कोरोना का कहर,बेबस सरकारें,तडपते मजदूर

कोरोना-COVID-19 का विश्व में कोहराम है.भारत में कोहराम है.राज्यों में कहर है.मजदूरों  से लेकर प्रधानमन्त्री तक चिंतित है,परेशान है.बेबस है.विवश भी.परन्तु कोरोना covid-19 को देश से जडमूल से भगाने के लिए जंग जारी है.प्रधानमंत्री को देश को बचाने की चिंता है.उन्होंने पूरे देश में अगले 14 अप्रैल तक lockdown की घोषणा कर दी.लोगो में एक राहत देखी गयी.

परन्तु ऐसा लगता है कि अपने तमाम प्रबंधों के मद्देनजर देश में विभिन्न हिस्सों में जीवन यापन को मजबूर करोड़ों प्रवासी दिहाड़ी मजदूरों  के दर्द को भूल गए या शायद उनके सलाहकारों व नौकरशाहो ने श्री मोदी को उस भयानक समस्या की ओर ध्यान नहीं दिलाया.आज उन मजदूरों की स्थिति भयावह सी दिखने लगी  है.पर अब शायद मोदी के नए कदम से उन सबको राहत मिल जाये.जो lockdown के चार  दिनों के बाद भी वे मजदूर भूख के भय से तड़प रहे हैं.उन पर दो तरफ़ा भय है.एक कोरोना का तो दूसरा भूख का .राज्य सरकारे बेबस दिख रही हैं,परन्तु मोदी जग रहे है.सबको जगा रहे हैं.देश के लिए,आम जन के लिए .उन भूखे मजदूरों क लिए भी.कई राज्यों से मजदूरों के अपने अपने स्तर पर राहत की बात कही जा रही है.गौरतलब है कि देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब डेढ़ करोड़ है.

देश में राजनीति और नौकरशाही में एक अजीबोगरीब सम्बन्ध है.जो समय समय पर अपने कई रूप में आम जन के सामने आता है.कभी राजनीति उन पर हावी रहती है तो कभी नौकरशाह.पर इसमे पिसती रहती बेचारी आम जनता.सरकार और सत्ता की अपनी अलग परिभाषा होती है.प्रधानमंत्री मोदी ने उन दूरियीं को कम करने की कई बार कोशिशे की है.अक्सर करते रहते हैं.

मोदी सरकार में नौकरशाह पर कड़े नियंत्रण की बात कही व सुनी जाती रही है.लेकिन कोरोना lockdown ने दोनों के बीच गज़ब की दूरी जाहिर कर दी है .जिसका नया विकराल रूप हमें दिल्ली की सभी सीमाओ पर स्थित बस अड्डो पर देखने को मिला है.देख कर स्वयं पर गुस्सा भी आता है.साथ ही राजनीति के उन तथाकथित नेताओ के कागज़ी और दूरदर्शिनी बयान पर भी रोष.क्या हम ऐसे विकराल दृश्यों और अनियंत्रित भीड़ के बावजूद कोरोना पर नियत्रण कर सकेंगे? इस विकराल दृश्य से क्या हम प्रधानमन्त्री मोदी के “सामाजिक दूरी” के उस नुस्खे पर अमल कर सकेंगे? क्या हम इस तरीके से कोरोना पर पूरी तरह से नियंत्रण कर  सकेंगे? ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई? कौन है जिम्मेवार उसके लिए ?क्यों नहीं वो लाखों आम जनता/मजदूर  सरकारी घोषणाओ पर भरोसा कर सके ?

देश में प्रवासी मजदूर स्वयं अपने आपमें एक विकट समस्या है.संयुक्त राष्ट्र में  भी इन मसलो पर एक अलग निकाय है.ये समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं है.विश्व के कई देशो में हैं.पर वे देश अपने स्तरों पर उसका समुचित समाधान करते रहते हैं.लेकन लगता है भारत में केंद्र और राज्य सरकार तमाम दावों के बावजूद इस पहलु पर गौर नहीं कर सके.तभी lockdown के कारण वे प्रवासी मजदूरों की स्थिति दयनीय सी हो गयी है .वे सब रोटी के लिए मोहताज़ हो चुके हैं.इस समस्या ने केंद्र और राज्य के सम्बन्धो को एक बार फिर से परिभाषित करने की जरुरत पर बल दिया है.जिसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को ही एक बड़ा ठोस कदम उठाना पड़ेगा.

प्रधानमंत्री की पहल पर  केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कोरोना राहत कोष की राशि 15 हज़ार करोड़ रुपये से बढाकर 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये कर दिया है.प्रधानमंत्री ने एक अन्य  एक नया पीएम केयर्स फंड की भी घोषणा की है.देश के कई बड़े औद्योगिक घरानों के साथ कई फिल्म अभिनेताओं के स्थ कई उधमियों ने भी उस कोष में अपना अपना योगदान देना शुरू कर दिया है.टाटा घराने ने 500 करोड़ रूपये की सहायता देने की बात कही है तो फिल्म स्टार अक्षय कुमार से 25 करोड़ रूपये की .

लेकिन जहाँ तक सरकारी फंड एक लाख 70 हज़ार करोड़ की बात है , वो कैसे,किनको, किस तरह से वितरित किया जायेगा.उस पर प्रधानमंत्री की घोषणा के 4 दिनों के बावजूद अभी तक भ्रम की स्थिति देखी जा रही है.दिशा निर्देश बनाये जा रहे हैं .वैसे तो राज्य सरकारे अभी तक चुप थी.पर अचानक बोल पड़ी.उसके पीछे प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की चाबी थी.केन्द्रीय गृह मंत्रालय  का निर्देश भी सभी सम्बंधित राज्यों को भेजा गया.कुछ राज्यों ने फंड का रोना रोया.केद्र ने फंड की व्यवस्था की.सभी राज्यों को निर्देश दिया कि राज्य आपदा कोष से सभी जरुरत मंदों की मदद की जाये.लेकिन एक बहत बड़ा सवाल है कि दिल्ली की सीमाओ पर स्थित लाखो लोगो अपने अपने घरो से क्यों निकले.दिल्ली सरकार ने उन्हें क्यों नहीं रोका.दिल्ली के सभी सांसद,विधायक और पार्षद अभी तक क्या कर रहे थे? अभी तक क्या किया है ? क्या उनकी ज़िन्दगी ही महत्वपूर्ण है ?आम जन की नहीं.उत्तर प्रदेश,बिहार,राजस्थान,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सिर्फ अपने अपने बयान देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ रहे हैं.बिहार के मुख्मंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए 100 करोड़ रूपये की घोषणा की है.लेकिन प्रवासी बिहारी व उत्तरप्रदेश के लाखों लोगो के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया जा सका है.

प्रधानमंत्री के समक्ष करोड़ों मजदूरों के लिए  कोरोना के साथ उनके लिए  भूख और प्यास को दूर करने की चिंता है. देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब डेढ़ करोड़ है.इस प्रवासी मजदूरों में ज्यादातर संख्या  बिहार,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश राजस्थान,ओडिशा हरियाणा ,पश्चिम बंगाल राज्यों का है.वैसे उत्तर पूर्व के राज्यों सहित दक्षिणी राज्यों में प्रवासी मजदूरों की संख्या है.परन्तु सबसे ज्यादा संख्या उत्तर भारत के बिहार,यूपी,राजस्थान का है.पूरा lockdown होने से पूरे देश में यातायात सेवाए पूरी तरह से ठप्प है.उसे रोक दिया गया है .उसमे ये डर समाहित है कि कही कोरोना न आ जाये.लेकिन केंद्र व राज्यों के परस्पर संबंधो में एकरूपता नहीं देखी जा रही है.प्रधानमंत्री परेशान बताये जा रहे हैं.विपक्ष को मौका मिल गया है.कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी वाड्रा ने केंद्र और राज्य सरकार की खिचाई की है.जबकि एक दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री मोदी की भूरि भूरि प्रशंसा की है.राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने भी प्रधानमन्त्री मोदी की तारीफ़ की है.लेकिन ये नेता आम जन के लिए क्या किया और क्या कर रहे हैं.इसके बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया.

बिहार के एक भुक्त भोगी ने बताया कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी लोगो को ईरान,बुहान,इटली,लन्दन से लोगो को बचाकर भारत सुरक्षित ला सकते है तो हम बिहार,यूपी ,राजस्थान के लोगो को उनके घरों तक क्यों नहीं पहुंचा सकते है.कोरोना की स्थिति के लिए राज्य प्रभारी और केद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद टी वी चैनलों पर बड़ी बड़ी बातें तो कर रहे हैं लेकिन वह खुद आनंद विहार या गाज़ियाबाद या फरीदाबाद सीमा पर जाकर कोई आश्वासन नहीं दे सके. क्या देश में सारा काम मोदी जी ही करेंगे? कोई भी केन्द्रीय मंत्री व मुख्यमंत्री उन तमाम लाखों जनता के लिए कुछ भी क्यों नहीं कर रहे हैं? लगता है सिर्फ सरकारी घोषनाये ही रहेगी या कुछ यथार्थ में भी होगा ?

16 वीं लोक सभा चुनाव् के दौरान देश में एक नारा खूब चला था-मोदी है तो मुमकिन है.स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने भी अपने भाषणों में भी कई बार उपयोग किया.जबकि उनके विरोधियों ने भी अपने अपने स्टाइल में उस नारों का मखौल उड़ाने की कोशिशे की है.आज की स्थिति में प्रधानमंत्री को इस मसले पर सभी संबधित मुख्यमंत्रियों को कड़ी हिदायत देने की अहम् जरूरत है.तभी कोरोना मुक्त भारत का उनका सारा प्रयास अपेक्षित परिणाम पा सकेगा.

दिसम्बर 2012 में दिल्ली ने एक सैलाब देखा था.एक अनियंत्रित भीड़ देखी थी.आम जन का रेला देखा था.लोगो का गुस्सा देखा था.जन आक्रोश एक हजूम देखा था.वजह थी निर्भया के साथ बलात्कार.जिसमे उस अबला की मौत हो गयी थी.दिल्ली से सिंगापुर की यात्रा भी उसे नहीं बचा सकी थी.दिल्ली जैसी सुरक्षित कही जाने वाली नगरी अपने हाल पर बेहाल हो गयी थी.मुझे याद है उस सैलाब का सामना करने की ताक़त किसी भी दल के नेता के पास नहीं थी.लगता है आज भी वही स्थिति है.कोई नेता नहीं,सिर्फ जन सैलाब ही सैलाब ? उस कोरोना के भय और भूख से पीड़ित लाखों आम जन के प्राणों को  कौन बचा सकेगा.क्या हम कह सकते है कि मोदी है तो मुमकिन है???

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