डॉ राजेश्वर उनियाल
छावा फिल्म – केवल फिल्म न होकर हिंदुओं के शौर्य व अद्मय साहस का महाकुंभ है
बंधुओ, क्या आपने अपने जीवन में कभी कोई ऐसी फिल्म देखी है जिसमें फिल्म समाप्त हो गई हो, पर दर्शक अपनी सीटों से उठने का साहस नहीं कर पा रहे हों।
स्वतंत्रता के बाद नेहरू, नकली गांधी परिवार व टुकड़े गैंग वाले देशद्रोही वामपंथियों ने जिस प्रकार हमारे गौरवशाली इतिहास को तोड़ मरोड़कर महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह व छत्रपति शिवाजी जैसे महापुरुषों के स्थान पर अकबर, शाहजहां, औरंगजेब व टीपू सुल्तान जैसे उन अत्याचारी, आक्रमणकारी, लुटेरे क्रूर विदेशी आक्रांताओं का गुणगान किया है, उससे हमारी तीन-चार पीढ़ियां सच्चाई से कोसों दूर हो गई थी।
वह तो गनीमत है कि छावा फिल्म बनने से पहले आज की पीढ़ी ने कश्मीर की घटना, गोधरा, पश्चिम बंगाल, केरल व पाकिस्तान तथा बंगला देश आदि में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को अपनी आंखों के सामने देखा है, जिससे कि उन्हें अब लगने लगा है कि उनके साथ सचमुच जितनी क्रूरता व अत्याचार उन पर मुगलों या अंग्रेजों ने किया होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि उससे अधिक कुटिलता स्वतंत्रता के बाद नेहरू गांधी परिवार व इन देश के गद्दार वामपंथियों ने हमारा गलत इतिहास प्रस्तुत कर किया है।
छावा का मतलब मराठी में शेर के बच्चे को कहते हैं । अब जिनके पिताजी हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी रहे हों, उनका बेटा भी छावा ही तो होता। औरंगजेब जैसे लुटेरे ने जिस प्रकार से छावा की निर्ममता व क्रूरता के साथ हत्या की, उस दृश्य को देखकर आम दर्शकों का हृदय पसीज-सा गया । छावा ही क्यों ? बंदा बैरागी, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह के बच्चे, उनका दूध पिलाने वाली माता तथा हजारों लाखों हिंदुओं की निमर्ममता के साथ हत्या करने वाले ये जेहादी चाहकर भी भारत का इस्लामीकरण इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि जयचंदों के होते हुए भी इस देश का हिंदू अपने धर्म और संस्कृति के लिए इतना कट्टर था कि हर मराठा व राजपूतों के रगों में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरु गोविंद सिंह की वीरता का प्रवाह दौड़ता रहता था।
अन्यथा जिन आक्रमणकारी मुसलमानों ने केवल 200 वर्ष के अंदर ही एक तिहाई दुनिया को मुस्लिम बना दिया था आखिर क्या कारण था कि भारत में 500 साल तक निर्ममता के साथ राज करने के बाद भी वह बमुश्किल एक तिहाई लोगों को ही मुसलमान बना पाए और वह राज भी इसलिए कर पाए क्योंकि यहां तब भी जयचंद थे और आज भी जयचंद जैसे गद्दार पल रहे हैं।
दिनेश विजन द्वारा निर्मित और लक्ष्मण उटेकर द्वारा निर्देशित यह फिल्म हमारे गत तीन सौ पैंतीस वर्ष पुराने इतिहास को प्रमाणिकता के साथ पुनर्जीवित करती है । छावा फिल्म में छत्रपति संभाजी भोंसले की भूमिका में विक्की कौशल, येसुबाई की भूमिका में रश्मिका मंदाना तथा औरंगजेब की भूमिका में अक्षय खन्ना की मेहनत रंग लाई है। लेकिन यदि इस फिल्म के गीत भी फिल्म के अनुकूल होते, तो निश्चित रूप से यह और भी अधिक स्मरणीय रहती।
हालांकि छावा फिल्म को मध्य प्रदेश और गोवा आदि कई राज्यों में टैक्स-फ्री कर दिया गया है, परंतु महाराष्ट्र में इसे अभी तक टेक्स फ्री नहीं करने पर अवश्य आश्चर्य हो रहा है। हां! हो सकता है कि महाराष्ट्र के माननीय मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड़नवीस जी आजकल औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलवाने हेतु प्रयासरत हों।
बंधुओ, इतिहास में वही होता है जो उसकी गति पहले से लिखी होती है, लेकिन यदि काल की रचना पर मानव का अधिकार होता और उत्तराखंड की वीरबाला तीलू रौतेली धोखे से नहीं मारी जाती, तो 1680 में छत्रपति शिवाजी के देहांत के बाद उत्तराखंड की वीरबाला तीलू रौतेली अपने अद्मय साहस व शौर्य के साथ संपूर्ण भारत से मुगलों का संहार कर शासन करती और फिर न तो भारत में अंग्रेज आ पाते और न हिंदुओं की आज यह दुर्दशा होती। लेकिन होई वही जो राम रची राखा।
फिर भी अंततः मैं इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि देशद्रोही वामपंथियों और ढोंगी सेकुलरों को छोड़कर जो लोग अभी तक भी चाहकर भी कुंभ नहीं जा पा रहे हैं, उन्हें कम से कम एक बार छावा फिल्म अवश्य देखनी चाहिए । मोक्ष का तो मैं नहीं जानता लेकिन उनको अपने पूर्वजों के शौर्य, साहस और नैतिकता पर गर्व अवश्य होगा – डा. राजेश्वर उनियाल तथा बंगला देश आदि में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को अपनी आंखों के सामने देखा है, जिससे कि उन्हें अब लगने लगा है कि उनके साथ सचमुच जितनी क्रूरता व अत्याचार उन पर मुगलों या अंग्रेजों ने किया होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि उससे अधिक कुटिलता स्वतंत्रता के बाद नेहरू गांधी परिवार व इन देश के गद्दार वामपंथियों ने हमारा गलत इतिहास प्रस्तुत कर किया है।
छावा का मतलब मराठी में शेर के बच्चे को कहते हैं । अब जिनके पिताजी हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी रहे हों, उनका बेटा भी छावा ही तो होता। औरंगजेब जैसे लुटेरे ने जिस प्रकार से छावा की निर्ममता व क्रूरता के साथ हत्या की, उस दृश्य को देखकर आम दर्शकों का हृदय पसीज-सा गया । छावा ही क्यों ? बंदा बैरागी, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह के बच्चे, उनका दूध पिलाने वाली माता तथा हजारों लाखों हिंदुओं की निमर्ममता के साथ हत्या करने वाले ये जेहादी चाहकर भी भारत का इस्लामीकरण इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि जयचंदों के होते हुए भी इस देश का हिंदू अपने धर्म और संस्कृति के लिए इतना कट्टर था कि हर मराठा व राजपूतों के रगों में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरु गोविंद सिंह की वीरता का प्रवाह दौड़ता रहता था।
अन्यथा जिन आक्रमणकारी मुसलमानों ने केवल 200 वर्ष के अंदर ही एक तिहाई दुनिया को मुस्लिम बना दिया था आखिर क्या कारण था कि भारत में 500 साल तक निर्ममता के साथ राज करने के बाद भी वह बमुश्किल एक तिहाई लोगों को ही मुसलमान बना पाए और वह राज भी इसलिए कर पाए क्योंकि यहां तब भी जयचंद थे और आज भी जयचंद जैसे गद्दार पल रहे हैं।
दिनेश विजन द्वारा निर्मित और लक्ष्मण उटेकर द्वारा निर्देशित यह फिल्म हमारे गत तीन सौ पैंतीस वर्ष पुराने इतिहास को प्रमाणिकता के साथ पुनर्जीवित करती है । छावा फिल्म में छत्रपति संभाजी भोंसले की भूमिका में विक्की कौशल, येसुबाई की भूमिका में रश्मिका मंदाना तथा औरंगजेब की भूमिका में अक्षय खन्ना की मेहनत रंग लाई है। लेकिन यदि इस फिल्म के गीत भी फिल्म के अनुकूल होते, तो निश्चित रूप से यह और भी अधिक स्मरणीय रहती।
हालांकि छावा फिल्म को मध्य प्रदेश और गोवा आदि कई राज्यों में टैक्स-फ्री कर दिया गया है, परंतु महाराष्ट्र में इसे अभी तक टेक्स फ्री नहीं करने पर अवश्य आश्चर्य हो रहा है। हां! हो सकता है कि महाराष्ट्र के माननीय मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड़नवीस जी आजकल औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलवाने हेतु प्रयासरत हों।
बंधुओ, इतिहास में वही होता है जो उसकी गति पहले से लिखी होती है, लेकिन यदि काल की रचना पर मानव का अधिकार होता और उत्तराखंड की वीरबाला तीलू रौतेली धोखे से नहीं मारी जाती, तो 1680 में छत्रपति शिवाजी के देहांत के बाद उत्तराखंड की वीरबाला तीलू रौतेली अपने अद्मय साहस व शौर्य के साथ संपूर्ण भारत से मुगलों का संहार कर शासन करती और फिर न तो भारत में अंग्रेज आ पाते और न हिंदुओं की आज यह दुर्दशा होती। लेकिन होई वही जो राम रची राखा।
फिर भी अंततः मैं इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि देशद्रोही वामपंथियों और ढोंगी सेकुलरों को छोड़कर जो लोग अभी तक भी चाहकर भी कुंभ नहीं जा पा रहे हैं, उन्हें कम से कम एक बार छावा फिल्म अवश्य देखनी चाहिए । मोक्ष का तो मैं नहीं जानता लेकिन उनको अपने पूर्वजों के शौर्य, साहस और नैतिकता पर गर्व अवश्य होगा
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