कैप्टन अमरिंदर की रीढ़

देवेन्द्र सिकरवार

कॉंग्रेस में किसी भी रीढ़ और दिमाग वाले व्यक्ति के लिये कोई स्थान नहीं होता, यह परंपरा तो गांधीजी के समय से ही स्थापित तथ्य है लेकिन कांग्रेस पर काबिज वर्तमान इटालियन औरत को तो ऐसा कोई व्यक्ति भी बर्दाश्त नहीं जो भारत को विखंडित करने के उसके और उसके वैटिकन गैंग के इरादों के रास्ते में खड़ा होने की गुस्ताखी करे।

भाजपा ने पिछले चुनावों में आत्मबलिदान देकर अपने वोटों को अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की ओर मोड़ दिया था और पंजाब को केजरीवाल व आम आदमी पार्टी के खालिस्तानी इरादों को रोक दिया था इसलिए इटैलियन औरत को कांग्रेस की विजय भी रास न आई और येन केन प्रकरण कैप्टन की राह में सिद्धू नामक कांटे को बिछाती रही।

खालिस्तान की सोच के भयंकर विरोधी कैप्टन किसान आंदोलन के पीछे इटालियन औरत व उसके धूर्त नालायक बेटे की तिकडमों को धता बताकर अंदरखाने भाजपा से भी सैटिंग किये रहे हैं और सिद्धू ‘हरीराम नाई’ बनकर दौड़ दौड़कर इटैलियन मैडम को इन समाचारों का लाइव टेलीकास्ट करते रहे।

अमरिंदर यूँ भी पहले से ही इटैलियन औरत को सख्त नापसंद हैं क्योंकि उनकी रीढ़ सीधी है और इस औरत को झुके व रीढ़विहीन लोग ही सुहाते हैं जैसे दिग्विजय सिंह, अहमद पटेल आदि

भारतीय राजनीति में ही नहीं समस्त सार्वजनिक जीवन वाले समकालीन व्यक्तित्वों में घोर नीचता व पतन को प्राप्त नवजोत सिद्धू की शायद ताजपोशी हो जाये हालांकि ये इतना सरल नहीं होने जा रहा है।

जहाँ तक कैप्टन का संबंध है एक संदेहास्पद पाकिस्तानी औरत से उनके व्यक्तिगत जीवन की रंगीनियों जो प्रायः राजनेताओं की सामान्य बीमारी है, को छोड़ दिया जाए तो उनका खालिस्तान विरोध जगजाहिर है तो ऐसी स्थिति में उनके पास दो विकल्प हैं-

प्रथम, वे स्वयं की पार्टी बनाएं।
द्वितीय, वे भाजपा में शामिल हो जाएं।

द्वितीय विकल्प में शायद तात्कालिक तौर पर लाभ न हो लेकिन भविष्य में उनकी संभावनाएं उज्ज्वल रहेंगी।

प्रथम विकल्प में भी वह अपने दम पर बहुमत नहीं ला पाएंगे लेकिन अगर भाजपा से गठबंधन कर लेते हैं तो पंजाब के मुख्यमंत्री पुनः वही होने वाले हैं।

इटैलियन कंपनी भी इस बात को समझती है अतः इधर इस आगामी चुनाव में कांग्रेस, केजरीवाल और अकालियों का गठबंधन हो जाये तो आश्चर्य न कीजियेगा।

अगर इटैलियन औरत खालिस्तानियों के साथ मिलकर भारत को तोड़ने के लिए यह खेल खेल सकती है तो भाजपा राष्ट्रहित में खालिस्तानियों के विरोधी अमरिंदर सिंह के साथ मिलकर यह खेल क्यों नहीं खेल सकती है।

राजनीति आखिर सत्ता के लिये असंभव को संभव बनाने की कला ही तो है प्रश्न केवल सत्ता के उद्देश्य का है।
देवेन्द्र सिकरवार

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