समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,17 मार्च। छत्रपति शिवाजी महाराज की पावन जयंती पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाएगी। यह अवसर केवल एक महापुरुष के जन्मदिन का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्र चेतना और स्वाभिमान के जागरण का प्रतीक भी है। शिवाजी महाराज ने न केवल हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की, बल्कि उसकी रक्षा के लिए अपनी तीन पीढ़ियों को समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने पराक्रम और युद्धनीति से आततायी मुगलों को नाकों चने चबवा दिए और हिंदू समाज में आत्मगौरव की भावना को पुनर्जीवित किया।
आज, जब भारत अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को पुनः स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब पराधीनता के प्रतीकों और मानसिकता का समूल नाश अनिवार्य हो गया है। विदेशी आक्रांताओं ने जिस मानसिकता को भारत पर थोपा, वह केवल राजनीतिक नियंत्रण तक सीमित नहीं रही, बल्कि सांस्कृतिक दासता का रूप भी धारण कर गई। अब समय आ गया है कि उस गुलामी की मानसिकता को पूरी तरह समाप्त कर अपने गौरवशाली अतीत को पुनः स्थापित किया जाए।
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल के कार्यकर्ता संपूर्ण महाराष्ट्र में प्रदर्शन करेंगे। उनका मुख्य उद्देश्य औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर सरकार को ज्ञापन सौंपना है। यह मांग केवल एक ऐतिहासिक स्मारक को हटाने की नहीं, बल्कि उस मानसिकता के खात्मे का संकल्प है जो भारतीय संस्कृति, परंपराओं और राष्ट्रीय स्वाभिमान के विपरीत रही है।
शिवाजी महाराज की भूमि पर औरंगजेब जैसे क्रूर शासक की कब्र का अस्तित्व एक प्रश्नचिन्ह बना हुआ है। यह केवल एक कब्र नहीं, बल्कि उन अत्याचारों और विध्वंस की याद दिलाती है जो औरंगजेब ने हिंदू समाज पर किए थे। आज जब देश अपनी वास्तविक पहचान की ओर लौट रहा है, तब इस प्रतीक का अंत भी निकट है।
शिवाजी महाराज केवल एक योद्धा नहीं थे, वे एक कुशल प्रशासक, धर्मरक्षक और जनता के प्रिय शासक थे। उन्होंने न केवल मराठा साम्राज्य को संगठित किया, बल्कि हिंदू समाज में आत्मविश्वास भी भरा। उनकी नीति ‘सर्व धर्म समभाव’ की थी, जिसमें सभी को समान रूप से न्याय और सुरक्षा दी गई।
आज, जब हम उनकी जयंती मना रहे हैं, तब हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने गौरवशाली इतिहास को न केवल याद रखें, बल्कि उसे पुनः स्थापित भी करें। औरंगजेब और उसकी मानसिकता का अंत केवल एक स्मारक के हटाने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह एक नई राष्ट्रीय चेतना के जागरण का संकेत होगा।छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के इस पावन अवसर पर, हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम उनकी वीरता, नीतियों और हिंदवी स्वराज्य के सपने को पुनः जीवंत करेंगे और पराधीन मानसिकता को समाप्त कर भारत को एक सशक्त और स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ाएंगे।
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