समग्र समाचार सेवा
रायपुर, 16दिसंबर। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने राज्य के हेमचंद विश्वविद्यालय-दुर्ग, संत गहिरा गुरू विश्वविद्यालय-अम्बिकापुर, अटल बिहारी विश्वविद्यालय-बिलासपुर एवं पं. रविशंकर विश्वविद्यालय-रायपुर के अंतर्गत स्वशासी महाविद्यालयों में चार वर्षीय उपाधि पाठ्यक्रम लागू करने हेतु विश्वविद्यालयों के अध्यादेश में हस्ताक्षर कर दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्य में नई शिक्षा नीति के तहत् शिक्षा में नवाचार प्रारंभ करने हेतु, चार वर्षीय पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जाना है। इसी क्रम में सम्बद्ध स्वशासी महाविद्यालयों में, उक्त पाठ्यक्रम लागू करने के लिए पं. रविशंकर विश्वविद्यालय द्वारा अध्यादेश क्र. 197, हेमचंद विश्वविद्यालय द्वारा अध्यादेश क्र. 144, संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय द्वारा अध्यादेश क्र. 181 एवं अटल बिहारी विश्वविद्यालय द्वारा अध्यादेश क्र. 144, राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। जिस पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर कर दिया गया है। इन स्वशासी महाविद्यालयों में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम विद च्वाईस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम एण्ड लर्निंग आउटकम बेस्ड करीकुलम फ्रेमवर्क प्रारंभ किए जाने का प्रावधान किया गया है।
राज्यपाल सुश्री उइके ‘जलवायु परिवर्तन’ विषय पर आयोजित कॉन्क्लेव में हुईं शामिल
राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके आज ‘जलवायु परिवर्तन’ विषय पर आयोजित कॉन्क्लेव के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल हुईं । इस अवसर पर राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि पिछले कुछ दशकों में पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ा है। इसके प्रति पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रहे, अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानक संस्थानों ने इस पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने भौतिक और प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रित उपयोग करना आवश्यक बताया। साथ ही उन्होंने जल, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या पर विचार करने के लिए ऐसे आयोजन को सराहनीय बताया तथा इसके लिए शासन के साथ सभी लोगों को मिलकर कदम उठाने की आवश्यकता बताई। इसके साथ ही इस कार्यक्रम से देश-विदेश के शोधार्थी और विद्यार्थी की लाईव भागीदारी पर उन्होंने खुशी व्यक्त की । इस अवसर पर राज्यपाल ने जल जीवन मिशन का एप्प भी लॉन्च किया। इस दो दिवसीय कॉन्क्लेव का आयोजन छत्तीसगढ़ सरकार, एमिटी विश्वविद्यालय रायपुर और यूनिसेफ के द्वारा संयुक्त रुप से एमिटी विश्वविद्यालय में आयोजित किया गया है।
राज्यपाल ने इस अवसर पर भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ी संख्या में ग्लेशियर पिघलने की घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ग्लेशियरों के पिघलने से पेयजल की समस्या, बाढ़ का खतरा जैसी समस्यााएं जन्म लेंगी। जलवायु में परिवर्तन को अब हम विभिन्न क्षेत्रों में महसूस कर सकते हैं। मौसम में परिवर्तन आ गया है। ऋतुओं का चक्र भी बदल गया है। उन्हेांने कहा कि यह परिवर्तन अचानक से नहीं आया, यह मनुष्य के लालच का परिणाम है। उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों केा दोहराते हुए कहा कि ‘‘प्रकृति मानव की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, किन्तु हर मनुष्य के लालच की पूर्ति नहीं करती‘‘। इसलिए उन्होंने संसाधनों के अंधाधंुध देाहन से बचते हुए उसका बेहतर उपयोग करने का संदेश दिया।
राज्यपाल ने कहा कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को हमेशा से माता का दर्जा दिया गया है और उसकी उसी तरह देखभाल की जाती थी। किन्तु औद्योगिकीकरण, आधुनिकीकरण ने इसके महत्व को नजरअंदाज करते हुए इसका अत्यधिक दोहन किया है। इसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। परंतु इसके लिए कोई विशेष उपाय नहीं किये जा रहे हैं, जिसके भयावह दुष्परिणाम बड़े शहरों में और अब तो गांवों में भी देखे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है, जिससें सिंचाई एवं पेयजल की परेशानी हो रही है। उन्हेांने कहा कि देश के अन्य भागों की तुलना में छत्तीसगढ़ में स्थिति अधिक नहीं बिगड़ी है। इसके प्रति हम सबको गंभीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा और पर्यावरण के संरक्षण पर पहले से अधिक ध्यान देना होगा।
राज्यपाल ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि यह कान्क्लेव जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए सहायक सिद्ध होगा। ताकि भारत और विश्व की भावी पीढ़ी शुद्ध पर्यावरण में स्वतंत्र होकर जीवनयापन कर सकें। राज्यपाल ने संविधान के नीति निदेशक तत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान में पर्यावरण संरक्षण को शासन के कर्तव्य के रूप में बताया गया है। इसकेे लिए शासन-प्रशासन द्वारा उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही राज्यपाल ने इस समस्या का सामना करने के लिए जनसमुदाय को मिलकर कदम उठाने की बात कही।
राज्यपाल ने कोविड के दौरान उत्पन्न आपदा का जिक्र करते हुए कहा कि पर्यावरण का अनदेखा कर अंधाधुंध रूप से हो रहे आधुनिकीकरण से कई समस्या उत्पन्न हुई हैं। कोविड महामारी के दौरान हमने यह सब महसूस किया है। इसलिए अब हम सभी को प्रकृति का ध्यान रखना चाहिए। उन्हेांने कहा कि पर्यावरण के बीच रहकर मन को सुकुन मिलता है, तनाव दूर हो जाता है। पेड़ों को बढ़ते देखना प्रसन्नता होती है। राज्यपाल ने कहा सिर्फ बातें करने से बदलाव नहीं आता है इसके लिए हमें व्यापक स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है।
इसके अलावा राज्यपाल ने प्रधानमंत्री टी.बी. मुक्त अभियान के बारे में संदेश देते हुए कहा कि टी.बी लाईलाज बीमारी नहीं है, इससे डरने की आवश्यकता नहीं है। टी.बी. की जांच तथा इसका निःशुल्क इलाज आप अपने नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र में निःशुल्क करा सकते हैं। उन्होंने कहा कि टी.बी. के लक्षण दिखने पर तुरंत जांच कराए। टी.बी. उन्मूलन के लिए केन्द्र सरकार कृत संकल्पित होकर कार्य कर रही है। किन्तु इसके लिए जनजागरूकता आवश्यक है। उन्हांेने सभी से आग्रह किया कि सभी अपने क्षेत्र के लोगों को इस बीमारी एवं सरकार के अभियान दोनो से अवगत कराएं।
इस अवसर पर राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा डिजाईन किए गए खादी के कपड़ों पर आधारित प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया। राज्यपाल ने यूनिसेफ और एमिटी विश्वविद्यालय को ‘जलवायु परिवर्तन’ की समस्या के विरूद्ध संगठित एवं संकल्पित प्रयास के लिए शुभकामनाएं भी दीं। इस अवसर पर संचालक जलजीवन मिशन छत्तीसगढ़ श्री टोपेश्वर वर्मा, यूनिसेफ छत्तीसगढ़ के प्रभारी अधिकारी सुश्री श्वेता पटनायक, छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष श्री उमेश मिश्रा, अमिटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. डब्ल्यू. सेल्वामूर्ति एवं विश्वविद्यालय कार्य परिषद् के समस्त कर्मचारी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।
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