असम में विवादित टिप्पणी पर AJP ने CM सरमा को घेरा

समग्र समाचार सेवा
गुवाहाटी / डिब्रूगढ़, 27 जुलाई: असम जातीय परिषद (AJP) ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उस विवादास्पद टिप्पणी की कड़ा विरोध किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि असमिया समुदाय “सिर्फ हथियार उठाकर ही जीवित रह सकता है”। इस बयान को AJP ने असमिया पहचान के नाम पर राजनीतिक अवसरवाद करने का बहाना बताया है।

सरमा का विवादित बयान

डिब्रूगढ़ के एक प्रेस संवाद के दौरान मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि राज्य में एक “विस्फोटक स्थिति” बन सकती है, और असमिया लोग तभी सुरक्षित रह सकते हैं जब वे सशस्त्र हों। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे ऐसे हालात का इंतजार कर रहे हैं जिनमें जनता अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए हथियार उठाए।

AJP का तीखा जवाब

AJP नेता लुरिनज्योति गोगोई और महासचिव जगदीश भुइयां ने क्रिकेटी तौर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरमा का यह बयान असमिया जनता को डराने-धमकाने की कोशिश है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने ‘जाति-माटी-भेती’ के वादे के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन अब उन वादों को पूरा करने में असफल रही है।

AJP के अनुसार, असम समझौते की धारा 6 के तहत स्वदेशी पहचान और अधिकारों की सुरक्षा संवैधानिक रूप से संभव है, लेकिन मुख्यमंत्री इस तंत्र को अनदेखा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनता ने राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और समावेशी उपाय की उम्मीद की थी।

सरकार पर गंभीर आरोप

AJP नेताओं का कहना है कि जब तक नागरिकों की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है, तब तक लोगों को हथियार उठाने के लिए कहना सरकारी विफलता और डर फैलाने की रणनीति दोनों का संकेत है। उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री इस तरह की बयानबाजी से जनता का ध्यान केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कार्यकारिणी नीतियों से हटाना चाहते हैं।

PM को ज्ञापन भेजेगी AJP

AJP ने घोषणा की है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक औपचारिक ज्ञापन भेजेगी, जिसमें मुख्यमंत्री सरमा की भड़काऊ टिप्पणी और राज्य प्रशासन की विफलताओं की जानकारी दी जाएगी। कांग्रेस, इंटेलिजेंस रिपोर्ट और मानवाधिकार संगठनों के तथ्यों के साथ यह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रस्तुत किया जाएगा।

राजनीतिक पृष्ठभूमि और संदर्भ

असम में वर्षों से झारखंडी पहचान, भूमि अधिकार और स्वदेशी नागरिकता को लेकर संघर्ष चला आ रहा है। AJP ने राज्य की विधानसभा और लोकसभा चुनावों में लगातार अपनी मांगों को आवाज दी है। उनका कहना है कि भाजपा सरकार ने चुनावी वादों को न भूलकर, लेकिन कार्यान्वयन न करके जनता को धोखा दिया है।

क्यों महत्वपूर्ण है यह बयानबाजी

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की यह टिप्पणी सामाजिक संवेदनशीलता की सीमाओं को चुनौती देती है। असम जैसे विविधता-पूर्ण राज्य में जातीय हिंसा या डर की राजनीति फिजूल है। ऐसे बयान से सामाजिक ताने-बाने में फैटर्स, स्थानीय समुदायों में भय और राजनीतिक तनाव की आशंका बढ़ जाती है।

AJP के सवाल हैं: क्या मुख्यमंत्री जनता को सचमुच सुरक्षित रखने में विफल हैं, या वे डर एवं हिंसा का माहौल बना कर राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं?

असम जातीय परिषद का यह विरोध केवल एक बयान नहीं, बल्कि संविधान, पहचान और राजनीति की सीमाओं पर एक चेतावनी है। अगर जनता को हथियार उठाने की सलाह दी जाती है तो यह सरकार की सुरक्षा देने की नीयत पर सवाल खड़ा करता है। अब यह देखना ज़रूरी है कि भाजपा नेतृत्व, गृह मंत्रालय और मुख्यमंत्री इस विवाद को राजनीतिक समाधान और संवैधानिक विवेक के साथ कैसे संभालते हैं।

 

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