समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 जुलाई: समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव को लेकर मौलाना साजिद राशिदी द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणी ने संसद परिसर में सियासी तूफ़ान खड़ा कर दिया है। घटना के बाद भाजपा सांसदों ने संसद में प्रदर्शन कर राशिदी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की, इस बीच सियासी माहौल गरमा गया।
मौलाना राशिदी ने संसद परिसर की मस्जिद में डिंपल यादव के पहनावे को लेकर ऐसा बयान दे डाला जो न केवल सामाजिक गरिमा का उल्लंघन था बल्कि महिला सम्मान के प्रति असंवेदनशीलता को भी दर्शाता था। भाजपा ने इस टिप्पणी को महिला नेताओं के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण संकेतिक हमले की तरह पेश किया और खुद को महिला सुरक्षा के पक्षधर के तौर पर उभारा। भाजपा नेता इसका राजनीतिक फायदा उठाते हुए कह रहे हैं कि भाजपा का महिला सम्मान पर कोई समझौता नहीं।
जब भाजपा की प्रतिक्रिया इतनी तेज थी, तो समाजवादी पार्टी पर दबाव बढ़ गया। डिंपल यादव, पार्टी की सीनियर फेस और अखिलेश यादव की पत्नी, खुद इस आरोप का सामना कर रही हैं कि पार्टी ने महिला सम्मान के मुद्दे पर शांत प्रतिक्रिया दी। चाहे शिकायत मुसलमान समुदाय से संबंधित हो या सियासी प्रतिद्वंद्वियों से—प्रतिक्रिया स्पष्ट और आक्रामक न होने पर भाजपा इसे महिला सम्मान के प्रति उदासीनता का उदाहरण बना सकती है।
घटना की कानूनी तह तक भी बात हो गई है। गोमतीनगर निवासी प्रवेश यादव की शिकायत पर लखनऊ पुलिस ने मौलाना साजिद राशिदी के खिलाफ विभिन्न आईपीसी धाराओं के अंतर्गत केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार, राशिदी की टिप्पणियों ने महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के साथ धार्मिक और साम्प्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दिया है।
हालांकि समाजवादी पार्टी ने भी बयान को निंदनीय बताया है और भाजपा पर राजनीति करने के आरोप लगाए हैं, लेकिन इस विवाद ने एक सवाल और तह तत्काल खड़ा कर दिया है — सियासी दलों में महिला सम्मान और कट्टरपंथ विरोध के बीच दूरी कितनी है?
राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि मौलाना साजिद राशिदी पहले भी विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं। हाल ही में उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह भी कहा था कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया था। अब उनका डिंपल यादव पर टिप्पणी करना महिला और धार्मिक सम्मान के प्रति असंवेदनशीलता का ही एक नया उदाहरण बन गया है।
इस घटना से महिलाओं की गरिमा, सार्वजनिक कार्यालय में सम्मान, और राजनीतिक नैतिकता जैसे मूल्यों पर प्रश्न खड़े हो गए हैं। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे ऐसे बयानबाजों के खिलाफ स्पष्ट और सख्त रुख अपनाएं—क्योंकि लोकतंत्र में महिला सम्मान और धार्मिक सौहार्द बनाए रखना अनिवार्य है।
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