कुमार राकेश
किताबें
न तो कहती है,
न ही सुनती है.
वो तो सिर्फ़
भूख ,
बेचेनी ,
तड़प ,
चाहत के साथ
एक अपनापन
पैदा करती है
नयी सोच के लिए
नई क्रांति के लिए ,
किताबों की दोस्ती,
लाजवाब होती है .
उसकी दोस्ती
आपको
मन,वचन व कर्म से
मज़बूत
बनाती है
शक्ति सम्पन्न
बनाती है
जिससे
आप,हम
अपने
परिवार,
समाज,
देश,
और विश्व
का समग्र कल्याण
कर सके ,
असीम शांति,
समग्रता व
समन्वय की भावनाओं
के साथ !!!!
@कुमार राकेश
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