पार्थसारथि थपलियाल।
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)
भारत की संस्कृति एक ओर आध्यत्मिक संस्कृति है लेकिन व्यवहार रूप में देखी जाय तो यह खान पान की संस्कृति है। देवताओं, ऋषियों और अतिथियों का सम्मान खानपान से जुड़ा है। देवताओं को पूजा में नैवेद्य चढ़ाना, अन्नकूट के माध्यम से 56 भोग लगाना, 52 व्यंजन 36 प्रकार से बनाना, पहले पेट पूजा फिर काम दूजा आदि मुहावरे समाज में यूं ही प्रचलित नही हैं। भोजन बनाने वाले लोग अत्यंत विश्वसनीय होते हैं। उनका मृदुभाषी, स्वच्छता प्रेमी, निष्ठावान और सात्विक होना आवश्यक होता है। राजाओं के राजमहल में पाकशास्त्री या महाराज उन्हें ही रखा जाता था जो विश्वसनीयता की कसौटी पर खरे उतरते थे। भारतीय समाज में यह भी एक परंपरा थी घरों में रसोई महिलाएं ही तैयार करती थी। महिलाएं सुबह सो उठकर बिना नहाए रसोई में नही जाती थी। रसोइया वही जो स्वच्छ्ता के साथ साथ पाक कला में निपुण हो। खानेवाले जब भोजन करें तो वे उंगलियां चाटते रह जाएं।
खाद्य परम्पराओं के सत्र में व्यवहार रूप में पाककला में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के पारंपरिक व्यंजनों की धूम मचानेवाले श्री विष्णु मनोहर जो भारतीय आहार व्यंजनों पर 52 पुस्तकें लिख चुके हैं, उन्होंने बताया कि वे एम.जी. यूनिवर्सिटी, औरंगाबाद में प्रोफेसर अमर्ट्स के रूप में कार्य कर रहे हैं। आहार विशेषज्ञ के रूप में चटकारे बढ़ाते हुए अपने अनुभवों को जिस भाषा में साझा कर रहे थे उसी भाषा में उनकी अभाव का सार प्रस्तुत है-
बात 2003 की है। एक टी.वी. चैनल वाले मेरे पास आये वे चाहते थे मैं उनके लिए पारंपरिक भोजन का एक शो करूं। तब मुझे लगा कि जिस क्षेत्र में यह प्रसारण होना था, उस क्षेत्र का पारंपरिक भोजन के बारे में ऐसा क्या बताऊँ कि लोग उसे देखें। कुछ दिनों के अभ्यास के बाद मैंने पारंपरिक भोजन में कुछ नयापन लाकर कार्यक्रम तैयार करना शुरू किया जो लोगों में बहुत सराहा गया। अमेरिका के एक डॉक्टर ने भी कहा हमारे स्वास्थ्य के लिए भारतीय व्यंजन सबसे अच्छे हैं। यह भोजन सात्विक है।
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे बताने लगे- जलगांव का भरीच (बैंगन का भर्ता) बहुत प्रसिद्ध है। दुबई में मैंने देखा कि बैंगन के ऊपर थोड़ा ऑलिव ऑइल लगा कर सकने के बाद नमक लगाकर परोसते हैं इसे बाबा गनूस कहते हैं। मैंने सोचा इसमें बैंगन का भर्ता तो नही है। मैंने एक बहुत बड़ी कढ़ाई ली इसका वजन 1500 किलोग्राम था, उसे क्रेन से उठाना पड़ता था, उसे लेकर जलगांव आया और 4300 किलोग्राम का भर्ता उसी कढ़ाई में बनाया, यह भर्ता बहुत स्वादिष्ट था। इसी प्रकार खिचड़ी एक साधारण भोजन है। मैंने 3-4 साल पहले दिल्ली के जंतर मंतर पर 7000 किलो खिचड़ी बनाई। इसका नाम रखा “समता खिचड़ी”। शाकाहार को मान्यता मिले इसके लिए मैंने एक शाकाहार शो किया। इसमें लगातार 54 घंटे शाकाहारी व्यंजन बनाये और लोगों को खिलाएं।
दक्षिण भारत में केले के पत्ते में भोजन करने की परंपरा पर विष्णु मनोहर बताने लगे केले के पत्ते में दाहिनी ओर सभी तरह की सब्जियां और बाएं ओर चटनियाँ रखी जाती हैं। पानी का गिलास भी बायीं ओर रखा जाता है। नमक बीच मे रखा जाता है। मैं अपने किचन में पीतल, तांबा और लोहे के बर्तन रखता हूँ। ये सभी भूमि पात्र हैं। जिनसे हमें स्वतः ही खनिज तत्व मिल जाते हैं। मिट्टी के बर्तन में जब हम दही जमाते हैं तब उसका स्वाद कुछ और होता है।
आधुनिक समय में लोग पश्चिमी व्यंजनों की ओर लालायित होते हैं। सच तो यह है पश्चिमी खाद्य जहां पर खत्म हो जाते हैं भारत की पारंपरिक भोजन शैली वहां से शुरू होती है। इतने बड़े देश मे भोजन की विविधताएं है। अपने खान पान को हम सभी सम्मान दें।
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