संस्कृति : लोकमंथन (18)- भारत में कृषि एवं खाद्य परम्पराएं -3

पार्थसारथि थपलियाल
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)

प्रोफेसर बी.आर. कंबोज कृषक पृष्ठभूमि से होने के कारण खेती किसानी उनके जीवन में समाहित है और चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय तथा गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय साइंस एंड टेक्नोलॉजी के कुलपति होने के नाते आधुनिक कृषि विज्ञान,अनुसंधान और कृषि विस्तार में वे ज़मीनी स्तर पर परम्पराओं और आधुनिकता को जोड़ते हुए वांछित परिणाम समाज को दे रहे हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुस्तकें, शोध लेख, तकनीकी बुलिटिन के प्रकाशन उनके व्यक्तित्व के पक्ष को व्यक्त करते हैं। उनका व्यावहारिक पक्ष लोक परम्पराओं से भरपूर है। गोहाटी लोकमंथन में उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि लोक परम्पराओं के लोक ज्ञान के कई संदर्भ प्रस्तुत किये जो श्रोताओं को बहुत रोचक लगे।
भारत कृषि प्रधान देश है। आज भी करीब 51 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में कृषि पर आश्रित हैं। यजुर्वेद और अथर्ववेद में कृषि संबंधी कई ऋचाएं मिलती हैं, जिससे कृषि के महत्व का पता चलता है। कृषि कार्यों से प्राप्त अनुभवों ने किसानों को उन्हें अपनाने को प्रेरित किया परम्पराएं बनती गई। गॉवों में किसी काम के लिए कुछ लेने या देने की प्रवृति ने लेन देन को बढ़ाया जिसे अंग्रेज़ी में बार्टर सिस्टम कहते हैं।
कृषि के काम में कई बार सहायता के लिए अन्य लोगों को भी जोड़ा जाता है, ऐसे में कई बार बटाई पर खेती की जाती है जिसमें काम करनेवालों के साथ कृषि उपज में बंटवारा सुनिश्चित कर दिया जाता है। यह परंपरा गाँवों में आज भी है। यहीं से सहकारिता का द्वार भी खुलता है। किसी की निराई गुड़ाई पीछे रह गई तो गाँव के कुछ लोग सहयोग के लिए आ जुटते हैं।
सर्दियों की खेती बोने से पहले किसान बीज की जांच करता है। सर्दियों में घड़े के पास कुछ बीज बो दिए जाते हैं, यदि वह बीज समय से अंकुरित होते हैं तो ठीक है। यदि समय से नही उगे तो बीज खराब माना जाता है। तब किसान किसी अन्य से बीज मांग है जो उसे प्रसन्नता से दे देता है। गाँव का कोई किसान बीज के लिए मना नही करता।
नवरात्रि के समय घट स्थापना के समय जो बीज डाले जाते हैं उनका उपयोग किसान खेती के लिए उपयुक्त मौसम ज्ञान की तरह उपयोग में लाता है। गाँव मे किसान पशु भी पालता है। गाय की वंशवृद्धि के लिए अच्छे सांड की आवश्यकता पड़ती है। गाँव में एक दो सांड अवश्य पाले जाते हैं। परंपरा यह है कि गाँव मे कोई सांड को डंडा नही मारता।
गन्ना पिराई के लिए ठीक हो गया या नही इसका पता तभी चलता है जब दशहरा या गोवर्धन पूजा के समय गन्ना पूजा के लिए लाते हैं। पूजा के बाद गन्ना चूसने से गन्ने की मिठास का पता चलता है। उससे पहले कोई गन्ना नही काटता। गाँव में गन्ना कटाई के बाद गुड़ के लिए पिराई की जाती है। लोग घरों में गुड़ बनाते हैं। कोई आदमी उस तरफ से जा रहा हो तो उसे गुड़ खाने को अवश्य देते हैं। ऐसा करना शुभ माना जाता है।
कोविड-19 क्वारन्टीन शब्द हमें दिया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में इस शब्द का व्यवहार रूप सदियों से है। गांवों में बीमार पशु को सदैव अन्य पशुओं से अलग रखा जाता है।
गाँव की एक एक परंपरा विज्ञान और व्यवहार पर आधारित है। इन परम्पराओं नें सामाजिक समरसता और नैतिकता को एक साथ आगे बढ़ाया। कभी विचारें।

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