ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में ‘लिव्ड हिंदू रिलिजन’ कोर्स पर विवाद, हिंदूफोबिया फैलाने का आरोप

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 मार्च।
ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में एक कोर्स ‘लिव्ड हिंदू रिलिजन’ को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस कोर्स को पढ़ाने वाले प्रोफेसर एरन माइकल उल्रे पर भारतीय-अमेरिकी छात्र वसंत भट्ट ने हिंदूफोबिया (हिंदू विरोधी मानसिकता) फैलाने और भारत के राजनीतिक परिदृश्य को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया है। भट्ट ने कॉलेज ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज के डीन से शिकायत की है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि कोर्स में हिंदू धर्म को एक राजनीतिक हथियार के रूप में दर्शाया गया है, जिसका इस्तेमाल हिंदू राष्ट्रवादी करते हैं।

भट्ट ने कोर्स की सिलेबस में दिए गए कुछ उद्धरणों का हवाला दिया है, जो उनके अनुसार हिंदू धर्म को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। उनका आरोप है कि इस कोर्स में हिंदू शब्द को हाल ही में गढ़ा गया एक शब्द बताया गया है, जो प्राचीन ग्रंथों में मौजूद नहीं था। साथ ही, ‘हिंदुत्व’ को एक ऐसा विचार बताया गया है, जिसका इस्तेमाल हिंदू राष्ट्रवादी अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने और अन्य धर्मों, विशेष रूप से इस्लाम, को नीचा दिखाने के लिए करते हैं

इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कहा है कि वह भट्ट द्वारा उठाए गए मुद्दों की समीक्षा कर रहा है। विश्वविद्यालय ने यह स्पष्ट किया कि अकादमिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है, लेकिन छात्रों की चिंताओं को भी गंभीरता से लिया जाएगा।

यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भारत ने हाल ही में यू.एस. कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) की एक रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसमें भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई गई थी। भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को पक्षपाती और राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया था। भारत ने USCIRF पर आरोप लगाया कि वह घटनाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहा है और भारत के बहुसांस्कृतिक समाज को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है

इस विवाद ने धार्मिक पहचान, अकादमिक जगत में हिंदू धर्म के चित्रण और धार्मिक प्रथाओं को लेकर राजनीतिक आख्यानों पर व्यापक बहस छेड़ दी है। पश्चिमी संस्थानों में हिंदू धर्म को किस रूप में पढ़ाया और समझाया जाता है, यह विषय लंबे समय से हिंदू संगठनों और प्रवासी भारतीय समुदाय के लिए चिंता का विषय रहा है।

अब देखना होगा कि ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी इस विवाद को किस तरह सुलझाती है और क्या यह मामला हिंदू धर्म के वैश्विक प्रतिनिधित्व पर एक बड़े विमर्श की नींव रखता है।

Comments are closed.