
प्रो. मदन मोहन गोयल, नीडोनॉमिक्स के प्रवर्तक एवं पूर्व कुलपति
आर्थिक प्रगति और भौतिक विकास की दौड़ में हम एक महत्वपूर्ण सत्य को अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं—विकास केवल यह नहीं है कि हम क्या बनाते हैं, बल्कि यह भी है कि हम कैसे जीते हैं और क्या संजोते हैं। “हरित कल के लिए सजग नागरिक” कोई कल्पना नहीं, बल्कि आवश्यकता है, और नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी) इस दिशा में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करता है। नीडो–उपभोग (माइंडफुल कंजम्पशन) की वकालत करते हुए, नीडोनॉमिक्स विकास की उस परिभाषा को प्रस्तुत करता है जो आवश्यकता, संतुलन और पर्यावरणीय चेतना पर आधारित है, न कि अनियंत्रित उपभोग और लालच पर।
जैसे-जैसे भारत 2047 तक विक्सित भारत बनने की दिशा में अग्रसर है—जो स्वतंत्रता के 100 वर्षों का प्रतीक होगा—वैसे-वैसे पर्यावरण के प्रति सजग और सामाजिक रूप से उत्तरदायी नागरिकों की भूमिका विशेष रूप से युवाओं में, अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि एनएसटी का जोर सजग व्यवहार, नैतिक निर्णयों और सतत जीवनशैली पर क्यों और कैसे टिकाऊ विकास के सभी पहलुओं—पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक समानता और जलवायु कार्रवाई—के लिए आवश्यक है।
नीडोनॉमिक्स की दृष्टि से सतत विकास को समझना
सतत विकास कोई एकतरफा लक्ष्य नहीं है। यह आर्थिक वृद्धि, सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय संरक्षण तीनों पर समान रूप से निर्भर करता है। भले ही संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों जैसे वैश्विक एजेंडे एक रूपरेखा प्रदान करते हैं, लेकिन इन लक्ष्यों की प्राप्ति का दारोमदार जमीनी स्तर पर व्यक्ति और समुदाय के आचरण पर है।
एनएसटी एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है—यह “कम में अधिक” की भावना को बढ़ावा देता है और सिखाता है कि संतोष बहुतायत में नहीं, बल्कि जागरूक आवश्यकता में निहित है। एनएसटी का मानना है कि असली विकास अनंत इच्छाओं को पूरा करने में नहीं, बल्कि आवश्यक जरूरतों को संतुलित ढंग से पूर्ण करने में है—इस तरह कि आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताएं भी सुरक्षित रहें।
इस दिशा में एनएसटी, पर्यावरणीय चेतना को एक अनिवार्यता के रूप में देखता है और इसे शिक्षा, शासन, जीवनशैली और सामाजिक व्यवहार में एकीकृत करने का आग्रह करता है। इसमें शामिल हैं: कचरे को कम करना, ऊर्जा और जल संरक्षण को बढ़ावा देना, हरित व्यवहार को अपनाना, और भावनात्मक, नैतिक व पर्यावरणीय बुद्धिमत्ता को विकसित करना।
करके सीखना: व्यवहारिक पर्यावरण शिक्षा की भूमिका
पर्यावरण मूल्यों को विद्यार्थियों में स्थापित करने का सर्वोत्तम तरीका अनुभवात्मक शिक्षा है। एनएसटी का मानना है कि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय केवल कक्षा शिक्षण तक सीमित न रहें, बल्कि विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन की सतत गतिविधियों में संलग्न करें:
- पेड़ लगाना और सब्जियाँ उगाना, ताकि पारिस्थितिकीय परस्परता को समझा जा सके।
- कचरा पृथक्करण, ताकि दैनिक उपभोग में अनुशासन उत्पन्न हो।
- पानी और बिजली की बचत, जो नीडो–उपभोग के व्यापक सिद्धांत का हिस्सा है।
इन गतिविधियों को अतिरिक्त पाठ्यक्रम या प्रतीकात्मक कार्य न मानकर जिम्मेदार नागरिकता का आवश्यक हिस्सा माना जाना चाहिए। जब छात्र यह देखते हैं कि उनके छोटे-छोटे कार्यों का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, तो वे चयन और परिणाम के बीच संबंध को समझने लगते हैं।
एनएसटी का मानना है कि छोटे-छोटे कदम भी बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं—विशेषकर जब उन्हें शिक्षा संस्थानों में व्यवस्थित रूप से अपनाया जाए। सजग उपभोग और उत्तरदायी आदतें ही अब राष्ट्र निर्माण का नया पाठ्यक्रम बननी चाहिए।
सरकारी समर्थन और सामुदायिक सहभागिता
भारत सरकार ने पर्यावरण चेतना को बढ़ावा देने के लिए अनेक सराहनीय पहल की हैं। नेशनल ग्रीन कोर जैसी योजनाएं—जिसमें आज भारत के 1.5 लाख से अधिक स्कूल जुड़े हुए हैं—छात्रों में पर्यावरणीय नेतृत्व विकसित करने का मंच प्रदान करती हैं। ये प्रयास पूर्णतः एनएसटी की नागरिक-केंद्रित विकास दृष्टि के अनुरूप हैं।
लेकिन केवल सरकारी योजनाओं से बात नहीं बनेगी। एनएसटी सभी हितधारकों—शिक्षकों, अभिभावकों, सामुदायिक नेताओं, गैर सरकारी संगठनों, नीति-निर्माताओं और मीडिया—से आह्वान करता है कि वे इस हरित आंदोलन में सहभागी बनें। पर्यावरणीय चेतना को केवल एक अभियान न समझें, बल्कि इसे जीवनभर की प्रतिबद्धता बनाएं।
जन जागरूकता अभियानों में शामिल होनी चाहिए ऐसी बातें:
- सिंगल यूज़ प्लास्टिक से इनकार और कपड़े या जूट के थैले का प्रयोग।
- पानी की बचत, जैसे लीक को ठीक करना और सीमित उपयोग।
- सार्वजनिक परिवहन का उपयोग और कार्बन फुटप्रिंट कम करना।
- अनावश्यक लाइट्स और उपकरण बंद करना।
इन सभी कार्यों को नीडो-धर्म का अंग मानना चाहिए—एक ऐसा नैतिक दायित्व जो पर्यावरणीय स्थिरता, राष्ट्रीय निष्ठा और व्यक्तिगत अनुशासन को साथ लेकर चलता है।
उदाहरण प्रस्तुत करें: जो कहें, उसे करके दिखाएं
एनएसटी का संदेश है—“जो कहें, वो करके दिखाएं”। केवल भाषणों से चेतना उत्पन्न नहीं होती; इसके लिए संस्थागत आचरण भी बदलना होगा। स्कूलों और कॉलेजों को हरित परिसर के रूप में ढालना चाहिए:
- सौर ऊर्जा पैनल लगाना।
- वर्षा जल संचयन प्रणाली अपनाना।
- कागजरहित संवाद को प्रोत्साहित करना।
- साइकिल व इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना।
ये क्रियाएं न केवल छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा देती हैं, बल्कि उन्हें जीवन भर की हरित आदतों के लिए तैयार करती हैं।
इसी भावना से, घरों और दफ्तरों में भी पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार केवल मजबूरी से नहीं, बल्कि आंतरिक प्रेरणा से अपनाया जाना चाहिए। जैसे—पुनः उपयोग योग्य बोतल रखना, ऊर्जा कुशल उपकरणों का प्रयोग करना आदि—हर छोटा कदम नीडो–सस्टेनेबिलिटी की दिशा में एक बड़ा प्रयास बन सकता है।
नई सोच का निर्माण: रट्टा नहीं, जीवन के लिए शिक्षा
एनएसटी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देना है। आने वाले भारत के लिए युवाओं को तैयार करने हेतु हमें रट्टा आधारित शिक्षा से हटकर जीवन आधारित शिक्षा अपनानी होगी:
- रचनात्मकता, सहानुभूति और नेतृत्व का विकास।
- समाधान आधारित सोच को बढ़ावा।
- स्पर्धा के स्थान पर सहयोग की भावना।
- केवल तथ्यों की नहीं, मूल्यों और दृष्टिकोण की शिक्षा।
एनएसटी का मानना है कि हमारे बच्चों को केवल अंक लाने के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवनशैली के लिए शिक्षित करना चाहिए जो स्वयं, समाज और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करे। एक सजग विद्यार्थी, एक सजग नागरिक बनता है—और अंततः एक सजग नेता।
परिवर्तन के नायक युवा: हरित बदलाव की अगुवाई
विकसित भारत की यात्रा युवाओं के कंधों पर टिकी है। एनएसटी एक ऐसे युवा आंदोलन की कल्पना करता है जहाँ हर विद्यार्थी हरित राजदूत बने। जब युवा स्थिरता को जीवन में उतारते हैं, तब वे नवाचार, उद्यमिता और नीति-निर्माण में हरित क्रांति ला सकते हैं।
हमें ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए:
- हरित स्टार्टअप्स, जैसे—नवीकरणीय ऊर्जा, सतत कृषि, कचरा प्रबंधन।
- ईको-लीडर्स, जो सोशल मीडिया और जन भागीदारी से जन चेतना लाएं।
- नवोन्मेषक, जो ग्रामीण और शहरी समस्याओं के लिए सस्ते और मापनीय समाधान विकसित करें।
इन परिवर्तनकारी प्रयासों को मेंटरशिप, वित्तीय सहायता और सहयोग के मंच मिलें, इसके लिए
एनएसटी नैतिक आधार और व्यावहारिक ढाँचा प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
एनएसटी का दृढ़ विश्वास है कि सतत विकास कोई बाहरी लक्ष्य नहीं, बल्कि आंतरिक यात्रा है। इसके लिए हमें अपनी सोच, व्यवहार और आकांक्षाओं को आवश्यकता, संतुलन और उत्तरदायित्व के सिद्धांतों से जोड़ना होगा। वास्तविक रूप से भारत को 2047 तक विक्सित बनाने के लिए हमें एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना होगा जो नीडो-हैप्पीनेस—अर्थात संतुलन और उद्देश्य से प्राप्त तृप्ति—को प्राथमिकता दे। इसका अर्थ है—ऐसी आदतें, प्रणालियाँ और संस्थाएँ विकसित करना जो: मात्रा नहीं, गुणवत्ता को प्राथमिकता दें, जल्दबाज़ी नहीं, सामंजस्य को,लालच नहीं, ज़रूरत को। नीडोनॉमिक्स के माध्यम से सजग नागरिकों का निर्माण कर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि स्थिरता केवल एक नारा न बनकर जीवनशैली बने। आइए, हम मिलकर उस भविष्य की ओर बढ़ें जहाँ आर्थिक प्रगति और पारिस्थितिकीय संतुलन साथ-साथ चलें—जहाँ हर भारतीय पर्यावरण का संरक्षक और सतत विकास का सच्चा सिपाही बने। नीडोनॉमिक्स को बनाइए भारत की हरित यात्रा के लिए मार्गदर्शक।
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