पुस्तक समीक्षा : ‘भारतीय शिक्षा दृष्टि’ – डॉ. मोहन भागवत की विचारशील प्रस्तुति

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,25 मार्च।
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की नींव होती है, और जब यह शिक्षा अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों से जुड़ी हो, तो समाज का समग्र विकास सुनिश्चित होता है। इसी दृष्टिकोण को रेखांकित करती है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय शिक्षा दृष्टि’। यह पुस्तक भारत के पारंपरिक शिक्षा तंत्र, आधुनिक शिक्षा प्रणाली और शिक्षा में भारतीय मूल्यों के महत्व पर एक विस्तृत विमर्श प्रस्तुत करती है।

‘भारतीय शिक्षा दृष्टि’ में डॉ. मोहन भागवत ने शिक्षा को भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखने और समझने की जरूरत पर बल दिया है। पुस्तक में भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्राचीन विरासत से लेकर वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की गई है।

डॉ. भागवत ने तर्क दिया है कि आज की शिक्षा प्रणाली में भारतीयता का अभाव है, जिससे छात्र अपनी संस्कृति और परंपराओं से कटते जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि शिक्षा केवल रोजगार का साधन नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह नैतिकता, सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना भी विकसित करे

  1. प्राचीन शिक्षा प्रणाली : पुस्तक में गुरुकुल परंपरा, वेदों और उपनिषदों से प्राप्त ज्ञान, नालंदा-तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों की महत्ता पर चर्चा की गई है।

  2. आधुनिक शिक्षा की चुनौतियां : वर्तमान पश्चिमी प्रभाव वाली शिक्षा प्रणाली में मूल्यों के गिरते स्तर और रटने वाली पढ़ाई के नुकसान पर प्रकाश डाला गया है।

  3. भारतीय शिक्षा नीति का मूल्यांकन : नई शिक्षा नीति (NEP-2020) के सकारात्मक पहलुओं को रेखांकित करते हुए भारतीय शिक्षा प्रणाली को आत्मनिर्भर और स्वदेशी सोच के अनुरूप बनाने की वकालत की गई है।

  4. शिक्षा का उद्देश्य : डॉ. भागवत ने जोर दिया है कि शिक्षा केवल डिग्री और नौकरियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह चरित्र निर्माण, समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण का माध्यम बने

  5. स्वदेशी सोच की जरूरत : उन्होंने भारत में शिक्षा को भारतीय भाषा, परंपरा और संस्कृति से जोड़ने की वकालत की है, जिससे छात्रों में आत्मसम्मान और स्वाभिमान की भावना विकसित हो

डॉ. मोहन भागवत की लेखन शैली स्पष्ट, तर्कसंगत और शोधपरक है। उन्होंने इतिहास, सांस्कृतिक संदर्भों और समकालीन शिक्षा नीतियों के उदाहरणों के माध्यम से अपने विचारों को प्रस्तुत किया है। भाषा सहज और प्रभावशाली है, जिससे आम पाठक भी इसे आसानी से समझ सकते हैं।

  • जो लोग भारतीय शिक्षा प्रणाली को गहराई से समझना चाहते हैं

  • नई शिक्षा नीति (NEP-2020) और भारत की शैक्षिक दिशा पर एक प्रामाणिक दृष्टिकोण प्राप्त करना चाहते हैं

  • शिक्षा और संस्कृति के आपसी संबंधों पर विस्तृत अध्ययन करने में रुचि रखने वाले छात्र, शिक्षक और शोधकर्ता

‘भारतीय शिक्षा दृष्टि’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक वैचारिक दस्तावेज है, जो भारत के शैक्षिक परिदृश्य को भारतीय संदर्भ में देखने और समझने का मार्ग प्रशस्त करता है। डॉ. मोहन भागवत ने भारत की परंपरागत शिक्षा प्रणाली और आधुनिक जरूरतों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को बखूबी समझाया है।

यह पुस्तक उन सभी के लिए पठनीय और विचारणीय है, जो शिक्षा के भारतीयकरण और उसमें नैतिक मूल्यों के समावेश को लेकर गंभीर हैं। भारत की नई पीढ़ी को राष्ट्र-निर्माण की भावना से जोड़ने के लिए यह पुस्तक निश्चित रूप से प्रेरणादायक साबित होगी

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