ग्रामीण महिलाओं एवं वनवासियों के सशक्तिकरण के कार्यक्रमों को गंभीरता से ले केन्द्र सरकार- श्री नीरज डांगी
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 09 अगस्त। राजस्थान से राज्यसभा सांसद ने ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण के सम्बन्ध में अतारांकित प्रश्न के माध्यम से महिला एवं बाल विकास मंत्री से यह सवाल किया कि क्या सरकार ने विगत तीन वर्षो के दौरान देश में ग्रामीण महिलाओं के समग्र विकास के लिए कोई नई योजना लागू की है और इन नई योजनाओं के अंतर्गत किये गए वित्तीय आवंटन का ब्यौरा क्या है?
प्रश्न के लिखित उत्तर में महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी ने सदन को अवगत कराया है कि भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्लयूसीडी) ने समेकित महिला सशक्तिकरण के लिए कोई नई योजना प्रारम्भ नहीं की है और पूर्व में चली आ रही राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर के केंद्र, महिला हेल्पलाइन, वन स्टॉप सेंटर, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सखी निवास या कामकाजी महिला छात्रावास, निराश्रित और संकटग्रस्त महिलाओं के लिए शक्ति सदन या गृह, शिशु गृह आदि जैसे घटकों को शामिल करते हुए महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम के रूप में ‘मिशन शक्ति’ के तहत महिलाओं की संपूर्ण सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए एक नई अम्ब्रेला स्कीम वर्तमान वित्तीय वर्ष से शुरू करने का निर्णय लिया है।
इस योजना के तहत देश के 36 राज्यों में मात्र 87.87 करोड़ रूपये की राशि जारी की गई है, जिसमें से 3.28 करोड़ राजस्थान राज्य को आवंटित किये गये है। परन्तु मंत्री यह बताने में असमर्थ रही कि आवंटित राशि में से कितनी राशि ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण पर खर्च की गई है।
सांसद डांगी ने अनुसूचित जनजाती व अन्य पारम्परिक वनवासियों के ग्रामों के लिए क्रियान्वित किए गए कार्यक्रम से संबंधित प्रश्न करते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय से यह जानना चाहा कि विगत तीन वर्षो के दौरान भारत सरकार द्वारा देश के जनजातीय क्षेत्रों विशेषतः वन्य ग्रामों और उनके निवासियों के लिए क्रियान्वित के लिए क्या कार्यक्रम चलाए जा रहे है, इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए कितनी राशि आवंटित की गई है? साथ ही सरकार द्वारा उक्त अवधि के दौरान संबंधित विभागों द्वारा उपयोग की गई राशि का विस्तृत ब्यौरा क्या है? साथ ही भारत सरकार द्वारा वन्य ग्रामों को राजस्व ग्रामों में उन्नत करने की कार्य योजना की भी जानकारी मांगी गई।
जनजातीय कार्य राज्यमंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरूता ने प्रश्न के लिखित उत्तर में सदन को बताया कि सरकार देश भर में जानजातीय लोगों के समग्र विकास के लिए जनजातीय उप-योजना (टीएसपी)/अनुसूचित जनजाति घटक (एसटीसी)/अजजा के विकास के लिए विकास कार्य योजना (डीएपीएसटी) लागू कर रही है। जनजातीय कार्य मंत्रालय के अलावा, नीति आयोग द्वारा 40 केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों को जनजातीय विकास के लिए एसटीसी निधियों के रूप में प्रति वर्ष उनके कुल योजना आवंटन का एक निश्चित प्रतिशत निर्धारित करने के लिए बाध्य किया गया है।
जनजातीय कार्य मंत्रालय ने वर्ष 2005 से वन गांवों के निवासियों के मानव विकास सूचकांक (पीएआइ) को बढ़ाने तथा 2,474 वन गांवों/अधिवासों, जिन्हें देश के 12 राज्यों नामतः असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखण्ड़, मध्य प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, ओड़िशा, त्रिपुरा, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में फैले कार्यक्रमों के तहत शामिल किया गया था। इसमें राजस्थान राज्य सम्मलित नहीं है। इसके तहत इन गांवों में स्वास्थ्य, सम्पर्क सड़के, प्राथमिक शिक्षा , लघु सिंचाई, पेयजल, स्वच्छता, सामुदायिक केन्द्र, वर्षा जल संग्रहण बुनियादी सेवाओं और सुविधाओं से सम्बन्धित कार्य सम्मलित थे। इन कार्यो हेतु वर्ष 2012-13 के उपरान्त किसी भी तरह की कोई राशि आवंटित नहीं की गई।
श्री डांगी ने बताया कि जनजाति मंत्री ने यह कहते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया कि वन निवासी (वन अधिकारियों की मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत वन निवासी अनुसूचित जनजाती और अन्य पारम्परिक वन निवासियों के वन अधिकारों से संबंधित है और इनके क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है।
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