नेतृत्व में विशाल मुगल सेना को कामरूप पर अधिकार करने के लिए भेजा।
1672 में प्राकृतिक कारणों से लाचित बोरफुकन की मृत्यु हुई
आहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित ने बेहद कम सैनिकों और संसाधन के साथ युद्ध कौशल का ऐसा प्रदर्शन किया कि मुगलों का उत्तर-पूर्व में राज करने की महत्वाकांक्षा पूर्ण न हो सकी| सराईघाट की विजय के लगभग एक वर्ष बाद अर्थात वर्ष 1672 में प्राकृतिक कारणों से लाचित बोरफुकन की मृत्यु हो गई। लाचित बोरफुकन का कोई चित्र उपलब्ध नहीं है, लेकिन एक पुराना इतिवृत्त उनका वर्णन इस प्रकार करता है, “उनका मुख चौड़ा है तथा पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह दिखाई देता है और कोई भी उनके चेहरे की ओर आँख उठाकर नहीं देख सकता”।
प्रति वर्ष 24 नवम्बर को ‘लाचित दिवस’ मनाया जाता है
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाचित बोरफुकन को भारत के महान बेटों में से एक बताया। लाचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय का स्मरण करने के लिए संपूर्ण असम में प्रति वर्ष 24 नवम्बर को ‘लाचित दिवस’ मनाया जाता है। सराईघाट की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध इस युद्ध में लाचित ने शौर्य का ऐसा प्रदर्शन किया कि नैशनल डिफेंस अकैडमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को उनके नाम पर पड़े लाचित मैडल से सम्मानित किया जाता है।
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