समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,5 अप्रैल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते एक दशक में चौथी बार श्रीलंका की यात्रा कर यह साफ संदेश दिया है कि भारत अपने समुद्री पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को न सिर्फ प्राथमिकता देता है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए भी पूरी तरह सजग है। यह दौरा सिर्फ एक औपचारिक कूटनीतिक यात्रा नहीं, बल्कि इसके पीछे भू-राजनीतिक रणनीतियों की गहराई छिपी है—खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव और श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता के बीच।
बीते वर्षों में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में घिरी रही। इसकी एक बड़ी वजह चीन द्वारा दिए गए भारी-भरकम कर्ज हैं, जिनके बदले में कोलंबो को रणनीतिक बंदरगाहों तक की लीज चीन को देनी पड़ी, जैसे हम्बनटोटा पोर्ट। यह वही “ड्रैगन का कर्जजाल” है जिससे दक्षिण एशिया के कई देश जूझ रहे हैं। भारत इस जाल को समझता है और वह श्रीलंका को इससे निकालने का प्रयास कर रहा है—मदद के रूप में, निवेश के माध्यम से और रणनीतिक सहयोग के जरिये।
हिंद महासागर वैश्विक व्यापार और रणनीति की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है। चीन लगातार इस क्षेत्र में अपनी समुद्री मौजूदगी बढ़ा रहा है, जिसे भारत अपनी सुरक्षा और प्रभुत्व के लिए खतरे के तौर पर देखता है। ऐसे में श्रीलंका जैसे द्वीपीय देश के साथ मजबूत संबंध भारत के लिए न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद हैं, बल्कि सुरक्षा दृष्टि से भी अनिवार्य हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा उसी दिशा में एक और कदम है—जहां समुद्री सुरक्षा, रक्षा सहयोग और साझा रणनीति पर बल दिया गया। इससे Quad जैसे मंचों पर भारत की भूमिका को और मजबूती मिलती है।
भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक संबंध हजारों साल पुराने हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान बौद्ध स्थलों का दौरा कर इस जुड़ाव को और गहरा किया। इसके साथ ही भारत ने शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसंरचना विकास के लिए भी कई परियोजनाओं की घोषणा की, जिससे आम श्रीलंकाई जनता को सीधा लाभ मिलेगा।
2014 से अब तक यह पीएम मोदी की चौथी श्रीलंका यात्रा है। यह दर्शाता है कि भारत दक्षिण एशिया को ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के तहत प्राथमिकता देता है। साथ ही यह संदेश भी जाता है कि भारत अपने पड़ोसी देशों की कठिन परिस्थितियों में सबसे पहले खड़ा रहने वाला सहयोगी है—बिना किसी छिपे एजेंडे के।
श्रीलंका दौरा प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की रणनीतिक और संवेदनशील समझ को दर्शाता है। यह दौरा सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती का प्रतीक नहीं, बल्कि चीन के प्रभाव को संतुलित करने, हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने और भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व क्षमता को रेखांकित करने वाला कदम है।
भारत और श्रीलंका दोनों ही देशों के लिए यह साझेदारी न सिर्फ आज की जरूरत है, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए सामरिक और आर्थिक सुरक्षा की आधारशिला भी है।
Comments are closed.