शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन से पूर्व चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भारत दौरा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 16 अगस्त — भारत-चीन संबंधों को नई दिशा देने की कोशिशों के बीच चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 से 20 अगस्त तक भारत की यात्रा पर रहेंगे। यह दौरा उस समय हो रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच चीन में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में भाग लेने वाले हैं।

कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, वांग यी की यात्रा के दौरान सीमा विवाद, व्यापारिक सहयोग और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर बातचीत होगी। 2020 की गलवान घाटी झड़पों के बाद से दोनों देशों के बीच लगातार तनाव बना हुआ है और इस पृष्ठभूमि में यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

दौरे के मुख्य एजेंडे

सीमा स्थिरता: भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पूरी तरह से सैनिकों को हटाया जाए। नई दिल्ली शांति बहाली और विश्वास निर्माण उपायों पर जोर देने की संभावना है।

व्यापारिक संबंध: राजनीतिक मतभेदों के बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदारों में से एक है। बातचीत में व्यापार घाटा कम करने और गैर-संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने पर चर्चा हो सकती है।

SCO में सहयोग: दोनों देश SCO के अहम सदस्य हैं। बातचीत में आतंकवाद-रोधी उपायों, क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं और अफगानिस्तान की स्थिरता पर चर्चा हो सकती है।

वैश्विक राजनीति: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता और भारत की क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत) में भूमिका के बीच, वांग यी संभवतः एशियाई देशों की एकजुटता पर जोर देंगे।

मोदी की यात्रा से पहले का प्रतीकात्मक महत्व

वांग यी की यात्रा को प्रतीकात्मक रूप से अहम माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि चीन, बीजिंग में होने वाले SCO सम्मेलन से पहले भारत के साथ सहयोगी माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है। वहीं भारत के लिए यह अवसर और चुनौती दोनों है — उसे अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को सख्ती से सामने रखना होगा।

चुनौतियाँ

हालांकि कूटनीतिक बातचीत जारी है, लेकिन कई बाधाएँ अब भी मौजूद हैं। सीमा पर बार-बार तनाव और चीन की दक्षिण एशिया में परियोजनाओं को लेकर भारत की आशंकाएँ अविश्वास को गहरा करती हैं। साथ ही अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते सामरिक और आर्थिक रिश्ते इस समीकरण को और जटिल बनाते हैं।

निष्कर्ष

विशेषज्ञों का कहना है कि यह यात्रा या तो भारत-चीन संबंधों में बर्फ पिघलाने का अवसर साबित हो सकती है या फिर दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास को और उजागर कर सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा नजदीक है और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या मौजूदा संवाद वास्तविक प्रगति की ओर ले जाएगा या फिर यह सिर्फ एक और सावधानीपूर्ण कूटनीतिक कवायद बनकर रह जाएगा।

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