पार्थसारथि थपलियाल।
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)
पंकज सक्सेना
डॉ. पंकज सक्सेना वर्तमान में इंडिक एकेडमी-राष्ट्रम सेंटर फॉर कल्चरल लीडरशिप, सोनीपत, हरियाणा में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे हैं। प्राचीन मंदिरों की यात्रा करना, पत्र पत्रिकाओं के लिए लिखना उनकी अभिरूचि है। कहने लगे- इंसान की घूमने फिरने और यात्रा करने की रुचि सदैव रही है। यह समाज और संस्कृति के लिए भी जरूरी है कि व्यवस्थित एक जगह पर रहें लेकिन समय समय पर यात्रा के नाम पर निकलें, लोगों से मिलें, प्रकृति को देखें, इससे ज्ञान बढ़ता है। भारत में यात्रा करना हमारे तीर्थ स्थानों से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहा है। यात्री तीर्थो स्थलों का सम्मान करता है। वह पर्यटक की तरह नही होता। तीर्थ स्थान की पवित्रता का भी ध्यान रखता है। उन्होंने हिमाचल में चंबा जिले के मणि महेश यात्रा का विस्तृत वर्णन सुनाया। इन यात्राओं ने हमें विभिन्न यात्रियों के साथ रहते हुए अनेक पौराणिक कहानियां याद करवा दी। जिस समय शिक्षा के साधन हर एक की पहुंच तक नही थे तब तीर्थ यात्राएं सूचना और ज्ञान का माध्यम भी होती थी।
प्रोफेसर मुकुंद रघुनाथ दतार जी -अध्यक्षीय उद्बोधन
प्रोफेसर दतार जी संत साहित्य, भगवद गीता और भारतीय संस्कृति की अलख पूरे महाराष्ट्र में 35 वर्षों से जगा रहे हैं। वे कोल्हापुर के वारणानगर के महाविद्यालय में प्राचार्य रह चुके हैं। उनकी 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सत्र की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने महराष्ट्र में शोलापुर स्थित प्रमुख तीर्थ पंढरपुर की यात्रा पर कुछ जानकारी दी।
पंढरपुर तीर्थ वैष्णव परंपरा का प्रमुख स्थान है। यहां विष्णु अवतार श्रीकृष्ण की विट्ठल नाम से आराधना की जाती है। इसे अपने माउली (मैया) की तरह मानने वाले लोगों को वारकरी कहा जाता है। वारि का हिंदी में अर्थ है यात्रा। वारकरी सम्प्रदाय के लोग एकेश्वरवादी हैं। आषाढ़ के महीने में पंढरपुर में वार्षिक यात्रा का आयोजन होता है। यात्री दूर दूर से पैदल चलकर यहां आते हैं। वाहनों से आना जाना निषिद्ध है। जो भी लोग वार्षिक यात्रा में पंढरपुर आते हैं वे मंदिर में कुछ मांगने नही आते हैं बल्कि जिस भाव से एक विवाहित महिला अपने ससुराल से मायके मिलने आती है वही भाव यहां आने वाले यात्रियों के मन में भी होता है। जब इधर उधर से भक्तजनों का जत्था पंढरपुर की ओर बढ़ता है तब यह दृश्य अत्यतं मोहक और स्फूर्ति दायक होता है। यात्रियों के मुंह मे रामकृष्ण हरे या विट्ठल विट्ठल का जाप होता है। इन्हें पांडुरंग, विट्ठल, विठोवा नाम से भी जाना जाता है।
वारकरी सम्प्रदाय मानवधर्मी है। वे एक दूसरे के पैर छूते है। आपस में माउली कह कर सम्बोधित करते हैं। वारकरी सम्प्रदाय में धार्मिक भेद को कोई स्थान नही दिया गया है। संत ज्ञानदेव जी, नामदेव जी तुकाराम जी सभी ने विठ्ठल विट्ठल ही गाया। ये सभी संत देवभक्त और देशभक्त थे। इन संतों ने हमें एकता, समता और ममता की शिक्षा दी। ये तीनो तत्व संस्कृति को जीवित रखने के लिए आवश्यक है।
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