पार्थसारथि थपलियाल
(हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। इस दौरान बहुत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित की गई। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)
भारत को हम जीता जागता राष्ट्रपुरुष मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं- डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा, मुख्यमंत्री असम
डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा, असम के मुख्यमंत्री हैं। वे भारतीयता से परिपूर्ण हैं। अपनी स्पष्टवादिता के लिए जनमानस में अत्यधिक लोकप्रिय हैं। उद्घाटन सत्र में उन्होंने आमंत्रित अतिथियों, बौद्धिक वर्ग और कला क्षेत्र के लोगों का स्वागत बहुत अपनेपन के साथ किया। उन्होंने कहा मैं असम के मुख्यमंत्री होने के कारण गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ कि आपका स्वागत करने का सौभाग्य मुझे मिला।
डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा भारत 1947 में पैदा नही हुआ। हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। इसका प्रमाण विश्व के प्राचीनतम दस्तावेज हमारे वेद हैं। प्राचीन काल से ही भारत ज्ञान-विज्ञान और आर्थिक स्तर पर विश्व में एक समृद्ध राष्ट्र रहा। पश्चमी लुटेरों और आक्रांताओं नें लूटमार कर यहां की संपन्नता को नष्ट करने का प्रयास किया। कुछ लोगों ने यहाँ की धन संपदा को लूटा तो कुछ लोगों ने हमारी संस्कृति पर प्रहार किए। तलवार की नोक पर मतांतरण करवाये। उन्होंने भारत को बहुत हानि पहुँचाई लेकिन वे हमारी सनातन संस्कृति को नष्ट नही कर पाए। यूरोपीय देशों ने अनेक महाद्वीपों में अपने उपनिवेश स्थापित कर उन देशों की संस्कृति बदल दी। सनातन संस्कृति की समृद्ध परम्पराओं के कारण हमारी संस्कृति सदैव अपराजेय रही।
सनातन संस्कृति के इस भाग को जम्बू द्वीप कहते थे। इस जम्बू द्वीप में भारत एक भू-भाग था जो हिमालय से समुद्र तक विस्तृत था। इस विस्तृत भू-भाग में एक सनातन संस्कृति होते हुए भी सांस्कृतिक विविधता रही। यह विविधता विभिन्न अंचलों की भौगोलिक स्थितियों के अनुसार रही। कहीं पर्वतीय भू-भाग है, कहीं रेगिस्तान, कहीं मैदान, कहीं पठार, कहीं तटीय क्षेत्र और कहीं वन अंचल। इतना सब कुछ होते हुए भी भारत एक है। ये विविधताएं संस्कृति का बाह्य स्वरूप हैं। ये भारत की सांस्कतिक विविधताएं हैं, भिन्नताएं नही है। सनातन संस्कृति में सर्वत्र पृथ्वी को माता कहा गया है। माता भूमि पुत्रोह्म पृथिव्या। हमारे चारधाम, हमारी पुण्य सलिलायें, हमारे पुण्य तीर्थ, हमारे संस्कार, हमारी पाप और पुण्य की अवधारणा, मातृदेवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव, लोक कल्याण की भावना- लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु जैसे आचरण भारत मे सर्वत्र पाए जाते हैं। भारतीय सभ्यता में हम राष्ट्र को माँ मानकर राष्ट्र आराधन करते हैं क्योंकि हमारी मान्यता है ईश्वर कण कण में विद्यमान है। भारत को हम जीता जागता राष्ट्रपुरुष मानते हैं इसलिए हम उसकी पूजा करते हैं।
आइडिया ऑफ इंडिया एक विचार है। एक विचार भारतीयता का है, यह चिंतन वही है जो सनातन संस्कृति में है। इस भारतीयता का आधार है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामय।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भागभवेत।
15वीं शताब्दी में असम में जन्मे महापुरुष श्रीमंता शंकरदेव जी नें भारत की विस्तृत यात्राएं की। वे वृहत्तर भारत के अनेक विद्वानों धर्माचार्यों, साधू सन्यासियों और जन सामान्य के सम्पर्क में आये। उन्होंने भारत की महान गौरवशाली परम्पराओं का अध्ययन किया। उस अनुभव को असम के जनसामान्य लोगों के साथ बांटा। इस प्रकार भारत की लोकसंस्कृति और आध्यात्मिक संस्कृति का विस्तार पूर्वोत्तर तक सघनता के साथ हुआ। यहां माँ कामाख्या शक्ति पीठ है जिसके दर्शन करने के लिए देश के विभिन्न भागों से प्रतिवर्ष हज़ारों दर्शनार्थी यहां आते हैं।
डॉ. सरमा ने उपस्थित कलाकारों से कहा कि आप अपनी कला के माध्यम से संस्कृति को जन जन तक पहुंचाएं। इस समय देश को सर्वाधिक हानि पंहुचाने वाला एक सेकुलर वर्ग है। यह निहायत स्वार्थी लोगों का झुंड है। ये लोग दुष्प्रचार में माहिर होते हैं। ऐसे लोगों को पहचानना आना चाहिए।
डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा ने लोकमंथन के सफल आयोजन के लिए अपनी शुभकामनाएं दी।
क्रमशः…4..
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